Saturday, May 9, 2020

देवपूजन में कुछ विचारणीय तथ्य

  1. देवपूजा में पुष्प अधोमुख कर न चढ़ायें। वे जैसे उत्पन्न होते हैं वैसे ही चढ़ायें। बिल्वपत्र को उल्टा करके (अधोमुख) चढ़ायें तथा कुशा के अग्रभाग से देवताओं पर जल न छिड़कें। 
  2. धोती में रखा हुआ और जल में डुबाया हुआ पुष्प देवगण ग्रहण नहीं करते हैं। 
  3. भगवन शंकर को कुन्द, श्रीविष्णु को धतूरा, देवी को आक तथा मदार और सूर्य को तगर का पुष्प नहीं चढ़ाना चाहिए। 
  4. श्री विष्णु को चावल, गणेश को तुलसी, दुर्गा को दूर्वा और सूर्य को बिल्वपत्र न चढ़ायें। 
  5. देवताओं के प्रीत्यर्थ प्रज्ज्वलित दीपक को बुझाना नहीं चाहिए। 
  6. हाथ में धारण किये गये पुष्प, ताम्रपात्र में रखा गया चन्दन और चर्मपात्र में रखा गया गंगा जल अपवित्र हो जाता है। 
  7. दीपक को दीपक से जलाने पर मनुष्य दरिद्र और रोगी होता है। 
  8. एक हाथ से प्रणाम करने तथा एक प्रदक्षिणा करने से पुण्य नष्ट होता है। केवल चंडी और विनायक की एक ही प्रदक्षिणा का विधान मिलता है। 
  9. मांगलिक कार्यों में दूसरों की पहनी हुई अंगूठी धारण नहीं करनी चाहिए। 
  10. सभी पूजाक्रमों में पत्नी को दक्षिण (दाहिने) में बैठने का विधान है किन्तु अभिषेक और विप्रपादप्रक्षालन तथा सिन्दूर दान के समय वाम भाग में अर्धांगिनी के बैठने का विधान शास्त्र सम्मत है। 
  11. स्त्री आचमन के स्थान पर जल से नेत्रों को पोंछ ले।
  12. स्त्रियों के बायें हाथ में ही रक्षा सूत्र बाँधने के शास्त्रीय विधान है। 
  13. यज्ञ के अंत में पान-सुपारी अक्षत आदि सहित घृत से भरे हुए नारियल को पीले वस्त्र में लपेट कर रक्षासूत्र एवं माला आदि से वेष्ठित कर पंचोपचार से पूजन कर पूर्णाहुति दें।  किन्तु वैवाहिक होम में और घर के भीतर नित्य होम में पूर्णाहुति न दें। 
  14. शनिवार, मंगलवार, बुधवार एवं शुक्रवार को लक्ष्मी की पूजा प्रारम्भ न करें।
  15. स्कन्द पुराण के अनुसार लक्ष्मी प्राप्ति के लिए पौष शुक्ल दशमी, चैत्र शुक्ल पञ्चमी तथा श्रावण की पूर्णिमा को लक्ष्मी का अनुष्ठान एवं पूजन करने से अभीष्ट की उपलब्धि होती है।

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