Thursday, May 7, 2020

अष्टकवर्ग (भाग - 2)

सर्वाष्टकवर्ग  

सर्वाष्टकवर्ग का विश्लेषण ग्रहों के विश्लेषण जितना ही आवश्यक है। सर्वाष्टकवर्ग फलित ज्योतिष में भविष्य - कथन के लिए प्रामाणिक ही नहीं अपितु विश्वसनीय भी है।

किसी भी भाव में २५ से कम बिंदु अनुकूल परिणाम देने में समर्थ नहीं होते। अगर बिंदुओं की संख्या ३० से अधिक हो तो शुभ परिणाम अपेक्षित हैं। अगर किसी भी भाव में बिंदुओं की संख्या ३० से अधिक हो तो उस भाव का परिणाम पूर्ण रूप से प्राप्त किया जा सकता है। उच्च राशि, त्रिकोण, उपचय आदि कम बिंदुओं में  होने से प्रभावहीन या निष्फल हो जाते हैं।


कुल ३३७ सर्वाष्टक बिंदुओं को १२ से भाग देने पर औसत लगभग २८ आता है। अतः २८ वह औसत अंक है जिससे तुलना करने पर किसी भाव में बिंदुओं का कम या अधिक होना माना जा सकता है। 

सामान्य सिद्धांत  
  1. कोई  भी राशि या भाव जहाँ २८ से अधिक बिंदु हों, शुभ फल देगा। जितने अधिक बिंदु होंगे फल उतना ही अच्छा होगा। इसके विपरीत उन भाव या राशियों में जिनमे २८ से कम बिंदु होंगे, अशुभ फल मिलेंगे। व्यवहार में २५ से ३० के बीच बिंदुओं को सामान्य फलदायी ही माना जाता है। दूसरे शब्दों में यही कहा जायेगा कि यदि बिंदु ३० से ऊपर हों तभी कोई भाव/राशि विशेष शुभ फल देगी।
  2. वह ग्रह प्रभावित हो जाता है जो भाव/राशि में स्थित है जहां बिंदु कम हैं , चाहे वह स्थान उसका उच्च, स्वक्षेत्री, केन्द्र या त्रिकोण ही क्यों न हो, और चाहे वह लग्न से उपचय (३, ६, १०, ११) स्थानों में ही क्यों न स्थित हो। तात्पर्य यह है कि इस ग्रह को अन्य ग्रहों से समर्थन नहीं मिल रहा।
  3. इसके विपरीत वे ग्रह भी शुभ फल देंगे जो अपने नीच स्थानों में अथवा दुःस्थानों, जैसे ६, ८, १२ में हों, किंतु वहां बिंदु अधिक हों। कुछ विद्वानों का मत इससे भिन्न हैं।
  4.  यदि नवें, दसवें, ग्यारहवें और लग्न - इन सभी में ३० से अधिक बिंदु हों तो जातक का जीवन समृद्धिपूर्ण होगा। इसके विपरीत यदि इन भावों में २५ से कम बिंदु हों तो जातक को रोग और बेबसी की ज़िन्दगी भोगनी पड़ेगी।
  5. यदि ग्यारहवें घर में दसवें घर से ज़्यादा बिंदु हों और ग्यारहवें घर में बारहवें घर से ज़्यादा, साथ ही लग्न में बारहवें घर से ज़्यादा बिंदु हो तो जातक सुख-समृद्धि का जीवन भोगेगा।
  6. जातक भिखारी का जीवन जियेगा यदि लग्न, नवम, दशम और एकादश स्थानों में मात्र २१ या २२ या और कम बिंदु हों और त्रिकोण स्थानों में अशुभ ग्रह बैठे हों। 
  7. यदि चन्द्रमा सूर्य से निकट होने के कारण पक्षबल से रहित हो, चन्द्र राशि के स्वामी के पास कम बिंदु (जैसे २२) हों और उसे शनि देखता हो तो जातक पर दुष्टात्माओं का प्रभाव रहेगा। यदि राहु भी चन्द्रमा पर प्रभाव डाल रहा हो तो इस परिणाम में कोई संशय नहीं रहेगा।
  8. जब-जब कोई अशुभ ग्रह ऐसे भाव पर गोचर वश विचरण करेगा जिसमे २१ से कम बिंदु हों तो उस भाव से संबंधित फलों की हानि होगी।
  9. इसके विपरीत, जब कोई ग्रह किसी ऐसे घर में विचरण करता है जहाँ ३० से अधिक बिंदु हों तो उस भाव से संबंधित शुभ फल मिलेंगे जो उस ग्रह के कारकत्व और और संबंधित कुंडली में उसे प्राप्त भाव विशेष के स्वामित्व के अनुरूप होंगे।
  10. इसी तरह ग्रह जिन राशियों के स्वामी होते हैं और जिन राशियों/भावों में वे स्थित होते हैं, उन स्थानों से संबंधित अच्छे फल वे अपनी दशा-अन्तर्दशा में देंगे। सूक्ष्मतर विश्लेषण के लिए दशा-स्वामी के भिन्नाष्टक वर्ग का अध्ययन करना चाहिये।
  11. जिस भाव में ३० से अधिक बिंदु हों और एक साथ कई ग्रह उसमें गोचरवश विचरण कर रहे हों तो उस अवधि में वे उस भाव के शुभ फलों को कई गुणा कर देंगे। फलों का स्वरुप इस बात पर निर्भर करेगा कि संबंधित भाव कौन सा है और गोचर के ग्रहों का मूल लग्न में स्थान कहाँ है और उनके कारकत्व क्या है।
  12. जब (किसी विशेष दिन) उस राशि का उदय हो रहा हो जिसमें न्यूनतम बिंदु हैं और उस दिन चिकित्सकों से सलाह करके रोग का उपचार प्रारम्भ किया जाये तो जल्दी स्वास्थ्य-लाभ मिलने की संभावना होती है। उसी तरह उस समय में यदि ऋण लिया जाये तो उसे चुकाने की क्षमता भी जल्दी ही अर्जित हो जाती है।
  13. किसी विवाह के सुखी और सफल होने के लिए वर और वधू की चन्द्र राशियों के बिंदु एक दूसरे की जन्म कुंडलियों में ३० से अधिक होने चाहियें।
  14. जन्म लग्न एवं उससे दूसरे, चौथे, नवें, दसवें और ग्यारहवें भाव के बिंदुओं का योग करें। यदि यह योग १६४ से अधिक है तो जातक समृद्ध होगा। संख्या १६४ को 'वित्ताय' कहते हैं जो वित्तीय समृद्धि का द्योतक है।
  15.  इसी तरह छठे, आठवें और बारहवें घर के बिंदुओं का योग करें। यदि यह योग ७६ से काम आये तो आय व्यय से अधिक होगी। संख्या ७६ को तीर्थ का नाम दिया गया है।
  16. प्रथम, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम एवं दशम भाव के बिंदुओं का योग करें। ये भाव जातक में अंतर्मुखी प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह योग यदि शेष छः भावों (बहिर्मुखी प्रवृत्तियों के द्योतक) के बिंदु योग से अधिक है तो जातक संतोषी जीव होगा और ज्ञान-ध्यान, सत्कर्म और दान-पुण्य से आतंरिक शांति पायेगा। विपरीत स्थिति में जातक हमेशा अपने से बाहर सुख ढूंढेगा जिसके कारण उसका मन लालच, छल-कपट, झूठे दिखावे और अहंकार से ग्रस्त रहेगा। 
  17. कुंडली के बारह भावों को चार वर्गों में बांटा जा सकता है। (क) बंधु - प्रथम, पंचम एवं नवम भाव  (ख) सेवक - द्वितीय, षष्ठ एवं दशम भाव (ग) पोषक - तृतीय, सप्तम एवं एकादश भाव (घ) घटक - चतुर्थ, अष्टम एवं द्वादश भाव। 

तीव्र फलोदय का सिद्धांत :- 

विभिन्न भावों में सर्वाष्टक बिंदुओं की तुलना करें। यदि घर में न्यूनतम बिंदु हैं और उससे अगले घर में अधिकतम, तो जातक जीवन में अचानक ऊपर उठेगा। यदि दोनों अंकों में अंतर काफी ज़्यादा हुआ तो जातक उतनी ही अधिक तीव्र उन्नति का अनुभव करेगा। इसके विपरीत यदि एक घर से दूसरे घर में अधिकतम बिंदुओं से न्यूनतम बिंदुओं की गिरावट हो तो जातक जीवन के किसी या कुछ क्षेत्रों में हानि का सामना करेगा। जहाँ इन घरों में न्यूनतम और अधिकतम बिंदुओं का अंतर मामूली होगा वहां जातक करीब-करीब एक-सी और धीमी प्रगति का अनुभव करेगा। यदि इस तरह के तीव्र अंतर कई भावों के बीच होंगे तो जातक का सारा जीवन उतार-चढ़ाव से भरा रहेगा - यानि कभी राजा तो कभी रंक।

त्वरित भविष्यवाणियों के लिए सर्वाष्टकवर्ग विधि का एक सिद्धान्त अत्यंत लोकप्रिय है :-
  1. यदि एकादश भाव में दशम भाव से अधिक बिंदु हो तो जातक अपेक्षाकृत कम प्रयासों से अधिक लाभ पाएगा। मुख्यतः लग्न से एकादश भाव के सन्दर्भ में यह नियम लागू किया जाता है, लेकिन अन्य भावों से एकादश भाव के संदर्भ में भी इस नियम का उपयोग किया जा सकता है। 
  2. अगर इस स्थिति के विपरीत जातक का बारहवां भाव दूसरे भाव से अधिक प्रबल हो तो इसका अभिप्राय आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था में यही होगा कि वह अपने पारिवारिक व्यवसाय में न लग कर, विदेश में अपना भाग्य आजमायेगा और वहां उस पर लक्ष्मी की कृपा होगी। कौन सा परिणाम कहाँ लागू होगा, यह देखने के लिये जन्म कुंडली में दूसरे योगों को भी देखना होगा।
  3. यदि बारहवें भाव में ग्यारहवें से अधिक अंक हों तो इसका अभिप्राय कोई एक हो सकता है, जैसे (क) आय से अधिक व्यय, जिसका परिणाम होगा कर्ज में डूबना  (ख) विदेशी स्रोतों से आय, यह स्थिति उन लोगों की जन्म कुंडलियों में देखी जाती है जिनके सितारे मातृभूमि से बाहर किसी देश में चमकते हैं। ऐसे में चतुर्थ भाव और उसके स्वामी का का किंचित पीड़ित होना लगभग अनिवार्य होता है।
  4. यदि दूसरे भाव में बारहवें भाव से अधिक बिंदु हों तो जातक में आमोद-प्रमोद पर व्यय करने के बजाय धन को जोड़ने की प्रवृत्ति अधिक होगी। ऐसे लोग कभी जल्दबाज़ी में ख़रीदारी नहीं करते बल्कि बारीकी से मोलभाव करते हैं। दो स्थानों के बिंदुओं में अंतर जितना ज़्यादा होगा यह प्रवृत्ति उतनी ही उत्कृष्ट रूप से सामने आयेगी।

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