Friday, December 30, 2016

षोडश योग

षोडश योगों के विचार के बिना वर्ष कुंडली का अध्ययन अधूरा ही रहता है। षोडश यानि सोलह योगों का निर्माण लग्नेश तथा कर्मेश की पारस्परिक स्थिति के आधार पर बनता है। वर्ष लग्न पद्धति मूलतः यवनों में प्रचलित थी। उन्हीं के द्वारा भारत में लाई जाने के कारण इन योगों के नाम अरबी-फ़ारसी भाषा के ही हैं।
वर्ष कुंडली में निम्न सोलह योग बहुत ही महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं:-
इक्कबाल योग  - यदि वर्षकुण्डली में सभी ग्रह केन्द्र (१, ४, ७, १०) तथा पणफर (२, ५, ८, ११) स्थानों में (अष्टम स्थान को छोड़कर) पड़े हों यानि ३, ६, ८, ९, व १२वें स्थान में कोई ग्रह न हो तो इक्कबाल योग होता है। यह योग सुख, यश, धन, प्रगति, संतान-प्राप्ति एवं भाग्यवृद्धि का परिचायक है।

इन्दुवार योग - वर्षकुण्डली में सभी ग्रह आपोक्लिम (३, ६, ९, १२) स्थानों में हों तो इन्दुवार योग होता है। इस योग के होने से सामान्य सुख की प्राप्ति होती है, परन्तु वर्ष-भर चिंता व परेशानी बनी रहती है। 

इत्थशाल योग - इस योग को समझने के लिए ग्रहों की गति एवं राशिगत अंशों पर ध्यान देना होगा। कुछ ग्रह शीघ्रगामी होते हैं तो कुछ मंदगति। मंदगति ग्रह के राशिगत अंश अधिक हों और शीघ्रगति ग्रह के अंश कम हों, वर्ष के मध्य किसी भी समय शीघ्रगति ग्रह अधिक अंश चल कर मन्दगति ग्रह के अंश के बराबर जायें तो इस प्रकार शीघ्रगति ग्रह मंदगति ग्रह को उसके अंश के बराबर पहुँच कर उसे अपना तेज देता है। इसे इत्थशाल योग कहते हैं।  
 
उदहारण - सूर्य ३ राशि ८ अंश तथा मंगल ३ राशि १२ अंश पर हैं, सूर्य १ दिन में १ अंश चलता है। मान लीजिये मंगल की उस समय की चाल ४५ कला प्रतिदिन है। १६ दिन में सूर्य १६ अंश चल कर ३ राशि २४ अंश हो जायेगा तथा मंगल १६ दिन में १६ x ४५ = ७२० कला या १२ अंश आगे बढ़कर ३ राशि २४ अंश हो जायेगा। 
 
परन्तु इत्थशाल योग में कुछ दशाएं आवश्यक हैं -
 
क)  दोनों ग्रहों में से एक लग्नेश होना चाहिये।
ख) दोनों ग्रह एक-दूसरे को देखते हों। 
ग) दोनों ग्रह दीप्तांश के भीतर हों। 
 
दोनों  ग्रहों में मूलतः ३० कला से कम का अंतर हो तो पूर्ण इत्थशाल योग बनता है। लग्नेश का प्रत्येक भाव के स्वामी के साथ इत्थशाल हो सकता है। जिस भावेश (कार्येश) का लग्नेश के साथ इत्थशाल होगा, उस भाव का फल वर्ष में अवश्य घटित होगा। षष्ठेश, अष्टमेश, तथा द्वादशेश का लग्नेश से इत्थशाल हो तो वर्ष में इन भावों से सम्बन्धित अशुभ घटनाएं (रोग, मृत्यु, व्यय, शत्रुभय) अधिक होंगी। इसके विपरीत द्वितीयेश, पंचमेश, नवमेश, व एकादशेश से इत्थशाल होना शुभ है। 
 
इसराफ़ योग - यह इत्थशाल योग से विपरीत है। इसके अन्तर्गत तीन आवश्यक दशाएं तो वे ही हैं जो इत्थशाल योग में हैं परन्तु तीव्रगामी ग्रह के अंश मन्द ग्रह से अधिक होते हैं, जिससे तीव्रगामी ग्रह मन्दगति ग्रह से अधिक दूर होता चला जाता है। अशुभ भावों के स्वामी से इसराफ़ योग शुभ होता है क्योंकि इसराफ़ योग अशुभ भावों के अशुभ फल की हानि (नष्ट) करता है, जैसे रोग-हानि, मृत्यु-हानि व व्यय-हानि यानि रोग न हो, मृत्यु न हो, व्यय न हो आदि। शुभ भावों के स्वामी से भी इसराफ़ योग इतना हानिकारक नहीं है। 
 
नक्त योग - जिस भाव के सम्बन्ध में विचार करना हो, उस भाव का स्वामी (कार्येश) व लग्नेश एक-दूसरे को न देखते हों, परन्तु इन दोनों के बीच में एक तीव्रगामी ग्रह हो, जो दोनों को देखता हो, बीच वाला ग्रह पीछे वाले ग्रह से तेज ले कर आगे वाले ग्रह को देता है। इस योग को नक्त योग कहते हैं। इससे कार्यसिद्धि किसी अन्य व्यक्ति के सहयोग से होती है। 
 
यमय योग - इस योग में लग्नेश व कार्येश दीप्तांश के भीतर हो, पर दृष्टि न हो। इन दोनों के बीच में तीसरा मंद ग्रह हो, जो दोनों को देखता हो। यह मंद ग्रह पीछे वाले ग्रह से तेज लेकर आगे वाले ग्रह को देता है। इससे भी कार्य तीसरे व्यक्ति के सहयोग से होता है। 
 
मणऊ योग - लग्नेश व कार्येश के इत्थशाल में बाधा डालने वाला योग मणऊ योग है। शनि या मंगल, जिसकी दोनों में से एक पर शत्रु दृष्टि हो तथा उनके दीप्तांश के भीतर हो तो यह पाप ग्रह इत्थशाल योग में खलनायक का कार्य करता है। यह योग अशुभ एवं कार्यनाशक है। 
 
कम्बूल योग - जब लग्नेश व कार्येश का इत्थशाल हो और चंद्रमा दोनों में से किसी एक से भी इत्थशाल करे तो कम्बूल योग होता है। यदि दोनों ग्रह उच्च या स्वराशिस्थ हों तो उत्तम कम्बूल योग तथा दोनों नीच या शत्रुक्षेत्री हों तो अधम कम्बूल योग, परन्तु एक उच्च या स्वक्षेत्री और एक नीच या शत्रुक्षेत्री और एक नीच या शत्रुक्षेत्री हो तो माध्यम कम्बूल योग होता है। 
उत्तम कम्बूल  योग लग्नेश और कार्येश के इत्थशाल योग के शुभ फल की वृद्धि करता है। 
 
गैर कम्बूल योग -  जब चन्द्रमा लग्नेश कार्येश को नहीं देखता हो, अपनी राशि के अंतिम अंशों में हो और अपनी राशि में जाकर किसी अन्य (गैर) बली ग्रह से कम्बूल करे तो गैर कम्बूल योग होता है। यह योग भी तीसरे व्यक्ति की सहायता से कार्यसाधक है। 
 
खल्लासर योग - लग्नेश और कार्येश में इत्थशाल हो, पर चन्द्रमा शून्यमार्गी (वह ग्रह जो न उच्च का है न नीच का, न शुभ ग्रह दृष्ट हो न ही अशुभ ग्रह दृष्ट हो न मित्र ग्रही हो और न शत्रु ग्रही हो, यानि एकाकी असम्बद्ध हो) हो, लग्नेश या कार्येश से कम्बूल न करे और न ही किसी अन्य ग्रह से गैर कम्बूल करे तो या योग खल्लासर कहलाता है। यह योग कार्य को बिगाड़ने वाला होता है। 
 
रद्द योग - यदि लग्नेश अथवा कार्येश जिनका इत्थशाल हो, वक्री, अस्तंगत, नीच अथवा ६, ८, १२वें घर का स्वामी हो तो वह कार्य को नष्ट (रद्द) करता है। यह योग प्राणघातक, शत्रुओं को बढ़ाने वाला एवं उन्नति में बाधक है। 
 
दुफालि कुत्थ योग - इत्थशाल करने वाले लग्नेश व कार्येश में से मंदगति ग्रह बली (उच्च, स्वराशिस्थ, वर्गोत्तम) हो, पर तीव्रगामी ग्रह में ये गुण न हो (निर्बल हो) तो यह योग होता है। इसमें भी कार्यसिद्धि होती है, पर सफलता की गति धीमी होती है। 
 
दुत्थ कुत्थीर योग - यदि लग्नेश व कार्येश में इत्थशाल होते हुए भी दोनों निर्बल हों तो दुत्थ कुत्थीर योग होता है। इसमें भी तीसरे व्यक्ति की सहायता से कार्य होता है।  
 
तम्बीर योग - जब लग्नेश व कार्येश में इत्थशाल न हो, उनमें से एक ग्रह राशि के अंतिम अंशों में रह कर अगली राशि में किसी बली ग्रह से इत्थशाल करे तो तम्बीर योग होता है। इससे वर्ष में सुख-शान्ति बढ़ती है। 
 
कुत्थ योग - वर्षकुण्डली में जब लग्नेश व कार्येश केन्द्र तथा पणफर में स्थित हो, पंचवर्गी तथा हर्ष बल के अनुसार बली हो तो कुत्थ योग होता है। इस योग से वर्ष में सफलता, उन्नति तथा हर्ष होता है। 
 
दुरुफ योग - यह कुत्थ योग से विपरीत है। जब वर्षकुण्डली में सभी ग्रह आपोक्लिम में स्थित हों या पंचवर्गी हर्ष बल के अनुसार निर्बल हों तो दुरुफ योग होता है। यह योग वर्ष भर संताप देने वाला, कष्टदायक तथा प्राणघातक है।
इस प्रकार वर्षकुंडली का फलादेश करते समय उक्त सोलह योगों पर विचार करना भी आवश्यक है। 

यह अनमोल कृति ज्योतिष के विद्वान "श्री रघुनन्दनप्रसाद जी" की अनमोल कृति है जिसका प्रकाशन इस ब्लॉग के पड़ने वालों के ज्योतिष-ज्ञान में वृद्धि के लिए किया गया है। 

Tuesday, December 6, 2016

Astrology Basics

TIME LIMIT

A Day = 24 hours
An Hour = 60 minutes
A Minute = 60 seconds
1 Day = 86,400 seconds

THE HINDU TIME TABLE

A day = 60 ghatikas 
A Ghatikas = 60 vighatikas
A Vighati = 60 liptas
A Lipta = 60 viliptas
A Vilipta = 60 paras
A Para = 60 tatparas
1 Day = 46,656,000,000 tatparas

Time is eternal. It cannot be measured. But, a change may happen in a thing, as mud becoming a pot by the labour of a potter. This new form may be said to have started a certain particular time and its destruction by being broken etc. also may be indicated by a certain time. This duration or interim period when it existed as a pot, is the limitation of time for the thing. 

Astrology may be divided into six divisions: 
  1. Vegetable Horoscopy - This indicates the seasons and mostly relates to crops and weather conditions.
  2. Animal Horoscopy - This indicates animals, their increase, decrease etc. 
  3. Human Horoscopy - This speaks of human beings.
  4. Mundane Horoscopy - This refers to countries and places.
  5. Horary Horoscopy - This type of horoscopy deals with knowing future through prasna or questioning time.
  6. Electional Horoscopy or Muhurt - This speaks of methods of selection of auspicious time for performance of important functions in life. 
As can be seen Moon takes 27 days to pass through the entire Zodiac. Sun takes about a month to pass through each Rasi. But the next month will not commence unless the New Moon has taken place and this will mean roughly another two days and a quarter making a total of 29-1/4 days. The difference in the Lunar and Solar months would become too great. Therefore, in Lunar System once in about three years, a year gets thirteen months to bring it into conformity with the Solar years.
 
The year is divided into 12 months. 
 
The Lunar months are:-
  1. Chaitra
  2. Vaisakha
  3. Jyestha
  4. Ashada
  5. Sravana
  6. Bhadrapada
  7. Aswina
  8. Karthika
  9. Margashira
  10. Pushya
  11. Magham
  12. Phalguna
When Moon finishes a round and Amavasya or New Moon occurs, a month ends and the next begins from the first day after the New Moon.

The months got their names from the fact that on the Full Moon day, during the month of Chaitra Nakshatra will be Chittra. 
  1. Vaisakha - Visakha
  2. Jyestha - Jyestha
  3. Ashada - Purvashada
  4. Sravana - Sravana
  5. Bhadrapada -Bhadrapada
  6. Aswina - Aswini
  7. Karthika - Kruttika
  8. Margashira - Mrigasira
  9. Pushyam - Pushyami
  10. Magha - Makha
  11. Phalguna - Uttara Phalguni
The Solar year has also twelve months called - 
  1. Chittrai 
  2. Adi
  3. Alpisi
  4. Thai
  5. Vykasi
  6. Avani
  7. Karthikai
  8. Masi
  9. Ani
  10. Perattasi
  11. Margali
  12. Panguni
These months are calculated according to the entry of Sun into each Rasi from Mesha. 

Each year is said to produce certain effects independently on its own and that refers not to individual  but has a distinct bearing on mundane horoscopy with particular reference to general masses. 

Name of Planet              Takes to move in a sign or Rasi
Sun - Surya                           about one month
Moon - Chandra                     about 2 1/4 days
Mars - Mangal or Kuja            about 45 days
Mercury - Budha                    about a month
Jupiter - Guru                        about a year
Venus - Sukra                        about a month
Saturn - Sani                         about 2 1/2 years (Two and Half Year)
Dragon's Head - Rahu/
Ascending Node                     about 1 1/2 years (One and Half Year)
Dragon's Tail - Kethu
Descending Node                   about 1 1/2 year (One and Half Year)
 
Sun and Moon never have a retrograde motion but have an accelerated or retarded motion. 
 
Rahu and Kethu have always a retrograde motion. 
 
All other planets have direct, retrograde, accelerated or retarded motion.
 
This extract has been taken from "Indian Astrology" written by great astrologer Sh. C.J. Krishnasamy.

Saturday, September 10, 2016

Few Important Facts

Good luck often is not the result merely of your own personal actions that it may also depend on future events and on the people you come across. 
  1. Planets are only an index of things to happen and they do not cause the events. 
  2. Accumulated Karma during the past birth may be experienced not only by the person concerned but also by his descendants. 
  3. One undergoes the consequences of one's previous karma from birth to death and this is known from his horoscope.
  4. The Creator Brahma was written on the foreheads of all living beings with their fates, which are deciphered by the astrologers through their pure insight. 
  5. The first and last letters in the word Ahoratra are removed and the word Hora is thus born and has come to exist. 
  6. The  Signs Aries etc. represent the limbs of Kalapurusha as under, Aries - Head, Taurus - Face, Gemini - Arms, Caner - Heart, Leo - Stomach, Virgo - hip, Libra - Space below Navel and private parts, Scorpio - Private Parts, Sagittarius - Thighs, Capricorn - Knees, Aquarius - Ankles, Pisces - Feet. If at birth one had benefic planet in a particular sign, the particular limb will be strong. A malefic makes such a limb weak.
  7. The Rasi Chakra with 12 Rasis is called Bhagana. Six signs counted from Leo to Capricorn consist of Solar Half and the Sun rules this Half Zodiac. Six signs in the reverse order from Cancer to Aquarius are Lunar Half and ruled by the moon. Barring Cancer and Leo, planets from Mars to Saturn get one Rasi each in each Half. If at birth more planets occupy the Solar Half, the native is brilliant and, if more planets are in Lunar Half, he is soft, good and lucky. 
  8. The effects of a horoscope should be predicted according to the divisions of Houses. Without knowing the strength of such Lords, one cannot lay even a step forward in the direction of astrology. 
  9. The first Navansa of a Movable Rasi, the 5th one in a Fixed Rashi and the 9th one in Common (Dual) Rashi are called Vargothamamsa. Should the natal lagna be in such Vargothama Navansa, the native becomes an important person in his circle. The rulers of Dwadasamasas start from the Rashi itself. 
  10. From Aries onwards alternatively the Rashis are known,  as malefic and benefic on the one hand and male and female on the other hand. These are also classified as Chara (Movable), Sthira (Fixed, Immovable) and Dvisvabhav (Ubhaya, Dual, Common) Rashis. The ending portions of Cancer, Scorpio and Pisces are called Gandanta. It is said, that one born in Gandanta will not survive. He will either lose his mother, or he will end the dynasty, i.e. he is the last of his descent and will not have any children. 
  11. The four Rashis from Aries onwards indicate East, South,  West and North, while the remaining Rashis repeat in the same way. A journey undertaken by a person towards the direction indicated by the Lagna, or the Moon (at the commencement of Journey) yields fruitful results. 
  12. Human Signs, quadruped Signs, Scorpio and watery Signs are, respectively, strong in the directions commencing from the East. Further during night-time quadruped Signs, day-time human, or biped Signs and the second half of Capricorn, Scorpio, Cancer and Pisces are strong at the time of daybreak and of nightfall. 
  13. Gemini, Cancer, Capricorn, Aries, Taurus and Sagittarius are night Signs. Leo, Libra, Scorpio, Aquarius, Pisces and Virgo are day Signs. The Signs Cancer, Capricorn, Aries, Sagittarius and Taurus are called Prishtodaya, which rise with hind part. Sirshodaya Signs (rising with head) are Leo, Libra, Scorpio, Virgo, Aquarius and Gemini. The Sign Pisces is Ubhayodaya (rises with both head and hind part). 
  14. If a Rashi is aspected by its Lord, or by a planet, that is friendly to its Lord, or by Mercury, or by Jupiter, it is said to be strong. Planets other than the above do not lend strength by aspect. 
  15. The adjoining houses with reference to Angles (Kendra) are Panaphara. The Houses next to Panapharas are Apoklimas. The planets in Angles give effects in ones boyhood. The effects of planets in Panapharas are felt in the middle age, while the planets in Apoklima give result at the conclusion of the natives life. 
  16. The 6th, 10th, 11th and 3rd are called Upachaya Houses, while the 1st, 2nd, 4th, 5th, 7th, 8th, 9th and 12th are Anupachayas. 
  17. From Aries onwards the following 12 colours are alloted to the various Rasis, respectively, red, white, green, pink, brown, gray, variegated, black, golden, yellow, deep-brown and white. If an idol of the Lord of the Ascendant is made in the colour alloted and is worshipped, the native will destroy his enemies, just as Lord Indra destroyed the demons.

Sunday, August 14, 2016

ग्रहों की अवस्थाएं

राशि, अंशों, भावों तथा पारस्परिक सम्बन्धों के अनुसार ग्रहों की भिन्न-भिन्न प्रकार से अवस्थाएं मानी गयी हैं। ग्रह अपनी अवस्थानुसार ही फल देते हैं। ग्रहों की अवस्था का वर्गीकरण निम्नानुसार है:-

१. अंशों के आधार पर अवस्था 

अंशों के आधार पर ग्रहों को पांच आयुवर्गों में बांटा गया है। विषम राशियों में बढ़ते हुए अंशों में बालक से मृत तथा सम राशियों में घटते हुए अंशों में बालक से मृत के क्रम में ग्रहों की आयु मानी गयी है। 

क)  ग्रह विषम राशियों में ६° तक बालक, ६° से १२° तक कुमार, १२° से १८° तक युवा, १८° से २४° तक वृद्ध तथा २४° से ३०° तक मृत अवस्था में रहता है। 

ख) ग्रह सम राशियों में ३०° से २४° तक बालक, २४° से १८° तक कुमार, १८° से १२° तक युवा, १२° से ६° तक वृद्ध तथा ६° से नीचे मृत अवस्था में होता है। 

इस वर्गीकरण को नीचे दिये गए चक्र में दर्शाया गया है :-


बाल्यावस्था में ग्रह का फल कम, कुमारावस्था में आधा, युवावस्था में पूर्ण, वृद्धावस्था में कम तथा मृतावस्था में नगण्य रहता है। 

२. चैतन्यता के आधार पर अवस्था 

क)
 विषम राशि में ग्रह १०° तक जागृत, १०° से २०° तक स्वप्न तथा २०° से ३०° तक सुषुप्तावस्था में रहते हैं।

ख)  सम राशि में ग्रह १०° तक सुषुप्त, १०° से २०° तक स्वप्न तथा २०° से ३०° तक जागृत अवस्था में रहता है।


ग्रह की जागृत अवस्था कार्यसिद्धि करती है, स्वप्नावस्था मध्यम फल देती है तथा सुषुप्तावस्था निष्फल होती है।

३. दीप्ति के अनुसार अवस्था

क)  दीप्त - उच्च राशिस्थ ग्रह दीप्त कहलाता है। जिसका फल कार्यसिद्धि है।

ख ) स्वस्थ - स्वगृही ग्रह स्वस्थ होता है, जिसका फल लक्ष्मी व कीर्ति प्राप्ति है।

ग) मुदित - मित्रक्षेत्री ग्रह मुदित होता है, जो आनन्द देता है।

घ) दीन - नीच राशिस्थ ग्रह दीन होता है, जो कष्टदायक होता है।

ड़ ) सुप्त - शत्रुक्षेत्री ग्रह सुप्त होता है, जिसका फल शत्रु से भय होता है।

च) निपीड़ित - जो ग्रह किसी अन्य ग्रह से अंशो में पराजित हो जाये उसे निपीड़ित कहते हैं, यानि एक ग्रह की गति तीव्र हो तथा वह किसी दूसरे ग्रह से कम अंशों पर उसी राशि में हो, परन्तु गति वाला ग्रह उस ग्रह के बराबर अंशों में आगे आकर बढ़ जाए तो पीछे रहने वाला ग्रह पराजित अथवा निपीड़ित ग्रह कहलाता है, जिसका फल धनहानि है।

छ) हीन - नीच अंशोन्मुखी ग्रह हीन कहलाता है, जिसका फल धनहानि है।

ज) सुवीर्य - उच्च अंशोन्मुखी ग्रह सुवीर्य कहलाता है, जो सम्पत्ति वृद्धि करता है।

झ) मुषित - अस्त होने वाले ग्रह को मुषित कहते हैं, जिसका फल कार्यनाश है।

ञ) अधिवीर्य - शुभ वर्ग में अच्छी कांति वाले ग्रह को अधिवीर्य कहते हैं, जिसका फल कार्यसिद्धि है।

४. क्षेत्र, युति तथा दृष्टि के आधार पर अवस्था 

क) लज्जित - पंचम स्थान में राहु-केतु के साथ अथवा सूर्य, शनि या मंगल के साथ अन्य ग्रह लज्जित होता है।

ख ) गर्वित - उच्च राशि या मूल त्रिकोण का ग्रह गर्वित होता है।

ग) क्षुधित - शत्रु के घर में, शत्रु से युक्त अथवा दृष्ट अथवा शनि से दृष्ट ग्रह क्षुधित होता है।

घ) तृषित - जल राशि (कर्क, वृश्चिक, मीन) में शत्रु से दृष्ट, परन्तु शुभ ग्रह से दृष्ट न हो तो ग्रह तृषित कहलाता है।

ड़ ) मुदित - मित्र के घर में, मित्र से युक्त, अथवा दृष्ट अथवा गुरु से युक्त ग्रह मुदित कहलाता है।

च) क्षोभित - सूर्य से युक्त, पाप या शत्रु से दृष्ट ग्रह क्षोभित कहलाता है।

फल -

क) जिस भाव में क्षुधित या क्षोभित ग्रह हों उस भाव की हानि करते हैं।

ख) गर्वित या मुदित ग्रह भाव की वृद्धि करते हैं।

ग) यदि कर्म स्थान में क्षोभित, क्षुधित, तृषित अथवा लज्जित ग्रह हों तो जातक दरिद्र तथा दुःखी होता है।

घ) पंचम स्थान में लज्जित ग्रह संतान नष्ट करता है।

ड़) सप्तम स्थान में क्षोभित, क्षुधित अथवा तृषित ग्रह पत्नी का नाश करता है।

कुल मिला कर गर्वित व मुदित ग्रह एक प्रकार से सुख देते हैं, जबकि लज्जित, क्षुधित, तृषित एवं क्षोभित ग्रह कष्ट देने वाले होते हैं। 

५. सूर्य से दूरी के अनुसार अवस्था 

क) अस्तंगत - सूर्य से युक्त ग्रह (राहु केतु को छोड़कर) अस्त कहलाते हैं। चंद्रमा सूर्य से १२°, मंगल १०°, वक्री बुध १२°, मार्गी बुध १४°, गुरु ११°,  वक्री शुक्र ८°, मार्गी शुक्र १०° तथा शनि १५° की दूरी तक सूर्य की प्रखर किरणों के कारण अस्तंगत होते हैं। ऐसे ग्रहों को मुषित कहते हैं।

ख ) उदयी - सूर्य से उपरोक्त अंशों से अधिक दूर हो जाने पर ग्रह उदय हो जाते हैं।

पूर्वोदयी -  जो ग्रह सूर्य से धीमा हो तथा सूर्य से अंशों में कम हो उसका उदय पूर्व में होता है।

पश्चिमोदयी - जो ग्रह सूर्य की अपेक्षा तीव्र हों तथा सूर्य से अधिक अंशों पर हो, उसका उदय पश्चिम से होता है।

पूर्वास्त - जो ग्रह सूर्य की अपेक्षा तीव्र हों और सूर्य से कम अंशों में हों, उसका अस्त पूर्व में होता है।

पश्चिमास्त - जो ग्रह सूर्य की अपेक्षा धीमा हो और सूर्य से अधिक अंशों में हों, उस ग्रह का अस्त पश्चिम में होता है।

६. गति के अनुसार अवस्था - 

क) सूर्य तथा चंद्रमा सदैव मार्गी रहते हैं। मेष से वृषभ, मिथुन आदि के क्रम में चलने वाले।

ख) राहु और केतु सदैव वक्री रहते हैं। मिथुन से वृषभ आदि के क्रम में चलने वाले।

ग) शेष ग्रह मंगल, बुध, गुरु व शनि सामान्यतः मार्गी होते हैं पर बीच-बीच में वक्री भी हो जाते हैं।

घ) इन ग्रहों की गति  मार्गी से वक्री तथा मार्गी से वक्री होते समय अति मंद हो जाती है।

ड़) यह ग्रह वक्री होने के कुछ दिन पहले व कुछ दिन बाद तक स्थिर दिखाई पड़ते हैं।

इनकी वक्री व स्थिर होने की अवधि निम्नानुसार है:-


वास्तव में कोई ग्रह वक्री या स्थिर नहीं होता  है। पृथ्वी तथा उस ग्रह की पारस्परिक गतियां तथा सूर्य के संदर्भ में उस ग्रह की सापेक्ष स्थिति के सम्मिलित प्रभाव में ऐसा लगता है मानो कोई ग्रह ठहर गया हो या उल्टा चलने लग गया हो।

७, सूर्य से भावों की दूरी के अनुसार अवस्था - 

क ) सूर्य से दूसरे स्थान पर ग्रहों की गति तीव्र हो जाती है।

ख ) सूर्य से तीसरे स्थान पर सम तथा चौथे स्थान पर गति मंद हो जाती है।

ग)  सूर्य से पांचवे व छठे स्थान पर ग्रह वक्री हो जाता है।

घ)  सूर्य से सातवें व आठवें स्थान पर ग्रह अतिवक्री हो जाता है।

ड़ ) सूर्य से नवें व दसवें स्थान पर ग्रह मार्गी हो जाता है।

च)  सूर्य से ग्यारहवें व बारहवें स्थान पर ग्रह पुनः तीव्र हो जाता है।

 क्रूर ग्रह वक्री  होने पर अधिक क्रूर फल देते हैं, परन्तु सौम्य ग्रह वक्री होने पर अति शुभ फल देते हैं। 

Tuesday, August 9, 2016

Triple Transit Triggering Influence

The significant events are triggered by the interplay of the relationship between transit planets and natal planets/Most Effective Points. The result generated depend upon the significations ruled by the planets involved, the significations ruled by their mooltrikona houses, the significations ruled by their houses of placement, either natally or in transit, and/or the significations ruled by the natal house(s) whose Most Effective Points are under transit impact. This is called the Triple Transit Triggering Influence (TTT) as it is true for the three possible combinations of transit influence i.e. transit over natal, transit over transit, and natal over transit. In other words:
  1. Whenever any weak natal planet/Most Effective Point is transited by Functional Malefics, it triggers a significant undesirable incident concerning the weak natal planet or that weak house, whichever is the case. This is more so when the weak natal planet or the lord/significator of the weak house is weak in transit too. 
  2. Whenever any strong natal planet/Most Effective Point is transited by Functional Malefics, it triggers a mild unfavourable incident concerning that planet or house whichever is the case. 
  3. Whenever any weak natal Functional Benefic/Most Effective Point is transited by Functional Benefic(s), it triggers hopes or non-significant happy incidents concerning that planet or house, whichever is the case. 
  4. Whenever any strong natal Functional Benefic/Most Effective Point is transited by Functional Benefic(s), it triggers significant happy incidents concerning that strong natal planet or that strong house, whichever is the case. This is more so when the planet or the lord/significator of the house is strong in transit too. 
  5. Whenever planets in transit form close conjunctions amongst themselves, the happenings occur depending upon their functional nature in connection with the houses with reference to a particular ascendant. 
  6. If the close conjunction or aspect(s) of planets in transit involve two or more Functional Benefic(s) with reference to a particular ascendant, it triggers happy events pertaining to all the planets. 
  7. If one of the planets involved in close conjunction or aspect in a transit planetary movement is a Functional Malefic, it harms the significations of the other Functional Benefic(s) involved with reference to a particular ascendant. 
  8. If both or all the planets forming close conjunction in transit with reference to a particular ascendant are Functional Malefic(s), it harms the significations of all the planets involved. 
  9. Whenever any weak transit planet forms close conjunction with or become closely aspected by natal Functional Malefic(s), it triggers a significant undesirable incident concerning that weak transit planet. This is more so when the planet is weak in rasi too. 
  10. Whenever any strong transit planet forms close conjunction with or become closely aspected by natal Functional Malefic(s), it triggers a mild unfavourable incident concerning that strong transit planet. 
  11. Whenever any weak transit Functional Benefic forms close conjunction with or become closely aspected by natal Functional Benefic(s), it triggers hopes or non-significant happy incidents pertaining to that weak transit planet. 
  12. Whenever any strong transit Functional Benefic forms close conjunction with or become closely aspected by natal Functional Benefic(s), it triggers significant happy incidents pertaining to that strong transit planet. This is more so when the planet is strong in rasi too. 
  13. The transit effects are always seen with reference to the natal ascendant. 
  14. In setting the trends, the sub-period lord has maximum say. However, the transit impacts mentioned above supersede the trend results of the sub-period lord. 
  15. The malefic transit impact of slow moving Functional Malefic(s) like Jupiter, Saturn, Rahu and Ketu is more pronounced when, during the course of their close conjunctions/aspects, they move more slowly as compared to their normal speed or become stationary. This is true both for natal and transit influence. 
  16. During the sub-periods of the Functional Benefic(s), the transit impacts of Functional Benefic(s) are stronger while transit impacts of Functional Malefic(s) are mild. If the sub-period lord is strong, then the transit influences of Functional Benefic(s) cause significant happy events. 
  17. During the sub-periods of Functional Malefic(s), the transit impacts of Functional Benefic(s) are mild while the transit impacts of Functional Malefic(s) are more severe. If the transit influences are from strong Functional Benefic(s), then the benefic results may be comparatively better but with some delay. 
  18. The duration of the transit results ceases to exist as soon as the transit close conjunction or aspect separates. The orbit of separation would depend upon the strength of the planets on which the transit influence have been created. 
  19. Whenever a transiting Functional Malefic transits the Most Effective Point of any house, it afflicts that house as well as the aspected house(s). A transit Functional Malefic never afflicts its own mooltrikona  house, except when the functional malefic planet is already afflicted and/or afflicts from a dusthana/malefic house. 
  20. A transit of Functional Malefic will always afflict its natal position by conjunction or aspect, except when natally placed in its own mooltrikona house. 
  21. A natal Functional Malefic will always afflict its transit position by aspect even when transiting its own mooltrikona house. 
  22. A natal Functional Malefic will always afflict its transit position by conjunction, except when placed in its own mooltrikona house.
This extract has been taken from System Approach for Interpreting Horoscopes written by Sh. V.K. Choudhry and Sh. K. Rajesh Chaudhary.

Strong and Weak Planets

Strong Planets

A strong natal planet protects and promotes its general significations and the significations of its mooltrikona house. Any planet is considered strong when its longitude is within 5 to 25 degrees and it is not in the state of weakness. 

It can increase its strength if:
  • it occupies own or good navamasa and other divisions. 
  • it is under the close influence of functional benefic planets. 
  • it occupies its exaltation, mooltrikona sign. 
  • it is placed in the Sun-like houses, that is the second, third and ninth houses.
Any planet has capacity to bless the native with its results if its natal strength is at least 60% and it is unafflicted. In such a situation the results may come with some delay and of slightly lower order. With the help of the strengthening measures the strength of the planets, where it is less than 60% can be brought to the level of 60% so that it blesses the native with the significations ruled by it.  

Weak Planets

A weak natal planet is not capable of fully protecting/promoting its general significations and the significations of its mooltrikona house during the course of its sub-periods and during the triple transit functional malefic influences. A planet become weak when:
  • The most effective point of its mooltrikona sign is afflicted by a functional malefic planet within an orb of one degree. 
  • The most effective point of its house of placement is afflicted by a functional malefic planet, within an orb of one degree for mooltrikona signs of within an orb of five degrees for non-mooltrikona signs. 
  • It is conjunct or aspected by any functional malefic planet within an orb of one degree. 
  • It is combust due to its nearness to the Sun.
  • It occupies  malefic houses from the ascendant, except it it is in own mooltrikona sign. 
  • It occupies its sign of debilitation. 
  • It is in infancy or old-age.
  • It occupies its debilitated sign in navamsa. 
  • It occupies the mooltrikona sign of a weak planet. However, its strength would be equal to the strength of its dispositor. 
In case of special or multiple afflictions, the otherwise "strong" planet is considered afflicted (and weak) even when the orb of affliction is of two degrees. 

The affliction is special or multiple i.e. when it comes from:

a conjunction with / aspect from the most malefic planet, 
an aspect from a functional malefic planet placed in a dusthana/malefic house, 
a conjunction with Rahu or Ketu (Rahu-Ketu axis), 
an aspect of a functional malefic planet afflicted by other(s) functional malefic planet,
more than one functional malefic planet at the same time.

Fairly Strong Planet

A Planet which has at least 70% power, is unafflicted and well placed, is considered as a fairly strong planet. 

Mild Affliction 

An affliction to the extent of 25% or less to a strong or fairly strong planet or the most effective point of a non-mooltrikona sign house is considered as a mild affliction. 

Quantitative Strength Analysis

The quantitative strength analysis for the planets can be obtained with the help of the following insights:
  • A planet will lose strength to the extent of 75% if its mooltrikona sign house is afflicted. 
  • A weak planet placed in an afflicted house will lose strength to the extent of 75%. 
  • An otherwise strong planet placed in a non mooltrikona sign afflicted house will lose strength to the extent of 50%. Such a planet may give good results in the first place and will cause setbacks later. 
  • A closely afflicted weak planet will lose strength to the extent of 75%. 
  • A closely afflicted otherwise strong planet will lose strength to the extent of 50%. Such a planet will give good results in the first place and will cause setbacks later. 
  • A planet becoming weak due to close combustion will lose strength to the extent of 75% if the Sun is a functional malefic planet. When the Sun is a functional benefic and it causes combustion to another planet, the planet will become 50% weak for the purpose of transit affliction. A combust planet in its sign of debilitation and placed in a malefic house will have only 10% power. 
  • When planets are placed in the malefic house, they generally lose strength by 50% besides suffering through the significations of the malefic house. The placement in the sixth house can involve the person in disputes, debts and can cause serious obstructions for the significations ruled by the planet. The placement in the twelfth house can cause expenses and losses for the significations of the planet.
  • When planets are placed in their signs of debilitation, they lose strength by 50%. When planets are placed in their signs of debilitation in birth chart and navamsa, they lose strength by 75%. 
  • If in the birth chart the planet is badly placed and at the same time debilitated in navamsa it would lose strength to the extent of 60%. 
  • A badly placed planet in its sign of debilitation will lose its power by 75%.
  • A planet debilitated in navamsa would lose power by 25%.
When the lord of the Sixth house is in the ascendant the person gets involved in controversies. Discussing such a person also breed controversies.

Conjunction and Aspect

Conjunction

Conjunction is the apparent coincidence or proximity of two or more celestial objects as viewed from the earth. The conjunction can be exact or close. If the difference in the longitudes happens to be less than one degree, the resulting conjunction is known as an exact conjunction. If the difference in longitudes is within five degrees, the same is known as a close conjunction. 

Aspects

The aspects are partial and full. In the Vedic System of Astrology, we are concerned with only full aspects. Each planet is believed to aspect fully the seventh house, reckoned/counted from the placement of the former.  In addition to this i.e. the seventh aspect, planets posited outside the orbit of the earth (Mars, Jupiter and Saturn) as well as Rahu and Ketu have additional special full aspects as under:-
  • Saturn aspects third and tenth houses from its location.
  • Mars aspects fourth and eight houses from its location. 
  • Jupiter, Rahu and Ketu aspect fifth and ninth houses from their location.
Planets influence other houses/planets aspected by them favourably or unfavourably, depending upon their functional nature in the horoscope. The principle of exact or close aspect is identical to exact or close conjunction i.e. when a planet casts its aspect on another planet(s) or on the most effective point of house(s) within an orb of one degree, the aspect is known as an exact aspect. If the difference in planetary longitudes is within five degrees, then the aspect is known as close aspect. 


The natal close or exact aspects/conjunctions give long term impact. The transit close aspect/conjunctions give short term impact during the course of transit influence. 

Wide Conjunctions or Aspects

The conjunctions or aspects with more than five degrees of longitudinal difference are wide conjunctions or aspects. These do not have permanent impact in life except the short lived transit influences on the planets involved in wide conjunction or aspects. The wide aspects give their results in later part of life, say around 60 years or after

The aspect of a functional benefic planet  will be effective corresponding to the strength of the planet(s) /house(s) involved. If the aspecting functional benefic planet is weak due to any reason including debilitation its effectiveness will be weak and limited, but its close aspect will always act as a helping force. The close aspect of a functional malefic planet, except on the most effective point of its own mooltrikona houses, will always act as a damaging force. 

Afflicted Planets or Houses

The afflictions to the planets or houses are caused by the close conjunction or aspect of the functional malefic planets in a nativity. Whenever a planet or a mooltrikona house is already weak for any other reason and is under the close influence of any functional malefic, it is treated as an afflicted planet / house. But when the planet or the mooltrikona house is not weak for other reasons, it can be considered afflicted either under the exact influence of a functional malefic for normal afflictions or under the orb of influence of two degrees for special / multiple afflictions, becoming a weak planet/house for that reason. So whenever, any planet or mooltrikona house is afflicted, it becomes weak not being capable of fully protecting / promoting its significations. The significations of the houses having mooltrikona sign of an afflicted planet are harmed more when such planets are already weak for other reasons. 

Whenever a non-mooltrikona house is under the close influence of any functional malefic, it is treated as an afflicted house. If not placed in its own mooltrikona sign, any planet become afflicted just by mere placement in any of the dusthanas/malefic houses. 

The Most Effective Point of a House

Besides the natal position of the planets, there is the most effective point (MEP) of each house known by the degree rising in the ascendant. The close impact of the planets in the case of houses is gauged through their closeness to the natal positions. Suppose an ascendant of 16 degrees rises. It means the most effective point of each house would be 16 degrees. In case the lord of a mooltrikona house is weak or in case of non-mooltrikona houses, a functional malefic planet having a longitude between 11 to 21 degrees will afflict these houses either by placement or by aspect. In case the lord of a mooltrikona house is "otherwise" strong, that house will only become afflicted under the single influence of a functional malefic planet having a longitude between 15 to 17 degrees, or under the multiple/special influence of functional malefic planet(s) having longitudes between 14 to 18 degrees. That "otherwise" strong lord will become weak for this reason. 

The influence of any functional malefic planet over its own mooltrikona house will never be malefic.  

Wednesday, August 3, 2016

शनि, राहु और केतु - परिचय


शनि -

शनि का व्यास १,२०,००० किलोमीटर, परिभ्रमण काल १० घंटे ३८ मिनट तथा परिक्रमण काल २९. ४६ वर्ष है। शनि के चारों ओर ७ प्रकाशमान छल्ले हैं।  शनि ग्रह से विचित्र संगीत की भिनभिनाहट की ध्वनि की खोज की गयी है। इसके १७ उपग्रह हैं। शनि एक राशि पर ढ़ाई (२½) वर्ष रहता है।  शनि काला, तमोगुणी, वायु तत्त्व, स्त्री नपुंसक पाप ग्रह है। यह पश्चिम दिशा, संकर जातियों तथा शिशिर ऋतु का स्वामी है। यह  एक ठंडा व शुष्क ग्रह है। शनि अंधकार, दुर्भाग्य, हानि तथा संकट का प्रतीक है, परन्तु इसके बलवान होने पर यह विपत्तियां कम हो जाती हैं।  शनि वायु का अधिपति तथा विपत्ति का अधिष्ठाता है। प्राचीन काल में Satan (शैतान) या Satar (शातिर) के नाम पर इसका नाम Saturn (शनि) पड़ा है। कान, दांत, अस्थियों, वायु रोग व स्नायु से सम्बन्धित रोगों विचार शनि से किया जाता है। अंग्रेज़ी शिक्षा, आयु, जीवन, मृत्यु, शारीरिक बल, उदारता, विपत्ति, प्रभुता, ऐश्वर्य, मोक्ष, जमीन-जायदाद, खानों तथा छठे, आठवें, दसवें व बारहवें भाव का कारक शनि है। बुध और शुक्र शनि के मित्र, गुरु सम, तथा सूर्य, चंद्र और मंगल शत्रु हैं।  शनि तुला राशि में 1°  से 20° तक उच्च, परन्तु  20° पर परमोच्च, मेष राशि में 1° से 20° तक नीच, परन्तु 20° पर परमनीच, कुम्भ राशि में 1° से 20° तक मूलत्रिकोण में व कुम्भ में ही 20° से 30° तक स्वगृही है। यह मकर व कुम्भ राशियों का स्वामी है। इसकी पूर्ण दृष्टि तीसरी, सातवीं तथा दसवीं हैं। 

राहु (Dragon's Head or Ascending Node of the Moon)

चंद्रमा की कक्षा पृथ्वी की कक्षा के साथ 5° का कोण बनाती हुई पृथ्वी की कक्षा को दो विपरीत स्थानों पर काटती है। इन दोनों कटान बिंदुओं को ज्योतिष में छाया ग्रह माना गया है। जिस कटान बिंदु से चंद्रमा पृथ्वी के कक्षा तल से ऊपर आता है, वह राहु (Dragon's Head or Ascending Node of the Moon) कहलाता है। जिस कटान बिंदु से चंद्रमा पृथ्वी के कक्षा ताल से नीचे उतरता है वह केतु (Dragon's Tail or Descending Node of the Moon) कहलाता है। यह दोनों बिंदु एक-दूसरे से 180° दूर है तथा विपरीत दिशा में सरकते हुए दिखाई देते हैं।  यह १८ वर्ष में पुनः उसी स्थान पर आ जाते हैं। पृथ्वी, चंद्रमा व सूर्य के इन बिंदुओं को सीध में आने तथा 5° के कोण का अंतर कम हो जाने पर ग्रहण होते हैं। इसीलिए कहा जाता है राहु चंद्रमा को ग्रस्ता है। राहु तमोगुणी, कृष्णवर्णी तथा पाप ग्रह है। यह कुंडली में जिस स्थान पर बैठता है, उसकी प्रगति को रोकता है। राहु मद का अधिष्ठाता है। राहु लगभग १८ माह तक एक राशि पर रहता है। यह सदैव वक्री रहता है तथा प्रत्येक राशि में इसके अंश कम होते जाते हैं। मिथुन राशि में उच्च 20° पर परमोच्च, धनु राशि में नीच 20° पर परमनीच तथा कुम्भ के 6° तक मूल त्रिकोण में होता है। शुक्र तथा शनि राहु के मित्र तथा सूर्य, चंद्रमा व मंगल शत्रु हैं। इसकी पूर्ण दृष्टि पांचवी, सातवीं, नवीं व बारहवीं है। 

केतु (Dragon's Tail or Descending Node of the Moon) - 

केतु सदैव राहु से 180° दूर रहता है। इसके अंश, कला और विकला समान रहते हैं। केतु धब्बेदार काले रंग का तमोगुणी पाप ग्रह है। हाथ, पैर, पेट व चर्म रोगों का विचार केतु से किया जाता है। केतु धनु राशि में उच्च 20° पर परमोच्च, मिथुन राशि में नीच 20° पर परम नीच तथा सिंह राशि में 6° तक मूल त्रिकोण में होता है। यह भी राहु की तरह वक्री ग्रह है। सिरविहीन होने के कारण यह दृष्टिविहीन भी है। कुछ विद्वान राहु की दृष्टि के समान ही केतु की दृष्टि भी मानते हैं। 

Saturday, July 30, 2016

Jupiter Transit in Virgo

Jupiter as most benefic planet will transit in Virgo on August 11, 2016 and will remain in this position till September 12, 2017. Jupiter is the KARAKA for Children, Wealth, Finance and Wisdom and husband in female chart. It is the significator of good fortune, luck and happiness in family life, marital bonding and fertility. When we are connected with Jupiter, he helps us to rise above a situation and get a bird's eye view so that we may improve our life situations. Jupiter helps us aspire for things that we thought were beyond the boundaries of our imagination. Jupiter will also facilitate better development of our intuitive abilities, otherwise known as the sixth sense. 
As the teacher of the Gods (Dev Guru) Jupiter leads you towards growth and abundance by removing ignorance in Virgo, combined with the energies of Mercury, the Guru will bring many learning opportunities for us to grow in life. Both Jupiter and Mercury signify knowledge and intelligence, and together in Virgo are the sign of perfection. This astrological combination will help us to make the proper planning and strategize for our futures so that we make health conscious choices and overall life improvements with integrity. 
Jupiter in Virgo will transit in three friendly stars:
  • Uttaraphalguni (Star of the Sun) - Jupiter-Sun combination is good for career growth.
  • Hasta (Star of Moon) - Jupiter-Moon combination will be good for finance and wealth
  • Chitra (Star of Mars) - Jupiter-Mars combination will bring material happiness
This transit is particularly favourable for the Moon signs Taurus, Leo, Scorpio and Capricorn. The sign Sagittarius and Pisces may witness moderate results. The sign who may not have the best of conditions during the transit are Aries, Gemini, Cancer, Virgo, Libra and Aquarius.  This Jupiter transit will bestow financial prosperity and good fortune to people in general. During the transit energies of the planet will influence different areas of our life, depending on the position of Jupiter in our horoscope.

Aries

This year Jupiter will transit in the sixth house of your Kundli and this will bring mixed effect on Aries. in this phase you will gain power to compete with your competitors. Fortunate chances of unexpected monetary gains will be possible. You will be able to clear long pending dues or debts. You will be easily misunderstood by others and tend to get easily provoked. So avoid getting into disputes. Challenging domestic problems will be handled with tact and wisdom. Stay cautious of enemies, imposters and fake people. People who are engaged in business or doing job, this time will be very advantageous. Long distance travel will prove to be beneficial. Work related with foreign countries will prove to be beneficial. Problems of digestion will cause troubles to you. Your hard efforts will pave way for progress and development in career. 

Taurus

With Jupiter transit in your fifth house good fortune will help you gain through means of inheritance. Excellent academic performance, admissions in sought-after institutes and appreciation by mentor and instructor is top on cards. It will give a way to enter positivity in your life. Interest in spiritual matters will be more. Blessings of God will help you attract a new life partner if still unmarried. On the other side, married Taurus couples can plan to conceive. Auspicious occasions in your family will usher in happiness and joy. Matters related with children and your education will be peaceful. Delays will be caused in carrying out important activities. But success will enhance your confidence levels. Professional may expect positive changes, promotions and rewards. Jupiter being the lord of eighth house warning to take care of your stomach and foot. 

Gemini

Transit of Jupiter into your 4th house (Karma, Wealth & comfort) is indicating enjoyment of comforts and worldly pleasures. Your hard work and sincerity will be highly appreciated. This time is perfect for switching the job and making an investment. There are chances to have change of residence or Increase of assets like buying a new house or car. Gaining of new friends will widen your circle of influences. Good news from a far off place will gladden your spirits. You will gather knowledge through intense and dedicated study. Things are expected to be smooth on the family and home front as well. Your mother health may fail to be good. These are possible chances to suffer from injuries during driving. You will spend heavily towards unwanted purposes and commitments. 

Cancer

By virtue of self-efforts you will see progress. Better opportunities are waiting this year as predicted. This transit in your 3rd house will help Cancerian to sharpen their creative skills that in resultant will bring appreciation, rewards in their career and profession. There are possible chances of relocating to a different place. You will gain a new friends while participating in social gatherings. Native looking for life partners may get benefited through this transit. Successful outcomes will enhance your self-confidence. Short trips and journeys will render positive results. You will derive satisfaction from travel. Problem in communication may affect harmony in relationship. Misunderstanding with siblings may be possible. Avoid quarrels with brothers and neighbours. Mounting expenses will leave you feeling burdened. You will find it difficult to learn a good name. Friends may turn into foes during this period. Be cautious of your health during this period.   

Leo

With this transit your Monetary gains will be impressive as Jupiter is transiting in to your second house. Investments will generate profits. This period is favourable for savings, especially for the family. There are likely chances to earn a good reputation in your job. Good understanding will prevail in relationship. Promises made will be promptly kept. Auspicious occasions like marriage are bound to occur in your household. Ailments like eye irritations and toothache may cause trouble. Disturbing emotional tendencies may leave you in despair. Chances to utter careless and unmindful worlds will pose problems. Unnecessary mental confusion may prevail in you. Relationship with elders will not be good. Be careful while driving. Love will bloom this year for all lovebirds. 

Virgo

This Jupiter transit is occurring in your first house. Being the lord of your 4th and 7th house it will make your mind peaceful. If you are looking forward to get married then this year is perfect for this. The current planetary movement will be very favourable for couples who are planning a family. Widening your circle of friends will be possible. You will remain focused and keen to attain your targets in your job. There may be chances of promotion or career growth also. Undertaking pilgrimages will give you immense satisfaction. Sudden arrival of visitors to your house will bring cheer to you. Enhancement of lifestyle comforts will be enjoyed. Egoistic tendencies may be harbored by you. Taking major decisions and planning will fail to yield productive results. Since health is likely to get affected, proper care is essential. Expenses towards the health of your mother may be possible. You will see delays in carrying out your routine activities.  

Libra

This year Jupiter is the lord of your third and sixth house and is transiting in your twelfth house. Meeting new people will prove to be beneficial. Monetary gains through availing loans will be possible. Short distance travel will prove to be good and rewarding. Your friendly nature will help attract new friends. You will be able to achieve your goals by tapping your potential. On the darker side, work atmosphere will fail to be conducive for productive output. Health will fail to be satisfactory and care is essential. Lack of pleasing talks may affect harmony in relationship. Relationship with elders will fail to be good. You may be troubled by feelings of insecurity. 

Scorpio

This transit will be favourable for you as Jupiter will move to your 11th house, house for gains and fulfillment of desires. Period of good fortune is foreseen. Financial abundance will be enjoyed. Clarity of mind will empower you to take right decisions.  New and exciting opportunities promise growth in your career. Professionals may taste success, get promotions, rewards and accolades for their hard work and dedication. Students will taste success in competitive examinations. Auspicious occasions like marriage is bound to take place.  Cordial relationship with elder siblings will not prevail. Long distance travel has to be avoided. Avoid too much expectations as it may lead to disappointments. You will find it hard to save considerable amount of money. You may not enjoy the full support of your friends. 

Sagittarius 

Jupiter transit will occur in tenth house of your Kundli. It is the lord of your moon sign and the 4th house. This transit will bring in huge achievements as Jupiter will move to the house of Karma and Profession. You will going to achieve assured success in business and will helps you to expand it more. Service person will derive benefits like increment in salary for your performance. Buying a new house/vehicle will be possible. Celebration of festive occasions in family will bring in cheer and happiness. Profitable investments will yield good returns. You will enjoy the blessings and support of your mother. Unfortunately, this is not a favourable time to take major decisions. Relationship with superiors at work place will fail to be cordial. Getting impatient with difficult situations may be possible. You will suffer from low self-confidence. Excessive stress may cause problems to you. 

Capricorn 

For you this transit is occurring in ninth place and Jupiter is the lord of your twelfth and third house. This will bring a bouquet full of opportunities and possibilities. Your reputation will soar at workplace. There will be a substantial increase in name, fame and respect, both on professional and personal level. Physical fitness will be good. Trips related to work or with family and friends will rejuvenate you. Undertaking of pilgrimages will give you satisfaction. Monetary fortunes will help you enjoy plenty of money gains. Blessings of elders will help you see success. Relationship with your friends may suffer due to misunderstanding. Recurring expenditure towards your father's ill health will cause concern. Spiritual inclinations will make you spend more than expected. Ego related problems are likely to surface. Chances to suffer from back pain will be possible. 

Aquarius 

This transit will going take place in your 8th house and Jupiter will be the lord of your 2nd and 11th house. Through virtue of persistent efforts, your goals will be realized. Gaining through inheritance will be possible. Unexpected money gains will bring in a lot of joy , however, risky investments may burn the savings. Sudden stroke of luck may be witnessed. Jupiter will move into your 8th house, the House of obstruction so be very cautious. It is advisable to avoid lending money and investing in new projects. As time remains unfavourable, it is best to avoid long distance travel. Lack of deep and proper sleep will cause disturbances. Support from elders will not be enjoyed. Lack of pleasing communication may affect relationship. Taking major decisions will not be advisable. Well-being and betterment will be seen due to your intense devotion to God. This transit will prove to be very auspicious if you are going to practice occult science. It suggests you to become self dependent. 

Pisces 

Being the lord of your moon sign as well as 10th house Jupiter will transit in your seventh house which will helpful in fulfillment of long cherished desires. There are good chances to earn name and fame in job. Money inflow will be highly impressive. You will gain contact with new friends and widen your circle of influence. Festive occasions like marriage will bring cheer to your household. Singles might experience a new love blooming in their life. But your relationship with elders will fail to be cordial. Ego related problems may surface with your life partner. Lack of proper communication may result in unnecessary troubles. Lack of understanding may lead to unwanted arguments in relationship. Rising expenditure towards unnecessary purposes may affect financial stability. 

Thursday, July 28, 2016

शनि की साढ़ेसाती एवं ढैय्या

ॐ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। 
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरं ॥ 

शनि ग्रह का भ्रमण, जब साढ़ेसाती की परिधि के भीतर साढ़े सात वर्षों के लिए प्रवेश करता है अथवा करने वाला होता है, तभी इस विषय का ज्ञान रखने वाले व्यक्तियों को एक अप्रत्याशित भय, भ्रांति तथा भ्रम प्रकंपित करने लगता है। शनि समय के संचालक हैं परंतु इसे भ्रम और भ्रांति ही समझ जाना चाहिए कि शनि की साढ़ेसाती अपार कष्ट देने वाली होती है। 

शनि एक राशि पर ढ़ाई वर्ष के लगभग रहते हैं। शनि की गोचर गति सबसे कम हैं जिस कारण से यह मन्दतम ग्रह कहलाते हैं। इनकी अधिकतम दैनिक गति ७ कला तथा वक्री से मार्गी या मार्गी से वक्री होते समय न्यूनतम गति १ कला प्रतिदिन भी हो सकती है। 

शनि की साढ़ेसाती व ढैया 

साढ़ेसाती

चंद्र लग्न से द्वादश भाव में शनि के आने से शनि की तीसरी पूर्ण दृष्टि द्वितीय (धन) भाव पर, सप्तम दृष्टि षष्ठ (रिपु/यश) भाव तथा दशम दृष्टि नवम (भाग्य व धर्म) भाव पर पड़ती है। लग्न के दोनों ओर द्वादश एवं द्वितीय भाव शनि के दुष्प्रभाव से ग्रसित होने से उनके बीच स्थित लग्न भी दूषित हो जाता है। धन, यश तथा आय भाव तो शनि के कुप्रभाव में आ ही जाते हैं और लग्न के दूषित होने से तन, मन एवं सम्मान पर भी कुप्रभाव पड़ता है। इसी कारण साढ़ेसाती जातक के लिए बहुत कष्टदायक होती है। 


इसी प्रकार चंद्र लग्न में शनि के आने पर शनि की तीसरी दृष्टि पराक्रम भाव पर, सप्तम दृष्टि सप्तम भाव पर तथा दशम दृष्टि दशम (कर्म एवं पिता) भाव पर पड़ती है, जिससे क्रमशः पराक्रम (भ्राता), पत्नी एवं कर्म (पिता) के भाव बिगड़ जाते हैं। 


जब शनि जन्म राशि से द्वितीय भाव में आता है तब शनि की पूर्ण दृष्टि चतुर्थ, अष्टम व एकादश भावों पर पड़ती है जो क्रमशः सुख, माता, संपत्ति भाव, आयु भाव तथा लाभ भाव हैं। शनि के जन्म राशि से द्वितीय होने से ये तीनो भाव बिगड़ जाते हैं।  


इस प्रकार  साढ़े सात वर्षों में अधिकांश भावों से संबंधित हानि होती है। 

ढैया 

जन्म राशि से शनि के चतुर्थ या अष्टम स्थान पर आने पर छोटी साढ़ेसाती या ढैया होती है। चतुर्थ शनि होने से शनि की तीसरी पूर्ण दृष्टि षष्ठम भाव पर, सप्तम पूर्ण दृष्टि दशम भाव पर तथा दशम पूर्ण दृष्टि लग्न पर पड़ती है, जिससे इन भावों की हानि होती है। इसी प्रकार शनि के जन्म राशि से अष्टम होने से तृतीय पूर्ण दृष्टि दशम पर, सप्तम पूर्ण दृष्टि द्वितीय पर तथा दशम पूर्ण दृष्टि पंचम भाव पर पड़ती है। अतः क्रमशः कर्म, धन तथा संतान पक्ष दुष्ट प्रभाव में आ जाते हैं। कर्क राशि वाले जातक को तुला (चतुर्थ) तथा कुम्भ (अष्टम) राशि में शनि रहते ढैया होगी। 

दक्षिण भारत (विशेष रूप से कर्नाटक) में साढ़ेसाती से भी अधिक दुष्ट प्रभाव पंचम शनि को मानते हैं।  चंद्र लग्न से पंचम (पुत्र भाव) शनि की पूर्ण दृष्टि सप्तम, एकादश व द्वितीय भावों पर पड़ती है। यदि इस अवधि में शनि नीच, अस्तंगत, शत्रुक्षेत्री तथा पाप ग्रह से युक्त व दृष्ट हो तो अत्यंत वैभवशाली व्यक्तियों को भी फूटे मटके में खाना खिलाता है। 

शनि की साढ़ेसाती सभी के लिए अनिष्टकारक नहीं 

शनि की साढ़ेसाती या ढैया सभी व्यक्तियों के लिए अथवा पूरी अवधि के लिए अनिष्टकारक नहीं होती है।  शनि के गोचर विचार की एक विधा यह भी है कि शनि के साढ़ेसाती या ढैया में प्रवेश करते समय चंद्रमा किस राशि में है, इसका प्रभाव शनि के प्रभाव पर पड़ता है। इसे शनि का चरण विचार कहते हैं।  

यदि शनि के साढ़ेसाती या ढैया में प्रवेश करते समय चंद्रमा जन्म राशि से १, ६ या ११वें स्थान (राशि) में हो तो स्वर्णपाद साढ़ेसाती कहलाती है। यदि चंद्रमा २, ५ या  ९ में हो तो रजतपाद तथा यदि ३, ७ या १० में हो तो ताम्रपाद और ४, ८ या १२ में होने पर लौहपाद साढ़ेसाती कहलाती है। 

स्वर्णपाद पर साढ़ेसाती प्रारम्भ हो तो सब प्रकार का सुख मिलता है। रजतपाद में भाग्य अच्छा रहता है।  ताम्रपाद में सामान्य स्थिति रहती है तथा लौहपाद साढ़ेसाती में धन का नाश होता है। 

साढ़ेसाती अवधि में शनि जिन राशियों में से गुजरेगा उनके नक्षत्रों के स्वामियों के साथ यदि शनि की मित्रता या समता है तो शनि अधिक हानि नहीं करेगा। यदि उन नक्षत्रों के स्वामियों से शनि की शत्रुता है तो अधिक हानि करेगा। 

यदि जन्मकुंडली में शनि उच्च, स्वराशि या मित्रराशि में हों तो ६, ८ या १२ (दुःस्थानों) में स्थित होते हुए भी शनि हानिकारक नहीं होता। परंतु शनि नीच राशिस्थ, अस्तंगत या शत्रुक्षेत्री होने पर अधिक अशुभ फल देता है। इसी प्रकार गोचर में भी उच्च अथवा नीच राशिस्थ होने पर भी फल में अच्छा या बुरा प्रभाव पड़ता है। यदि शनि पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो उसका फल अधिक अशुभ होता है। इसके विपरीत यदि उस पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो उसके अशुभ फल में कमी आ जाती है। 

साढ़ेसाती जातक को प्रायः हानि ही करती है किसी को प्रारंभ में, किसी को मध्य में तो  किसी को अंत में।