ॐ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरं ॥
शनि ग्रह का भ्रमण, जब साढ़ेसाती की परिधि के भीतर साढ़े सात वर्षों के लिए प्रवेश करता है अथवा करने वाला होता है, तभी इस विषय का ज्ञान रखने वाले व्यक्तियों को एक अप्रत्याशित भय, भ्रांति तथा भ्रम प्रकंपित करने लगता है। शनि समय के संचालक हैं परंतु इसे भ्रम और भ्रांति ही समझ जाना चाहिए कि शनि की साढ़ेसाती अपार कष्ट देने वाली होती है।
शनि एक राशि पर ढ़ाई वर्ष के लगभग रहते हैं। शनि की गोचर गति सबसे कम हैं जिस कारण से यह मन्दतम ग्रह कहलाते हैं। इनकी अधिकतम दैनिक गति ७ कला तथा वक्री से मार्गी या मार्गी से वक्री होते समय न्यूनतम गति १ कला प्रतिदिन भी हो सकती है।
शनि की साढ़ेसाती व ढैया
साढ़ेसाती
चंद्र लग्न से द्वादश भाव में शनि के आने से शनि की तीसरी पूर्ण दृष्टि द्वितीय (धन) भाव पर, सप्तम दृष्टि षष्ठ (रिपु/यश) भाव तथा दशम दृष्टि नवम (भाग्य व धर्म) भाव पर पड़ती है। लग्न के दोनों ओर द्वादश एवं द्वितीय भाव शनि के दुष्प्रभाव से ग्रसित होने से उनके बीच स्थित लग्न भी दूषित हो जाता है। धन, यश तथा आय भाव तो शनि के कुप्रभाव में आ ही जाते हैं और लग्न के दूषित होने से तन, मन एवं सम्मान पर भी कुप्रभाव पड़ता है। इसी कारण साढ़ेसाती जातक के लिए बहुत कष्टदायक होती है।
इसी प्रकार चंद्र लग्न में शनि के आने पर शनि की तीसरी दृष्टि पराक्रम भाव पर, सप्तम दृष्टि सप्तम भाव पर तथा दशम दृष्टि दशम (कर्म एवं पिता) भाव पर पड़ती है, जिससे क्रमशः पराक्रम (भ्राता), पत्नी एवं कर्म (पिता) के भाव बिगड़ जाते हैं।
जब शनि जन्म राशि से द्वितीय भाव में आता है तब शनि की पूर्ण दृष्टि चतुर्थ, अष्टम व एकादश भावों पर पड़ती है जो क्रमशः सुख, माता, संपत्ति भाव, आयु भाव तथा लाभ भाव हैं। शनि के जन्म राशि से द्वितीय होने से ये तीनो भाव बिगड़ जाते हैं।
इस प्रकार साढ़े सात वर्षों में अधिकांश भावों से संबंधित हानि होती है।
ढैया
जन्म राशि से शनि के चतुर्थ या अष्टम स्थान पर आने पर छोटी साढ़ेसाती या ढैया होती है। चतुर्थ शनि होने से शनि की तीसरी पूर्ण दृष्टि षष्ठम भाव पर, सप्तम पूर्ण दृष्टि दशम भाव पर तथा दशम पूर्ण दृष्टि लग्न पर पड़ती है, जिससे इन भावों की हानि होती है। इसी प्रकार शनि के जन्म राशि से अष्टम होने से तृतीय पूर्ण दृष्टि दशम पर, सप्तम पूर्ण दृष्टि द्वितीय पर तथा दशम पूर्ण दृष्टि पंचम भाव पर पड़ती है। अतः क्रमशः कर्म, धन तथा संतान पक्ष दुष्ट प्रभाव में आ जाते हैं। कर्क राशि वाले जातक को तुला (चतुर्थ) तथा कुम्भ (अष्टम) राशि में शनि रहते ढैया होगी।
दक्षिण भारत (विशेष रूप से कर्नाटक) में साढ़ेसाती से भी अधिक दुष्ट प्रभाव पंचम शनि को मानते हैं। चंद्र लग्न से पंचम (पुत्र भाव) शनि की पूर्ण दृष्टि सप्तम, एकादश व द्वितीय भावों पर पड़ती है। यदि इस अवधि में शनि नीच, अस्तंगत, शत्रुक्षेत्री तथा पाप ग्रह से युक्त व दृष्ट हो तो अत्यंत वैभवशाली व्यक्तियों को भी फूटे मटके में खाना खिलाता है।
शनि की साढ़ेसाती सभी के लिए अनिष्टकारक नहीं
शनि की साढ़ेसाती या ढैया सभी व्यक्तियों के लिए अथवा पूरी अवधि के लिए अनिष्टकारक नहीं होती है। शनि के गोचर विचार की एक विधा यह भी है कि शनि के साढ़ेसाती या ढैया में प्रवेश करते समय चंद्रमा किस राशि में है, इसका प्रभाव शनि के प्रभाव पर पड़ता है। इसे शनि का चरण विचार कहते हैं।
यदि शनि के साढ़ेसाती या ढैया में प्रवेश करते समय चंद्रमा जन्म राशि से १, ६ या ११वें स्थान (राशि) में हो तो स्वर्णपाद साढ़ेसाती कहलाती है। यदि चंद्रमा २, ५ या ९ में हो तो रजतपाद तथा यदि ३, ७ या १० में हो तो ताम्रपाद और ४, ८ या १२ में होने पर लौहपाद साढ़ेसाती कहलाती है।
स्वर्णपाद पर साढ़ेसाती प्रारम्भ हो तो सब प्रकार का सुख मिलता है। रजतपाद में भाग्य अच्छा रहता है। ताम्रपाद में सामान्य स्थिति रहती है तथा लौहपाद साढ़ेसाती में धन का नाश होता है।
साढ़ेसाती अवधि में शनि जिन राशियों में से गुजरेगा उनके नक्षत्रों के स्वामियों के साथ यदि शनि की मित्रता या समता है तो शनि अधिक हानि नहीं करेगा। यदि उन नक्षत्रों के स्वामियों से शनि की शत्रुता है तो अधिक हानि करेगा।
यदि जन्मकुंडली में शनि उच्च, स्वराशि या मित्रराशि में हों तो ६, ८ या १२ (दुःस्थानों) में स्थित होते हुए भी शनि हानिकारक नहीं होता। परंतु शनि नीच राशिस्थ, अस्तंगत या शत्रुक्षेत्री होने पर अधिक अशुभ फल देता है। इसी प्रकार गोचर में भी उच्च अथवा नीच राशिस्थ होने पर भी फल में अच्छा या बुरा प्रभाव पड़ता है। यदि शनि पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो उसका फल अधिक अशुभ होता है। इसके विपरीत यदि उस पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो उसके अशुभ फल में कमी आ जाती है।
साढ़ेसाती जातक को प्रायः हानि ही करती है किसी को प्रारंभ में, किसी को मध्य में तो किसी को अंत में।
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