ज्योतिष प्रत्येक मनुष्य के क्रिया-कलाप का दर्पण है। ज्योतिष में ही चरित्र का स्पष्ट चित्रण प्राप्त होता है। जीवन में कामकला या सेक्स का अपना महत्त्व है। ज्योतिष में इस बात को समझा गया है और बिच्छू (वृश्चिक) का निवास गुप्तांग ही निर्धारित किया गया है। राशि के वर्गीकरण में ही हमारे पूर्वजों द्वारा इसकी व्याख्या कर दी गयी है। अपनी राशि के अनुसार इस विधि को अपनाकर प्रत्येक जातक अपना दाम्पत्य जीवन सुखमय बना सकता है। प्रत्येक राशि के अनुसार इसका ज्योतिषसम्मत विवरण प्रस्तुत है।
मेष - इस राशि की स्त्री कुंडली दशा अनुकूल हो तो प्रायः वैशाख (अप्रैल-मई) में गर्भाधान करती है। इस अवधि में इसमें वासना की मात्र भी ज़्यादा होती है। इसकी ऋतु ग्रीष्म है। प्रायः गर्भाधान और प्रसव का इस राशि की स्त्री का यही समय है। यह राशि पृष्ठोदय है। पृष्ठोदय यानि रात्रि में बली। इस स्त्री को रात में ही मैथुन सुख अच्छा लगता है। दिन के समय में किया गया मैथुन इसको अप्रिय होता है। उसमें यह रस नहीं लेती। यह राशि चतुष्पदी है। अतः इसे चौपाये आसन में या पृष्ठ भाग से किये गये मैथुन में विशेष सुख मिलता है और यह तृप्ति का अनुभव करती है। इस राशि का निवास वन है अतएव इसे सर्वथा एकान्त पसंद है। घर में कोई जागता रहेगा, भले ही न देख सके पर उसे इसका आभास होगा तो मैं खट्टा हो जाता है। इस राशि के ललाट पर बार-बार चुम्बन कर पुरुष इसे बहुत उत्तेजित कर सकता है। अगर यह ठंडी पड़ी होगी तो उपर्युक्त अनुकूल वातावरण पाकर पति को चरम सुख प्रदान करेगी। राशि चर होने से इसका शरीर आघातों द्वारा या कंधे पकड़कर, निरंतर स्तन मंथन करके हिलाते (चलायमान) रहना चाहिए। इस राशि के पुरुष को भी इसी प्रकार की लीला में सुख मिलता है। अतएव अन्य राशि की स्त्री को इसके साथ समझौता-सामंजस्य कायम कर लेना चाहिये।
राशि क्षत्रिय होने के कारण इस राशि के स्त्री-पुरुषों को 'युद्ध की स्थिति में विशेष सुख मिलता है। अपने संपूर्ण तैयार हथियारों के साथ एक-दूसरे पर हमला होना, इनका विशेष गुण है। एक-दूसरे को पराजित करने की प्रतिद्वन्दिता भी विद्यमान रहती है। तत्त्व अग्नि होने के कारण इनको पसीना बहुत जल्दी आता है और यह शीघ्र गरम (उत्तेजित) हो जाते हैं। कृत्तिका नक्षत्र का केवल प्रथम चरण (अ) होने के कारण इनका मैथुन कर्म बहुत काम विकृत होता है। प्रायः शुचिता का ध्यान रखते हैं। अश्विनी और भरणी के पूरे चार चरण होने के कारण कुशलतापूर्वक और दृढ़ता के साथ वह मैथुन कर्म करते हैं।
इस राशि के जातक (स्त्री-पुरुष) दोनों अश्लील वार्ता कम करते हैं और गंभीरता को ओढ़े रहते हैं। मैथुन से पूर्व, मैथुन के समय, मैथुन के उपरान्त किसी प्रकार के विकृत शब्द नहीं निकालते हैं। इनकी क्रिया सीत्कारहीन होती है। ध्वनि नहीं करते हैं। बंद कमरे के बाहर कान लगाकर कोई सुनना चाहे तो उसको आभास भी नहीं हो सकता कि भीतर क्या हो रहा है।
इस क्रिया के पूर्व आलिंगन-चुम्बन प्रायः कामचलाऊ ही करते हैं। समाप्ति पर चुपचाप हट जाते हैं। फिर भी कुछ ऐसा व्यवहार हो जाता है कि इस बात का अनुमान करना कठिन है कि अभी कुछ हुआ है। यह एकदम सामान्य हो जाते हैं।
इस राशि की स्त्री को मैथुन क्रिया के दौरान धूम्रपान करना अच्छा नहीं लगता है और न ही वह धूम्रपान करना पसंद करती है। वैसे यह बड़े सुरुचिपूर्ण और स्वच्छ ढंग से इस क्रिया को करते हैं। इस स्त्री के केश, रोम अगर शरीर पर हों तो बहुत मुलायम होते हैं। आकृति भेड़ होने के कारण स्त्री की त्वचा सुचिक्कण होती है और वह क्रिया के समय भेड़ के समान सीधेपन का व्यवहार करती है। वैसे इस स्त्री के उत्तेजना केन्द्र ललाट के अलावा अन्य स्थान पर भी हो सकते हैं, पर सिर के नीचे नहीं होंगे - पलक, कपोल, होंठ, नासिका, कर्ण, केश, भौंहे इत्यादि इस भाग में पुरुष स्वयं पता कर सकता है।
वृषभ - इस राशि की आकृति बैल के समान है। इस राशि के जातक में ज्येष्ठ (मई-जून) में अधिक वासना रहती है। स्त्रियों में गर्भाधान या प्रसव का माह यही है। ज्येष्ठ इस राशि का माह होने में ऐसा होना स्वाभाविक है। यह एक स्थिर राशि है। इस कारण से इस राशि के स्त्री पुरुष स्थिर भाव से मैथुन करते हैं। एक ही आसन में रहते हैं। बार-बार स्थिति बदलना अच्छा नहीं लगता। इस कारण जब भिन्न राशि की स्त्री या पुरुष बार-बार स्थिति बदलता है तो इस राशि के जातक को नागवार लगता है। यह राशि भी पृष्ठोदय की है। जिस कारण से रात्रिकालीन सम्भोग ही इनको प्रिय है। निवास स्थान खेत या मैदान होने के कारण इनको खुले में ज़्यादा सुख मिलता है। कमरे की खिड़की आदि अवश्य खुली रखेंगे। तत्त्व पृथ्वी होने के कारण बिस्तर पर कम, जमीन या फर्श पर अथवा नंगी भूमि पर इनको बड़ा सुख मिलता है।
इस राशि के स्त्री-पुरुष का उत्तेजना केंद्र चेहरा या गले में कही भी हो सकता है। प्रायः कंधे पर दाँतों के इस्तेमाल से भी सुख मिलता है। इस राशि का पुरुष प्रायः इस क्रिया में अपनी पत्नी के कंधो को मजबूती से पकड़ता है। चुम्बन प्रयोग से जिस स्थान के स्पर्श से जातक आकुल-व्याकुल हो जाये वाही उत्तेजना स्थल हो सकता है। प्रायः इस राशि की स्त्रियों के कुचाग्र चूसने पर वह शीघ्र उत्तेजित और स्खलित होती हैं।
राशि ब्राह्मण होने से उसकी क्रिया शांत, हौले-हौले चलती है। मारकाट/युद्ध वाली दशा नहीं रहा करती है। मेष राशि के ही समान इस राशि वालों को अपनी दिशा पूर्व की और मुख करके इस कार्य को करना चहिये। इनका भी पद चतुष्पद है। इनका यह कर्म बड़ा प्यार-भरा और धीमी गति से (बैल गति) चलता है। पहले, क्रिया के दौरान और अंत में आलिंगन-चुम्बन बराबर करते हैं। इस राशि के जातक के नथुने क्रियारत दशा में तेजी के साथ फूलते और चिपकते हैं। बैल का यह गुण अवश्य होता है। साथ ही यह लम्बी-लम्बी सांसें छोड़ते हैं।
नक्षत्र गुण (कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा) चंचलता, पर सुंदरता के साथ धैर्य के साथ क्रिया करते हैं। कृतिका के ३ चरण के कारण इनकी इस क्रिया में थोड़ी अशुचिता (मेष से कुछ अधिक) होती है। इसके बावजूद यह पवित्रता का ध्यान रखते हैं। कार्य समाप्ति के उपरान्त इस राशि का जातक (स्त्री हो या पुरुष) लंबी-लंबी सांसें अवश्य छोड़ता है। काफी समय तक हांफता है। इस राशि के पुरुष को अपने पौरुष पर बड़ा घमंड होता है तथा घनिष्ठ मित्रों के सम्मुख अपना पौरुष खूब बढ़ा-चढ़ा कर बतलाता है और नाना प्रकार की ढींगे हांकता है। इस राशि की स्त्री भी अपने पति के सभी गुण बढ़ा-चढ़ा कर सहेलियों से बतलाती है।
इस राशि के जातक गुप्तेंद्रिय और मुख का प्रायः संबंध बना लेते हैं। यह इनकी आकृति का स्वभाव है। यह सहजता के साथ इस क्रिया को करते हैं। सामान्यतः यह परस्पर पूर्ण तृप्त होकर ही विलग होते हैं। भिन्न राशि के मिलान के बावजूद इस राशि के साथ दूसरी राशि का चतुराई के साथ मेल बैठ जाता है। इनको नृत्य-गायन का विशेष शौक स्वयं करने या देखने का होता है। इस गुण का उपयोग यह क्रिया के पूर्व अवश्य करते हैं। प्रायः रेडियो ही चालू कर देते हैं। ऐसे अवसर पर इनको संगीतमय वातावरण विशेष प्रिय लगता है। इस राशि के जातकों की स्खलन की मात्र भी रुक-रूक कर अधिक होती है। इस राशि का मैथुन जीवन प्रायः सुखद रहता है। पत्नी इस राशि के पुरुष से संतुष्ट रहती है और स्त्री वृषभ हो, पुरुष अन्य राशि का हो तो अपना तालमेल बैठा लेती है। अनुकूल बना लेना इस राशि का स्वभाव है।
प्रायः यह देर तक इस क्रिया को पूरे सुख के साथ करते हैं। इनमें हड़बड़ी या जल्दबाज़ी नहीं होती है। लिंग से यह स्त्री है, पर अपने में पूरा पौरुष रखती है।
मिथुन - ज्योतिष गणना में इस राशि का निवास गाँव या शयनकक्ष माना गया है। लिंग नर है। द्विस्वभाव है। तत्त्व आकाश है। उभयोदय है। जाति वैश्य है। दिशा दक्षिण-पूर्व है। इन गुणों के कारण इस राशि का मैथुन विचित्रतापूर्ण होता है। इस राशि का उत्तेजना केंद्र गले और बाहों में कही भी हो सकता है। बांहे सहलाने/पकड़ने या दबाने से इनको सुख मिलता है और उत्तेजित होते हैं। दक्षिण-पूर्व दिशा में मुख करके संयोग करने से यह अपना सुख बढ़ा सकते हैं। दिन-रात यह राशि बली है (उभयोदय) अतएव रात दिन कभी भी इनको मैथुन में सुख ही मिलता है। शयनकक्ष में बिस्तर जरूरी है। यह कुछ न कुछ बिछा ज़रूर लेते हैं। नंगी पृथ्वी पर मैथुन करना इनको पसंद नहीं है। यह शयनकक्ष में या कहीं भी मैथुन कर सकते हैं। इनको इस बात की चिंता नहीं होती है कि कोई देख रहा है।
अपने द्विस्वभाव के कारण इनका मैथुन चंचल होता है। मैथुन के दौरान यह पल-पल अपनी स्थिति बदलते रहते हैं। तत्त्व आकाश होने के कारण यह हवाई पुल मैथुन में बाँधा करते हैं। जाति वैश्य कारण इनके मैथुन में वणिक वृत्ति (बनियापन) होती है। वेश्यागामी होने पर पूरी कीमत उसके शरीर से वसूल लेंगे। जब भी कोई नयी वास्तु या सामग्री पत्नी/प्रेमिका को देंगे, उतने ही मूल्य का, ज़्यादा कीमती होने पर कठोर और देर तक, काम कीमती होने पर कुछ देर, साधारण मैथुन अवश्य करेंगे। उसी दिन इस राशि के जातक अपना मूल्य वसूल लेंगे। छोड़ने वाले नहीं हैं। मृगशिरा, आद्रा, पुनर्वसु नक्षत्रों के प्रभाव के कारण चंचलता, पापी और भोगी के पल्ले पड़ने का योग बनता है। चंचलता के साथ पापमय ढंग से यह भोग करते है। इनकी कामवासना मेष-वृषभ से ज़्यादा होती है। कामुकता के कारण इनके प्रेम सम्बन्ध टूट जाया करते हैं।
इस राशि का माह आषाढ़ (जून-जुलाई) है तथा ऋतु शरद है। गुण रजोगुण है। ज़्यादा कामुकता पायी जाती है।
इस राशि का जातक मौन मैथुन नहीं करता है। (वीणावदन करती आकृति, एक युवती) इसके मैथुन में नाना प्रकार की ध्वनियों, सीत्कारें, थपथपाहट होती है ताकि राशि गुण (शयनकक्ष, गाँव) होने से (गांव वाले दूसरे लोग भी सुन ले) प्रभाव पड़ता है। व्यर्थ ध्वनियां बेहद करते हैं, जो सरलता से सुनाई पड़ जाती है। प्रारंभिक क्रिया के दौरान, अंत में इनका प्रेमालाप, प्रेम क्रियाएँ चलती रहती हैं। इसके लिए लोकलाज नहीं के बराबर होती है।
यह अपनी प्रेमिका/प्रेमी, पत्नी/पति से बहुत प्यार करते हैं और बड़ी भावुकता के साथ प्यार करते हैं। जल्दी छोड़ते नहीं है। मैथुन प्रेमालाप के समय के मध्य आंसू, मुस्कान का मेल बराबर होता है। अभी आंसूं बहाया, अगले पल मुस्कराया; इनको अस\\संतोष नहीं होता। यह विवाह के प्रारंभिक दिनों में रात-दिन मिलकर चार-पांच-सात बार भोग कर डालते हैं। सबके देखते-देखते दरवाजा बंद कर क्रिया शुरू कर देंगे। इनको यह अहसास नहीं होता है कि परिवार के अन्य सदस्य क्या सोच रहे होंगे। निर्लज्जता इनके मैथुन का गुण है।
काफी उम्र तक यह भोगी होते हैं। इस राशि की स्त्रियों का मासिक धर्म ४८/५२ के आसपास निष्क्रिय होता है। पुरुष ६०/६५ तक क्रियाशील रहता है।
प्रायः इस राशि की महिला अपने पति को अपना उत्तेजना केंद्र बतला देती है। आमतौर पर इसका दाम्पत्य जीवन सुखद होता है परन्तु कामुकता के कारण दूसरा पक्ष यदा-कदा बहुत घबरा जाता है और कलह की पैदाइश होने लगती है। इस राशि के जातक की संतान भी ज़्यादा होती है।
यह जानकारी ज्योतिष के विद्वान पंडित श्री राकेश शास्त्री जी की अनमोल कृति है। आशा है यह हम सभी का मार्गदर्शन करने में सहायक सिद्ध होगी और हम सभी इस जानकारी से लाभ प्राप्त कर सकेंगे।
राशि क्षत्रिय होने के कारण इस राशि के स्त्री-पुरुषों को 'युद्ध की स्थिति में विशेष सुख मिलता है। अपने संपूर्ण तैयार हथियारों के साथ एक-दूसरे पर हमला होना, इनका विशेष गुण है। एक-दूसरे को पराजित करने की प्रतिद्वन्दिता भी विद्यमान रहती है। तत्त्व अग्नि होने के कारण इनको पसीना बहुत जल्दी आता है और यह शीघ्र गरम (उत्तेजित) हो जाते हैं। कृत्तिका नक्षत्र का केवल प्रथम चरण (अ) होने के कारण इनका मैथुन कर्म बहुत काम विकृत होता है। प्रायः शुचिता का ध्यान रखते हैं। अश्विनी और भरणी के पूरे चार चरण होने के कारण कुशलतापूर्वक और दृढ़ता के साथ वह मैथुन कर्म करते हैं।
इस राशि के जातक (स्त्री-पुरुष) दोनों अश्लील वार्ता कम करते हैं और गंभीरता को ओढ़े रहते हैं। मैथुन से पूर्व, मैथुन के समय, मैथुन के उपरान्त किसी प्रकार के विकृत शब्द नहीं निकालते हैं। इनकी क्रिया सीत्कारहीन होती है। ध्वनि नहीं करते हैं। बंद कमरे के बाहर कान लगाकर कोई सुनना चाहे तो उसको आभास भी नहीं हो सकता कि भीतर क्या हो रहा है।
इस क्रिया के पूर्व आलिंगन-चुम्बन प्रायः कामचलाऊ ही करते हैं। समाप्ति पर चुपचाप हट जाते हैं। फिर भी कुछ ऐसा व्यवहार हो जाता है कि इस बात का अनुमान करना कठिन है कि अभी कुछ हुआ है। यह एकदम सामान्य हो जाते हैं।
इस राशि की स्त्री को मैथुन क्रिया के दौरान धूम्रपान करना अच्छा नहीं लगता है और न ही वह धूम्रपान करना पसंद करती है। वैसे यह बड़े सुरुचिपूर्ण और स्वच्छ ढंग से इस क्रिया को करते हैं। इस स्त्री के केश, रोम अगर शरीर पर हों तो बहुत मुलायम होते हैं। आकृति भेड़ होने के कारण स्त्री की त्वचा सुचिक्कण होती है और वह क्रिया के समय भेड़ के समान सीधेपन का व्यवहार करती है। वैसे इस स्त्री के उत्तेजना केन्द्र ललाट के अलावा अन्य स्थान पर भी हो सकते हैं, पर सिर के नीचे नहीं होंगे - पलक, कपोल, होंठ, नासिका, कर्ण, केश, भौंहे इत्यादि इस भाग में पुरुष स्वयं पता कर सकता है।
वृषभ - इस राशि की आकृति बैल के समान है। इस राशि के जातक में ज्येष्ठ (मई-जून) में अधिक वासना रहती है। स्त्रियों में गर्भाधान या प्रसव का माह यही है। ज्येष्ठ इस राशि का माह होने में ऐसा होना स्वाभाविक है। यह एक स्थिर राशि है। इस कारण से इस राशि के स्त्री पुरुष स्थिर भाव से मैथुन करते हैं। एक ही आसन में रहते हैं। बार-बार स्थिति बदलना अच्छा नहीं लगता। इस कारण जब भिन्न राशि की स्त्री या पुरुष बार-बार स्थिति बदलता है तो इस राशि के जातक को नागवार लगता है। यह राशि भी पृष्ठोदय की है। जिस कारण से रात्रिकालीन सम्भोग ही इनको प्रिय है। निवास स्थान खेत या मैदान होने के कारण इनको खुले में ज़्यादा सुख मिलता है। कमरे की खिड़की आदि अवश्य खुली रखेंगे। तत्त्व पृथ्वी होने के कारण बिस्तर पर कम, जमीन या फर्श पर अथवा नंगी भूमि पर इनको बड़ा सुख मिलता है।
इस राशि के स्त्री-पुरुष का उत्तेजना केंद्र चेहरा या गले में कही भी हो सकता है। प्रायः कंधे पर दाँतों के इस्तेमाल से भी सुख मिलता है। इस राशि का पुरुष प्रायः इस क्रिया में अपनी पत्नी के कंधो को मजबूती से पकड़ता है। चुम्बन प्रयोग से जिस स्थान के स्पर्श से जातक आकुल-व्याकुल हो जाये वाही उत्तेजना स्थल हो सकता है। प्रायः इस राशि की स्त्रियों के कुचाग्र चूसने पर वह शीघ्र उत्तेजित और स्खलित होती हैं।
राशि ब्राह्मण होने से उसकी क्रिया शांत, हौले-हौले चलती है। मारकाट/युद्ध वाली दशा नहीं रहा करती है। मेष राशि के ही समान इस राशि वालों को अपनी दिशा पूर्व की और मुख करके इस कार्य को करना चहिये। इनका भी पद चतुष्पद है। इनका यह कर्म बड़ा प्यार-भरा और धीमी गति से (बैल गति) चलता है। पहले, क्रिया के दौरान और अंत में आलिंगन-चुम्बन बराबर करते हैं। इस राशि के जातक के नथुने क्रियारत दशा में तेजी के साथ फूलते और चिपकते हैं। बैल का यह गुण अवश्य होता है। साथ ही यह लम्बी-लम्बी सांसें छोड़ते हैं।
नक्षत्र गुण (कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा) चंचलता, पर सुंदरता के साथ धैर्य के साथ क्रिया करते हैं। कृतिका के ३ चरण के कारण इनकी इस क्रिया में थोड़ी अशुचिता (मेष से कुछ अधिक) होती है। इसके बावजूद यह पवित्रता का ध्यान रखते हैं। कार्य समाप्ति के उपरान्त इस राशि का जातक (स्त्री हो या पुरुष) लंबी-लंबी सांसें अवश्य छोड़ता है। काफी समय तक हांफता है। इस राशि के पुरुष को अपने पौरुष पर बड़ा घमंड होता है तथा घनिष्ठ मित्रों के सम्मुख अपना पौरुष खूब बढ़ा-चढ़ा कर बतलाता है और नाना प्रकार की ढींगे हांकता है। इस राशि की स्त्री भी अपने पति के सभी गुण बढ़ा-चढ़ा कर सहेलियों से बतलाती है।
इस राशि के जातक गुप्तेंद्रिय और मुख का प्रायः संबंध बना लेते हैं। यह इनकी आकृति का स्वभाव है। यह सहजता के साथ इस क्रिया को करते हैं। सामान्यतः यह परस्पर पूर्ण तृप्त होकर ही विलग होते हैं। भिन्न राशि के मिलान के बावजूद इस राशि के साथ दूसरी राशि का चतुराई के साथ मेल बैठ जाता है। इनको नृत्य-गायन का विशेष शौक स्वयं करने या देखने का होता है। इस गुण का उपयोग यह क्रिया के पूर्व अवश्य करते हैं। प्रायः रेडियो ही चालू कर देते हैं। ऐसे अवसर पर इनको संगीतमय वातावरण विशेष प्रिय लगता है। इस राशि के जातकों की स्खलन की मात्र भी रुक-रूक कर अधिक होती है। इस राशि का मैथुन जीवन प्रायः सुखद रहता है। पत्नी इस राशि के पुरुष से संतुष्ट रहती है और स्त्री वृषभ हो, पुरुष अन्य राशि का हो तो अपना तालमेल बैठा लेती है। अनुकूल बना लेना इस राशि का स्वभाव है।
प्रायः यह देर तक इस क्रिया को पूरे सुख के साथ करते हैं। इनमें हड़बड़ी या जल्दबाज़ी नहीं होती है। लिंग से यह स्त्री है, पर अपने में पूरा पौरुष रखती है।
मिथुन - ज्योतिष गणना में इस राशि का निवास गाँव या शयनकक्ष माना गया है। लिंग नर है। द्विस्वभाव है। तत्त्व आकाश है। उभयोदय है। जाति वैश्य है। दिशा दक्षिण-पूर्व है। इन गुणों के कारण इस राशि का मैथुन विचित्रतापूर्ण होता है। इस राशि का उत्तेजना केंद्र गले और बाहों में कही भी हो सकता है। बांहे सहलाने/पकड़ने या दबाने से इनको सुख मिलता है और उत्तेजित होते हैं। दक्षिण-पूर्व दिशा में मुख करके संयोग करने से यह अपना सुख बढ़ा सकते हैं। दिन-रात यह राशि बली है (उभयोदय) अतएव रात दिन कभी भी इनको मैथुन में सुख ही मिलता है। शयनकक्ष में बिस्तर जरूरी है। यह कुछ न कुछ बिछा ज़रूर लेते हैं। नंगी पृथ्वी पर मैथुन करना इनको पसंद नहीं है। यह शयनकक्ष में या कहीं भी मैथुन कर सकते हैं। इनको इस बात की चिंता नहीं होती है कि कोई देख रहा है।
अपने द्विस्वभाव के कारण इनका मैथुन चंचल होता है। मैथुन के दौरान यह पल-पल अपनी स्थिति बदलते रहते हैं। तत्त्व आकाश होने के कारण यह हवाई पुल मैथुन में बाँधा करते हैं। जाति वैश्य कारण इनके मैथुन में वणिक वृत्ति (बनियापन) होती है। वेश्यागामी होने पर पूरी कीमत उसके शरीर से वसूल लेंगे। जब भी कोई नयी वास्तु या सामग्री पत्नी/प्रेमिका को देंगे, उतने ही मूल्य का, ज़्यादा कीमती होने पर कठोर और देर तक, काम कीमती होने पर कुछ देर, साधारण मैथुन अवश्य करेंगे। उसी दिन इस राशि के जातक अपना मूल्य वसूल लेंगे। छोड़ने वाले नहीं हैं। मृगशिरा, आद्रा, पुनर्वसु नक्षत्रों के प्रभाव के कारण चंचलता, पापी और भोगी के पल्ले पड़ने का योग बनता है। चंचलता के साथ पापमय ढंग से यह भोग करते है। इनकी कामवासना मेष-वृषभ से ज़्यादा होती है। कामुकता के कारण इनके प्रेम सम्बन्ध टूट जाया करते हैं।
इस राशि का माह आषाढ़ (जून-जुलाई) है तथा ऋतु शरद है। गुण रजोगुण है। ज़्यादा कामुकता पायी जाती है।
इस राशि का जातक मौन मैथुन नहीं करता है। (वीणावदन करती आकृति, एक युवती) इसके मैथुन में नाना प्रकार की ध्वनियों, सीत्कारें, थपथपाहट होती है ताकि राशि गुण (शयनकक्ष, गाँव) होने से (गांव वाले दूसरे लोग भी सुन ले) प्रभाव पड़ता है। व्यर्थ ध्वनियां बेहद करते हैं, जो सरलता से सुनाई पड़ जाती है। प्रारंभिक क्रिया के दौरान, अंत में इनका प्रेमालाप, प्रेम क्रियाएँ चलती रहती हैं। इसके लिए लोकलाज नहीं के बराबर होती है।
यह अपनी प्रेमिका/प्रेमी, पत्नी/पति से बहुत प्यार करते हैं और बड़ी भावुकता के साथ प्यार करते हैं। जल्दी छोड़ते नहीं है। मैथुन प्रेमालाप के समय के मध्य आंसू, मुस्कान का मेल बराबर होता है। अभी आंसूं बहाया, अगले पल मुस्कराया; इनको अस\\संतोष नहीं होता। यह विवाह के प्रारंभिक दिनों में रात-दिन मिलकर चार-पांच-सात बार भोग कर डालते हैं। सबके देखते-देखते दरवाजा बंद कर क्रिया शुरू कर देंगे। इनको यह अहसास नहीं होता है कि परिवार के अन्य सदस्य क्या सोच रहे होंगे। निर्लज्जता इनके मैथुन का गुण है।
काफी उम्र तक यह भोगी होते हैं। इस राशि की स्त्रियों का मासिक धर्म ४८/५२ के आसपास निष्क्रिय होता है। पुरुष ६०/६५ तक क्रियाशील रहता है।
प्रायः इस राशि की महिला अपने पति को अपना उत्तेजना केंद्र बतला देती है। आमतौर पर इसका दाम्पत्य जीवन सुखद होता है परन्तु कामुकता के कारण दूसरा पक्ष यदा-कदा बहुत घबरा जाता है और कलह की पैदाइश होने लगती है। इस राशि के जातक की संतान भी ज़्यादा होती है।
यह जानकारी ज्योतिष के विद्वान पंडित श्री राकेश शास्त्री जी की अनमोल कृति है। आशा है यह हम सभी का मार्गदर्शन करने में सहायक सिद्ध होगी और हम सभी इस जानकारी से लाभ प्राप्त कर सकेंगे।
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