कर्क - आकृति से केकड़ा होने के कारण इस राशि के जातकों की त्वचा प्रायः मोटी होती है। शरीर और प्रभाव से यह मोटी खाल के ही होते हैं। लिंग स्त्री होने के बावजूद इस राशि के पुरुषों में पौरुष और स्त्रियों में सहनशक्ति गजब की होती है। इस राशि की महिला कठोरतम मैथुन और प्राणान्तक बलात्कार करने के बावजूद 'उफ़' या अन्य राशि की महिलाओं की तरह हाय-तौबा बिलकुल भी नहीं करती हैं। सब खामोशी के साथ बर्दाश्त कर लेती हैं। अपशब्द, गाली-गलौच और मारपीट का इस पर प्रभाव नहीं होता है। अपनी मर्ज़ी के बिना यह टस से मस नहीं हो सकती है।
यह चलायमान (चर) राशि होने के कारण चंचल (केकड़ा होने के कारण) कठोरतम मैथुनप्रिय होता है और रात्रि बली (पृष्ठोदय) होने के कारण रात्रि में इसे बड़ा सुख मिलता है। पद इसका कीट है, अतएव रेंगकर (लम्बा होकर) मैथुन करना पसंद करता है। इसकी सबसे ज़्यादा कामवासना का समय श्रावण (जुलाई-अगस्त) है। इसी माह प्रायः गर्भाधान या प्रसव करती है। पूर्णिमा की रात अपने ग्रह देवता चन्द्रमा के कारण इस राशि की वासना अवश्य जागती है। इसकी कामोत्तेजना और स्खलन के बिंदु स्तन हैं। उनका मर्दन-चुम्बन, पान इसको उत्तेजना देते हैं और स्खलित करा देते हैं। निवास तालाब/झील होने के कारण इस राशि के स्त्री/पुरुष नदी/जलाशय के पास बसे आवासों/नगरों में अत्यंत सुख पाते हैं। ऐसे स्थानों की इस राशि की महिलाओं में भी कामवासना ज़्यादा होती है।
कीट में गणना के कारण सभी प्रकार का चलायमान मैथुन सभी आसनों में करना स्वभाव होता है। अत्यंत क्रूर-कठोरतम मैथुन होता है। इस राशि के पुरुष के मैथुन से स्त्री पनाह मांगती है और स्त्री से पुरुष को पसीना आ जाता है। इसे संतुष्ट करने में लोहे के चने चबाने पड़ते हैं। जाति से ब्राह्मण होने के बावजूद इसके मैथुन में अपने स्वभाव कीट के कारण शुचिता नहीं होती है। गंदे ढंग से प्रायः मैथुन करता है। मैथुन के समय गति केकड़े के समान, पर अत्यंत कठोर होती है। अपनी चंचलता और कठोरता के कारण विपरीत लिंगी का कचूमर निकाल देते हैं। अन्धकार इनको प्रिय होता है करते समय ध्वनि नहीं करते हैं। इनकी धड़कने चर्म सीमा पर होती हैं और हाँफते बहुत हैं। इनका मैथुन पूर्ण तृप्तिदायक होता है।
अपने नक्षत्रों के कारण इस कार्य में क्रूर, भोगी और हर प्रकार से रूचि रखते हैं। इस राशि के स्त्री/पुरुष इस क्रिया के दौरान अपनी गर्दन अवश्य सिकोड़ते या चलायमान करते हैं। यह उनका एक विशेष गुण होता है। अपने जल तत्त्व के कारण विशेष गरम नहीं होती और पसीना कम निकलता है। दक्षिण दिशा में मुख करके मैथुन कर इस राशि के जातक और भी सुख उठा सकते हैं। प्रेम के मामले में यह पक्के होते हैं और निभाते हैं।
मैथुन के समय यह जरा सी बात पर चिढ़ जाते हैं और क्रिया रोक देते हैं। किसी प्रकार का व्यवधान इनको पसंद नहीं है। मैथुन से पूर्व, मैथुन के समय या बाद में कुछ न कुछ खाने-पीने की इनकी आदत होती है। मुंह चलता रहता है। इनमें स्तंभन शक्ति ज़्यादा होती है। प्रायः शरीर सिकोड़कर केकड़े के समान आकृति बनाकर यह संभोग करते हैं। बीच-बीच में रुक जाया करते हैं। इस क्रिया में सबसे ज़्यादा समय इस राशि के जातकों को ही लगता है। संतान भी अधिक उत्पन्न करते हैं। इस राशि के जातक प्रायः बेहद भावुक होते हैं। मैथुन के समय अन्य भावुकता-भरी क्रीड़ाएं और खूब प्यार करते हैं। प्यार से अपने प्रिय को तर-बतर कर देते हैं। स्खलन इनका कम मात्र में होता है, यह बिना रुके होता है और मैथुन के उपरान्त भी यह शीघ्र अलग नहीं होते। स्खलित होकर उसी अवस्था में देर तक पड़े रहते हैं।
सामान्य तौर पर इनका दाम्पत्य जीवन का यह पक्ष मधुर होता है, पर क्रोधी स्वभाव के कारण मन उखड गया तो फिर वह हफ़्तों मैथुन नहीं करते हैं। दाम्पत्य जीवन सामान्यतः सुखमय होता है पर अपनी इस कामलीला के कारण तनाव और तलाक भी इसी राशि में सबसे ज़्यादा होते हैं।
सिंह - यह राशि सब राशियों में तेजस्वी है। इसका आकार सिंह के समान है और ग्रहाधिपति सूर्य है। सूर्य के गणपति स्वयं ब्रह्मा/रूद्र हैं। इस राशि के जातक अत्यंत तेजस्वी और सुडौल होते हैं। बलिष्ठता तथा सीमा तानकर चलना इसका गुण है। स्त्रियों की आँखें हीरे के समान, कमर सिंह की कमर के समान पतली और लचकदार होती है। विश्व की सुन्दरतम महिलाओं की राशि लगभग यही है। इस राशि के जातकों में भाद्रमास (अगस्त-सितम्बर) में वासना ज़्यादा रहती है। महिलाओं के गर्भवती होने, प्रसूता होने का समय यही माह अधिकतर होता है।
इस राशि के जातकों की कामोत्तेजना का क्षेत्रपट है। प्रायः गुदगुदी से इनको कामोत्तेजना होने लगती है। इनकी कमर दोनों और से पकड़कर मैथुन करने से इनको सुख मिलता है। जाति से क्षत्रिय और स्थिर गुण के कारन एक आसन में ही घोर युद्ध करना इनका स्वभाव है। इस राशि का पुरूष हड्डियां तोड़ कर रख देता है। इसका तत्त्व अग्नि होने से इस राशि में प्रचंड काम होता है तथा पसीने से लथपथ होने के बावजूद जब तक शिकार तोड़ कर नहीं रख देगा, तब तक रुकता नहीं है। इस राशि का पुरूष अपनी पत्नी को पूर्ण रूप से संतुष्ट करने की क्षमता रखता है। प्रचंड भोगी होने के बावजूद इसकी सन्तान अल्प होती है। निवास पर्वत की गुफ़ा होने के कारण एकदम गुफ़ा जैसे स्थान, अन्धकार, खिड़की-दरवाज़े सब बंद ही इसको सुख देते हैं। शीर्षोदय राशि होने के कारण दिन के समय ही 'शिकार' करना इनको बहुत अच्छा लगता है। दक्षिण की और मुंह करके विशेष सुख पाता है।
सांसें कम से कम लेते हैं। हिलना-डुलना पसंद नही। बस, एक सुर में प्रबल रूप से क्रियारत हैं। यह शीघ्र उत्तेजित होता है और स्त्री को देखकर यकायक टूट पड़ता है। इसकी पत्नी तक नहीं भांप सकती कि वह कब टूट पड़ेगा और झपाटे से तोड़कर रख देगा। हौले-हौले या धैर्य का व्यवहार यह नहीं करता। इसका झपट्टा शेर के समान होता है। यह अपना मैथुन हमेशा बलात्कार से शुरू करता है। अपने नक्षत्रों के कारण प्रबल भोगी और क्रूर होता है। वैसे यह जितेन्द्रिय अधिक होता है। मैथुन काम करता है पर जब करता है छक्के छुड़ा देता है। इस राशि की महिला का सेक्स अत्यंत प्रबल होता है। प्रायः इस राशि के स्त्री-पुरूष नोच-खसोट करते हैं। इस राशि के जातक के ही मैथुन में सबसे अधिक नखदंत क्षत होते हैं। राशि चतुष्पदी है। अतएव इसे पशुवत् आसन ही प्रिय है। उकड़ू बैठना बहुत प्रिय है। इस राशि का पुरूष बैठकर ही क्रियारत होना पसंद करता है। क्रिया के दौरान यदा-कदा सिंह के समान गुर्राने के स्वर अवश्य निकालते हैं। चरम सीमा पर अचानक ध्वनियां करते हैं। इस राशि का मैथुन सबसे अधिक ध्वनिमय होता है। शेर की दहाड़ जैसे चारों और गूंजती है, इसी प्रकार इनका मैथुन कमरे से टकराता है।
पहले, दौरान या अंत में यह विशेष लाड़-प्यार नहीं करते। शिकार किया, झपट्टे से चबाया और फ़ेंक दिया। यह तुरंत अलग हो जाया करते हैं। क्षत्रिय स्वभाव के कारण 'खून ख़राबी' ज़रूर करेंगे। स्वछता प्रिय होते हैं। प्रकृतिसम्मत क्रियाओं के अतिरिक्त अन्य प्रकार की क्रियाओं में इनकी रूचि नहीं होती है। पेटू होने के कारण बिना खाये-पिये यह मैथुन नहीं करते हैं। मैथुन के उपरान्त कुछ-न-कुछ खाना इनका स्वभाव है।
अवैध संबंध के मामले में यह कम रूचि रखते हैं। एक ही शिकार से अपना पेट भर लेते हैं। वृद्धावस्था में भी यह नहीं मानते हैं। अपने मरने तक इनमे सेक्स बना रहता है। इस महिला का मासिक भी ५५/५६ की आयु के आसपास ही समाप्त होता है। अपने क्रूर स्वभाव, लिंग नर होने के कारण इस राशि की महिला अत्यंत उग्र होती है। तृप्ति न होने पर वह गुस्से से भर जाती हैं और हाथ-पैर पटकती हैं, अशक्त पति की यह पिटाई भी कर देती हैं। दाम्पत्य जीवन में यह पति से डरती नहीं हैं। इस राशि का पुरूष भी अपनी पत्नी की पिटाई कर देता है। इसके बावजूद इनका मौन जीवन सामान्यतः सुखद ही होता है। वृश्चिक और सिंह का जोड़ा ही सर्वोत्तम माना गया है। बाकी तो किसी प्रकार निर्वाह कर जाते हैं।
कन्या - इस राशि का शरीर अंग कमर है। अतः इस राशि के स्त्री-पुरुषों की कामोत्तेजना का क्षेत्र कमर है। स्त्री के कूल्हे या कमर (बायां भाग) पकड़ने-सहलाने से इनकी कामोत्तेजना जागती है। कमर पकड़कर, उकड़ू बैठकर मैथुन करना इस राशि के पुरूषों का स्वाभाव होता है। तत्त्व पृथ्वी, निवास हरियाली, जल से भीगी जमीन, द्विपद, शीर्षोदय, जाती शूद्र, लिंग स्त्री है। इस कारण नंगी जमीन पर सामान्यतः मानवोचित सम्भोगप्रिय होता है।दिन में विशेष सुख मिलता है। लिंग स्त्री होने के कारण इनमें विशेष कामवासना नहीं होती है।
यह एक अत्यन्त कोमल राशि मानी गयी है। इस कारण सामान्य स्त्री गुण वाले पुरूष को भी लोग कन्या राशि कहकर उसका मज़ाक उड़ाते हैं।
इस राशि के पुरूषों में स्त्रीत्व की अधिकता होती है। जनानापन, अतएव अधिकतर नपुंसक, संभोग असमर्थ, शीघ्र पतन के शिकार रहते हैं। इस राशि का पुरूष पौरुष की कमी के कारण प्रायः अपनी स्त्री/प्रेमिका को संतुष्ट नहीं कर पाता है। इस राशि के लोग ही अधिकतर हिजड़े होते हैं। इस राशि के जातक का स्वभाव बड़ा ही कोमल होता है। बहुत ही नाज़ुक-मिज़ाजी के साथ यह सम्भोग करते हैं। कोई उठा-पटक, बलात्कार, शोरशराबा, आवाज़ें नहीं।
इस राशि की महिलायें अधिकतर ठंडी होती हैं। मैथुन में इनको किसी प्रकार की रूचि नहीं होती है। वृश्चिक, कर्क या सिंह से पाला पड़ जाने पर वह सूख कर काँटा हो जाती हैं। अपने ठंडेपन के कारण यह अरुचि दिखलाती हैं। इस राशि की महिलाएं प्रेमपत्र लिखने में दीर्घसूत्री और अत्यंत संक्षिप्त होती हैं। बनाव-श्रृंगार में रूचि रखती हैं पर मैथुन अश्लीलता में नहीं। दक्षिण-पश्चिम दिशा में सिर कर ज़्यादा सुख मिलता है। गर्भ धारण और कुछ ज़्यादा कामुकता का माह आश्विन (सितम्बर-अक्टूबर) है। इस माह में गर्भ धारण या प्रसव करती हैं। हाँ, रिमझिम बरसते पानी में इनको उत्तेजना मिलती है अथवा हरियाली बिखरी पाकर मैथुनातुर होती है। इनकी कमर की लचक बहुत आकर्षक होती है।
चुपचाप संभोग करना और द्विस्वभाव के कारण कभी इधर, कभी उधर खिसकना, उलटना, पलटना इनकी आदत होती है। रात्रि-दीप की लौ के समान हौले-हौले लहराती है। बस एक-दो फूँक में बुझ (ठंडी) जाती हैं। इनका क्रिया-कलाप क्षणिक होता है। मैथुन के पूर्व, अंत में या मैथुन के दौरान यह उत्तेजना तो बहुत दिखलाती है पर करते कुछ नहीं बनता।
इनका सेक्स जीवन असंतुष्ट, नाना प्रकार की बाधाओं और रोगों से पीड़ित होता है। प्रेम में भी डरपोक होते हैं। इस राशि की स्त्रियों के तलुवे लाल और पैर बहुत सुन्दर होते हैं। उनका आकार प्रायः 'कमल' के समान होता है।
मैथुन में विरक्ति और सबसे अशक्त मैथुन करने वाली एक मात्र यही राशि है और सबमें तो इनको रस मिलेगा पर मैथुन के नाम पर दिल खट्टा कर लेते हैं। सबसे मरियल क़िस्म होती है। लड़कियों के बीच उठना, बैठना और उनसे बात करना अच्छा लगता है तथा स्त्रियोंचित कार्यों में बड़ी रूचि रखते हैं।
इस राशि में स्त्री तत्त्व की अधिकता के कारण दांपत्य जीवन कोई विशेष सुखमय नहीं हो पाता है। बस, दिन ज़िन्दगी के काट जाते हैं। इस राशि के स्त्री-पुरुष सेक्स के मामले में ठन्डे होते हैं।
यह जानकारी ज्योतिष के विद्वान पंडित श्री राकेश शास्त्री जी की अनमोल कृति है। आशा है यह हम सभी का मार्गदर्शन करने में सहायक सिद्ध होगी और हम सभी इस जानकारी से लाभ प्राप्त कर सकेंगे।
यह चलायमान (चर) राशि होने के कारण चंचल (केकड़ा होने के कारण) कठोरतम मैथुनप्रिय होता है और रात्रि बली (पृष्ठोदय) होने के कारण रात्रि में इसे बड़ा सुख मिलता है। पद इसका कीट है, अतएव रेंगकर (लम्बा होकर) मैथुन करना पसंद करता है। इसकी सबसे ज़्यादा कामवासना का समय श्रावण (जुलाई-अगस्त) है। इसी माह प्रायः गर्भाधान या प्रसव करती है। पूर्णिमा की रात अपने ग्रह देवता चन्द्रमा के कारण इस राशि की वासना अवश्य जागती है। इसकी कामोत्तेजना और स्खलन के बिंदु स्तन हैं। उनका मर्दन-चुम्बन, पान इसको उत्तेजना देते हैं और स्खलित करा देते हैं। निवास तालाब/झील होने के कारण इस राशि के स्त्री/पुरुष नदी/जलाशय के पास बसे आवासों/नगरों में अत्यंत सुख पाते हैं। ऐसे स्थानों की इस राशि की महिलाओं में भी कामवासना ज़्यादा होती है।
कीट में गणना के कारण सभी प्रकार का चलायमान मैथुन सभी आसनों में करना स्वभाव होता है। अत्यंत क्रूर-कठोरतम मैथुन होता है। इस राशि के पुरुष के मैथुन से स्त्री पनाह मांगती है और स्त्री से पुरुष को पसीना आ जाता है। इसे संतुष्ट करने में लोहे के चने चबाने पड़ते हैं। जाति से ब्राह्मण होने के बावजूद इसके मैथुन में अपने स्वभाव कीट के कारण शुचिता नहीं होती है। गंदे ढंग से प्रायः मैथुन करता है। मैथुन के समय गति केकड़े के समान, पर अत्यंत कठोर होती है। अपनी चंचलता और कठोरता के कारण विपरीत लिंगी का कचूमर निकाल देते हैं। अन्धकार इनको प्रिय होता है करते समय ध्वनि नहीं करते हैं। इनकी धड़कने चर्म सीमा पर होती हैं और हाँफते बहुत हैं। इनका मैथुन पूर्ण तृप्तिदायक होता है।
अपने नक्षत्रों के कारण इस कार्य में क्रूर, भोगी और हर प्रकार से रूचि रखते हैं। इस राशि के स्त्री/पुरुष इस क्रिया के दौरान अपनी गर्दन अवश्य सिकोड़ते या चलायमान करते हैं। यह उनका एक विशेष गुण होता है। अपने जल तत्त्व के कारण विशेष गरम नहीं होती और पसीना कम निकलता है। दक्षिण दिशा में मुख करके मैथुन कर इस राशि के जातक और भी सुख उठा सकते हैं। प्रेम के मामले में यह पक्के होते हैं और निभाते हैं।
मैथुन के समय यह जरा सी बात पर चिढ़ जाते हैं और क्रिया रोक देते हैं। किसी प्रकार का व्यवधान इनको पसंद नहीं है। मैथुन से पूर्व, मैथुन के समय या बाद में कुछ न कुछ खाने-पीने की इनकी आदत होती है। मुंह चलता रहता है। इनमें स्तंभन शक्ति ज़्यादा होती है। प्रायः शरीर सिकोड़कर केकड़े के समान आकृति बनाकर यह संभोग करते हैं। बीच-बीच में रुक जाया करते हैं। इस क्रिया में सबसे ज़्यादा समय इस राशि के जातकों को ही लगता है। संतान भी अधिक उत्पन्न करते हैं। इस राशि के जातक प्रायः बेहद भावुक होते हैं। मैथुन के समय अन्य भावुकता-भरी क्रीड़ाएं और खूब प्यार करते हैं। प्यार से अपने प्रिय को तर-बतर कर देते हैं। स्खलन इनका कम मात्र में होता है, यह बिना रुके होता है और मैथुन के उपरान्त भी यह शीघ्र अलग नहीं होते। स्खलित होकर उसी अवस्था में देर तक पड़े रहते हैं।
सामान्य तौर पर इनका दाम्पत्य जीवन का यह पक्ष मधुर होता है, पर क्रोधी स्वभाव के कारण मन उखड गया तो फिर वह हफ़्तों मैथुन नहीं करते हैं। दाम्पत्य जीवन सामान्यतः सुखमय होता है पर अपनी इस कामलीला के कारण तनाव और तलाक भी इसी राशि में सबसे ज़्यादा होते हैं।
सिंह - यह राशि सब राशियों में तेजस्वी है। इसका आकार सिंह के समान है और ग्रहाधिपति सूर्य है। सूर्य के गणपति स्वयं ब्रह्मा/रूद्र हैं। इस राशि के जातक अत्यंत तेजस्वी और सुडौल होते हैं। बलिष्ठता तथा सीमा तानकर चलना इसका गुण है। स्त्रियों की आँखें हीरे के समान, कमर सिंह की कमर के समान पतली और लचकदार होती है। विश्व की सुन्दरतम महिलाओं की राशि लगभग यही है। इस राशि के जातकों में भाद्रमास (अगस्त-सितम्बर) में वासना ज़्यादा रहती है। महिलाओं के गर्भवती होने, प्रसूता होने का समय यही माह अधिकतर होता है।
इस राशि के जातकों की कामोत्तेजना का क्षेत्रपट है। प्रायः गुदगुदी से इनको कामोत्तेजना होने लगती है। इनकी कमर दोनों और से पकड़कर मैथुन करने से इनको सुख मिलता है। जाति से क्षत्रिय और स्थिर गुण के कारन एक आसन में ही घोर युद्ध करना इनका स्वभाव है। इस राशि का पुरूष हड्डियां तोड़ कर रख देता है। इसका तत्त्व अग्नि होने से इस राशि में प्रचंड काम होता है तथा पसीने से लथपथ होने के बावजूद जब तक शिकार तोड़ कर नहीं रख देगा, तब तक रुकता नहीं है। इस राशि का पुरूष अपनी पत्नी को पूर्ण रूप से संतुष्ट करने की क्षमता रखता है। प्रचंड भोगी होने के बावजूद इसकी सन्तान अल्प होती है। निवास पर्वत की गुफ़ा होने के कारण एकदम गुफ़ा जैसे स्थान, अन्धकार, खिड़की-दरवाज़े सब बंद ही इसको सुख देते हैं। शीर्षोदय राशि होने के कारण दिन के समय ही 'शिकार' करना इनको बहुत अच्छा लगता है। दक्षिण की और मुंह करके विशेष सुख पाता है।
सांसें कम से कम लेते हैं। हिलना-डुलना पसंद नही। बस, एक सुर में प्रबल रूप से क्रियारत हैं। यह शीघ्र उत्तेजित होता है और स्त्री को देखकर यकायक टूट पड़ता है। इसकी पत्नी तक नहीं भांप सकती कि वह कब टूट पड़ेगा और झपाटे से तोड़कर रख देगा। हौले-हौले या धैर्य का व्यवहार यह नहीं करता। इसका झपट्टा शेर के समान होता है। यह अपना मैथुन हमेशा बलात्कार से शुरू करता है। अपने नक्षत्रों के कारण प्रबल भोगी और क्रूर होता है। वैसे यह जितेन्द्रिय अधिक होता है। मैथुन काम करता है पर जब करता है छक्के छुड़ा देता है। इस राशि की महिला का सेक्स अत्यंत प्रबल होता है। प्रायः इस राशि के स्त्री-पुरूष नोच-खसोट करते हैं। इस राशि के जातक के ही मैथुन में सबसे अधिक नखदंत क्षत होते हैं। राशि चतुष्पदी है। अतएव इसे पशुवत् आसन ही प्रिय है। उकड़ू बैठना बहुत प्रिय है। इस राशि का पुरूष बैठकर ही क्रियारत होना पसंद करता है। क्रिया के दौरान यदा-कदा सिंह के समान गुर्राने के स्वर अवश्य निकालते हैं। चरम सीमा पर अचानक ध्वनियां करते हैं। इस राशि का मैथुन सबसे अधिक ध्वनिमय होता है। शेर की दहाड़ जैसे चारों और गूंजती है, इसी प्रकार इनका मैथुन कमरे से टकराता है।
पहले, दौरान या अंत में यह विशेष लाड़-प्यार नहीं करते। शिकार किया, झपट्टे से चबाया और फ़ेंक दिया। यह तुरंत अलग हो जाया करते हैं। क्षत्रिय स्वभाव के कारण 'खून ख़राबी' ज़रूर करेंगे। स्वछता प्रिय होते हैं। प्रकृतिसम्मत क्रियाओं के अतिरिक्त अन्य प्रकार की क्रियाओं में इनकी रूचि नहीं होती है। पेटू होने के कारण बिना खाये-पिये यह मैथुन नहीं करते हैं। मैथुन के उपरान्त कुछ-न-कुछ खाना इनका स्वभाव है।
अवैध संबंध के मामले में यह कम रूचि रखते हैं। एक ही शिकार से अपना पेट भर लेते हैं। वृद्धावस्था में भी यह नहीं मानते हैं। अपने मरने तक इनमे सेक्स बना रहता है। इस महिला का मासिक भी ५५/५६ की आयु के आसपास ही समाप्त होता है। अपने क्रूर स्वभाव, लिंग नर होने के कारण इस राशि की महिला अत्यंत उग्र होती है। तृप्ति न होने पर वह गुस्से से भर जाती हैं और हाथ-पैर पटकती हैं, अशक्त पति की यह पिटाई भी कर देती हैं। दाम्पत्य जीवन में यह पति से डरती नहीं हैं। इस राशि का पुरूष भी अपनी पत्नी की पिटाई कर देता है। इसके बावजूद इनका मौन जीवन सामान्यतः सुखद ही होता है। वृश्चिक और सिंह का जोड़ा ही सर्वोत्तम माना गया है। बाकी तो किसी प्रकार निर्वाह कर जाते हैं।
कन्या - इस राशि का शरीर अंग कमर है। अतः इस राशि के स्त्री-पुरुषों की कामोत्तेजना का क्षेत्र कमर है। स्त्री के कूल्हे या कमर (बायां भाग) पकड़ने-सहलाने से इनकी कामोत्तेजना जागती है। कमर पकड़कर, उकड़ू बैठकर मैथुन करना इस राशि के पुरूषों का स्वाभाव होता है। तत्त्व पृथ्वी, निवास हरियाली, जल से भीगी जमीन, द्विपद, शीर्षोदय, जाती शूद्र, लिंग स्त्री है। इस कारण नंगी जमीन पर सामान्यतः मानवोचित सम्भोगप्रिय होता है।दिन में विशेष सुख मिलता है। लिंग स्त्री होने के कारण इनमें विशेष कामवासना नहीं होती है।
यह एक अत्यन्त कोमल राशि मानी गयी है। इस कारण सामान्य स्त्री गुण वाले पुरूष को भी लोग कन्या राशि कहकर उसका मज़ाक उड़ाते हैं।
इस राशि के पुरूषों में स्त्रीत्व की अधिकता होती है। जनानापन, अतएव अधिकतर नपुंसक, संभोग असमर्थ, शीघ्र पतन के शिकार रहते हैं। इस राशि का पुरूष पौरुष की कमी के कारण प्रायः अपनी स्त्री/प्रेमिका को संतुष्ट नहीं कर पाता है। इस राशि के लोग ही अधिकतर हिजड़े होते हैं। इस राशि के जातक का स्वभाव बड़ा ही कोमल होता है। बहुत ही नाज़ुक-मिज़ाजी के साथ यह सम्भोग करते हैं। कोई उठा-पटक, बलात्कार, शोरशराबा, आवाज़ें नहीं।
इस राशि की महिलायें अधिकतर ठंडी होती हैं। मैथुन में इनको किसी प्रकार की रूचि नहीं होती है। वृश्चिक, कर्क या सिंह से पाला पड़ जाने पर वह सूख कर काँटा हो जाती हैं। अपने ठंडेपन के कारण यह अरुचि दिखलाती हैं। इस राशि की महिलाएं प्रेमपत्र लिखने में दीर्घसूत्री और अत्यंत संक्षिप्त होती हैं। बनाव-श्रृंगार में रूचि रखती हैं पर मैथुन अश्लीलता में नहीं। दक्षिण-पश्चिम दिशा में सिर कर ज़्यादा सुख मिलता है। गर्भ धारण और कुछ ज़्यादा कामुकता का माह आश्विन (सितम्बर-अक्टूबर) है। इस माह में गर्भ धारण या प्रसव करती हैं। हाँ, रिमझिम बरसते पानी में इनको उत्तेजना मिलती है अथवा हरियाली बिखरी पाकर मैथुनातुर होती है। इनकी कमर की लचक बहुत आकर्षक होती है।
चुपचाप संभोग करना और द्विस्वभाव के कारण कभी इधर, कभी उधर खिसकना, उलटना, पलटना इनकी आदत होती है। रात्रि-दीप की लौ के समान हौले-हौले लहराती है। बस एक-दो फूँक में बुझ (ठंडी) जाती हैं। इनका क्रिया-कलाप क्षणिक होता है। मैथुन के पूर्व, अंत में या मैथुन के दौरान यह उत्तेजना तो बहुत दिखलाती है पर करते कुछ नहीं बनता।
इनका सेक्स जीवन असंतुष्ट, नाना प्रकार की बाधाओं और रोगों से पीड़ित होता है। प्रेम में भी डरपोक होते हैं। इस राशि की स्त्रियों के तलुवे लाल और पैर बहुत सुन्दर होते हैं। उनका आकार प्रायः 'कमल' के समान होता है।
मैथुन में विरक्ति और सबसे अशक्त मैथुन करने वाली एक मात्र यही राशि है और सबमें तो इनको रस मिलेगा पर मैथुन के नाम पर दिल खट्टा कर लेते हैं। सबसे मरियल क़िस्म होती है। लड़कियों के बीच उठना, बैठना और उनसे बात करना अच्छा लगता है तथा स्त्रियोंचित कार्यों में बड़ी रूचि रखते हैं।
इस राशि में स्त्री तत्त्व की अधिकता के कारण दांपत्य जीवन कोई विशेष सुखमय नहीं हो पाता है। बस, दिन ज़िन्दगी के काट जाते हैं। इस राशि के स्त्री-पुरुष सेक्स के मामले में ठन्डे होते हैं।
यह जानकारी ज्योतिष के विद्वान पंडित श्री राकेश शास्त्री जी की अनमोल कृति है। आशा है यह हम सभी का मार्गदर्शन करने में सहायक सिद्ध होगी और हम सभी इस जानकारी से लाभ प्राप्त कर सकेंगे।
No comments:
Post a Comment