Sunday, January 31, 2016

ज्योतिष में पागलपन के विभिन्न रूप

ज्योतिष सम्बन्धी निम्नलिखित योगों से पागलपन के विभिन्न रूपों का पता चलता है :-
  1. वातोन्माद - निम्नलिखितलक्षणों से इसका पता लगाया जा सकता है :- जैसे हमेशा हँसते रहना, अक्सर ताली बजाते रहना, जोर से बोलना, नाचते रहना, चीख़ना, पैर हिलाते रहना और हाथ मरोड़ना।   शरीर तांबे के रंग का, नरम और रक्तिम हो जाता है। खाया हुआ खाना पच जाने के बाद वह अशान्त हो जाता है। 
  2. पित्तोन्माद - सभी से घृणा करना, धृष्ट, हमेशा गुस्से में रहना, गाली गलौच करना, खाने और पानी पीने में हमेशा आगे, बहुत क्रोधित, शरीर पीला पड़ जाता है परन्तु जब दौरा पड़ता है तो शरीर गर्म हो जाता है। 
  3. कफोन्माद - एकांत और स्त्री पसंद, प्रत्येक वस्तु के लिए  विरक्ति, थोड़ा सोना, मुँँह से हमेशा कफ निकलना, उँगलियों के नाख़ून पीले और सफ़ेद पड़ जाते हैं। 
  4. सन्निपातोन्माद - ऊपर दिए गए लक्षण मिश्रित रूप से दृष्टिगोचर होते हैं। उत्पीड़न से मुक्ति के लिए सन्निपात सन्निपात असंभव है। 
निम्नलिखित  आठ ग्रह योगों द्वारा ऊपर के सभी प्रकार के पागलपन को सुनिश्चित किया जा सकता है :-
  1. लग्न में बृहस्पति और सप्तम में शनि हो। 
  2. लग्न में बृहस्पति और सप्तम में मंगल हो। 
  3. लग्न में शनि और सप्तम, पंचम या नवम में मंगल हो। 
  4. चन्द्रमा और बुध दोनों एक साथ लग्न में स्थित हों। 
  5. क्षीण चन्द्रमा और शनि १२वें भाव हों। 
  6. बुरे ग्रह से युक्त क्षीण चन्द्रमा पाँचवे, आठवें या नौवें भाव में स्थित हो।
  7. बुरे ग्रह के साथ युक्त गुलिका सप्तम भाव में हो और 
  8. बुरे ग्रह के साथ बुध तीसरे, छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो। 
ऐसा कहा जाता है कि वात्त, पित्त और कफोन्माद उच्चित मात्रा में अौषधि के प्रयोग से ठीक हो सकता है परन्तु सन्निपातोन्माद के बारें में यह कहा जाता है कि मांत्रिक उपचार, जप, होम, यंत्र पहनने के सिवाए यह ठीक होने योग्य नहीं है। 

यदि चन्द्रमा, शुक्र और अष्टमेश बुरे स्थान में स्थित हो तो यह अनुमान लगाया जाता है कि भोजन के अनियमित प्रयोग के कारण उन्माद है। यदि उपरोक ग्रह राहु, केतु या गुलिका के साथ हों तो पागलपन अस्वास्थ्य कर भोजन के कारण है। यदि मंगल पांचवें भाव में हो तो पागलपन का कारण अधिक क्रोध होता है; किसी अन्य बुरे ग्रह से अधिक भय का  पता लगता है।  यदि नवम भाव में बुरे ग्रह हों तो गुरु या महान लोगों के अभिशाप के कारण पागलपन होता है।

Tuesday, January 19, 2016

केमद्रुम योग

॥ केमद्रुमे मलिन दुःखितनीचनिस्वो नृपजोपी ॥

केमद्रुम योग में जन्म हो तो राजा के यहाँ  जन्म पाया हुआ मनुष्य भी मलिन स्वभाव का वा मैला रहने वाला, दुःखी नीच प्रकृति वाला नीच दर्जे का और निर्धन मनुष्य होता है अर्थात्  साधारण मनुष्य के भंग रहित यह योग हो तो वह दरिद्री हुए बिना नहीं रहता।
यदि चन्द्रमा के दोनों तरफ़ कोई ग्रह न हो तो केमद्रुम योग बनता है। जिसके फलस्वरूप जातक गन्दा दुःखी, अनुचित काम करने वाला, ग़रीब, दूसरे पर निर्भर, दुष्ट और ठग होगा।
एक मान्यता यह भी है कि जन्म लग्न या चन्द्रमा से केन्द्र में ग्रह हों या चन्द्रमा किसी ग्रह से युक्त हो तो केमद्रुम योग नहीं बनता। कुछ अन्य का मत है कि योग केन्द्र और नवांश से बनते हैं जो कि सामान्यतः स्वीकार्य नहीं है। वाराहमिहिर इस बात पर जोर देते हैं कि राजकीय परिवारों में पैदा होने वाले जातकों की कुंडली में इस प्रकार के योग बनते हों तो उनके मामले में साधारण परिवारों में पैदा होने वाले जातकों की अपेक्षा अधिक दुर्भाग्य की भविष्यवाणी करनी चाहिये। दुःख का अर्थ शारीरिक तथा मानसिक दुःख होता  है। मूलतः नीच शब्द का प्रयोग किया जाता है और इससे ऐसे कार्यों का सम्बन्ध होता है जो धर्म, नैतिकता और सामाजिक व्यवस्था में मना है और इसे अपमानजनक माना जाता है।

केमद्रुम योग के भेद 

केमद्रुम योग केवल चन्द्र के व्यय दूसरे स्थान में कोई भी ग्रह नहीं होने से ही होता है ऐसा नहीं है। जातक पारिजात में केमद्रुम के १३ भेद बताये हैं इनमे से कोई भी एक प्रकार का योग हो तो केमद्रुम योग हो जाता है। यह भेद इस प्रकार से हैं :-
  1. लग्न में किंवा सप्तम में चन्द्रमा गया हो और उस पर गुरु की दृष्टि न हो तो केमद्रुम योग होता है। सर्वग्रह बलहीन व अष्टकवर्ग में ४ बिंदु से युक्त हो तो यह योग बलवान हो जाता है। 
  2. चन्द्रमा सूर्य से युत हो के नीच राशि में गये हुए ग्रह से दृष्ट हो और पापग्रह के नवांश में गया हो तो दरिद्र योग होता है। 
  3. क्षीण चन्द्रमा अष्टम स्थान में स्थित होकर पापग्रह से दृष्ट किंवा युत हो और रात्रि समय में जन्म हो तो केमद्रुम योग होता है। 
  4. चन्द्रमा राहु आदि पापग्रहों से पीड़ित होकर पापग्रहों से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग होता है। 
  5. लग्न से किंवा चन्द्रमा से चारों केन्द्र स्थान में पापग्रह गयें हों तो केमद्रुम योग बनता है। 
  6. चन्द्र पर बलहीन पराजित शुभग्रहों की दृष्टि हो और जन्म लग्न राहु आदि पापग्रहों से पीड़ित हो तो केमद्रुम योग होता है। 
  7. तुला राशि का चन्द्रमा शत्रुग्रह की राशि के वर्ग में हो और नीच तथा शत्रु राशि में गए हुए ग्रह से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग होता है। 
  8. नीच किंवा शत्रु राशिगत चन्द्रमा १, ४, ७, १० किंवा ९, ५ भाव में गया हो और चन्द्रमा से ६, ८, १२ वे स्थान में गुरु गया हो तो दरिद्र योग होता है। 
  9. चर राशि में चर राशि के ही नवमांश में गया हुआ चन्द्रमा पापग्रह के नवमांश में हो और अपने शत्रुग्रह से दृष्ट हो गुरु की दृष्टि से रहित हो तो महादरिद्र योग होता है। 
  10. नीच शत्रु पापग्रह की राशि नवांशादि वर्ग में गए हुए शनि शुक्र एक राशि से युक्त हो किंवा परस्पर दृष्ट हो तो केमद्रुम योग होता है। इस योग में राजवंश में जन्म पाया हुआ भी दरिद्री होता है। 
  11. पापग्रह की राशि में गया हुआ निर्बल चन्द्रमा पापग्रह से युक्त हो और पापग्रह के ही नवमांश में गया हो और रात्रि समय का जन्म हो तथा उसको दशमेश देखता हो तो केमद्रुम योग होता है। 
  12. नीच राशि के नवमांश में गया हुआ चन्द्रमा पाप ग्रह से युक्त हो के नवमेश से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग होता है। 
  13. रात्रि समय का जन्म हो और क्षीण चन्द्रमा नीच राशि में गया हुआ हो तो केमद्रुम योग होता है।
जिनके जन्म काल में ये दरिद्र योग [केमद्रुम] होता है उनका राजयोग भंग होता है। 

केमद्रुम भंग योग - जातक पारिजात में लिखा है। जिनके समय में 
  1. चन्द्रमा अथवा शुक्र केंद्र स्थान में स्थित हो और गुरु से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग का भंग [दरिद्र योग नहीं] करता है।  
  2. चन्द्रमा शुभग्रह से युत हो अथवा शुभग्रहों के मध्य में गया हो और गुरु से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग नहीं होता है।
  3. चन्द्रमा अधि मित्र राशि का किंवा अपनी उच्च राशि का हो अथवा अधिमित्र तथा अपनी उच्चराशि के नवमांश में गया हो और गुरु से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग नहीं होता है। 
  4. पूर्ण चन्द्रमा शुभ ग्रह से युत होकर बुध की उच्चराशि में गया हो और गुरु से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग नहीं होता है। 
  5. चन्द्रमा सर्व ग्रहों से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग का बहन भंग करता है।

इन पाँचों योगों में से एक भी योग जिनके जन्म समय में नहीं हो 
उसको केमद्रुम योग का फल अवश्य प्राप्त होगा।