रति शक्ति का सम्बन्ध व्यक्ति के शारीरिक गठन, नस्ल और देशकाल (जलवायु) से रहता है. इसका ज्ञान हमें स्नायु संस्थान के कारक व रक्त संचार कारक ग्रह की स्थिति से होता है तथा सप्तम स्थान में स्थित राशि व ग्रह के स्वभाव तथा बल के अनुसार निष्कर्ष निकलना पड़ता है.
मान्यता यह है कि काम का उद्गम सबसे पहले मन से होता है. काम को मनोज व मन्मथ भी कहा जाता है देह तो मन की आज्ञाकारी दास है. इसलिए यहाँ हम व्यक्ति की मानसिक स्थिति व काम की ओर होने वाली सहज रूचि के सूचक योगों पर विचार करेंगे.
प्रमुख रूप से कामप्रिय (सेक्सी) होना शुक्र की स्थिति पर निर्भर करता है. विशेष यह है की यह बलवान होकर या निर्बल होकर त्रिक स्थान छठे, आठवें या बारहवें में आ जाये तो व्यक्ति को कामी बनाता है. यहाँ इसमें स्थानगत प्रभाव रहता है. हाँ, यदि इस पर बलवान बृहस्पति की दृष्टि हो तो बात दूसरी है. शुक्र पाप ग्रहों के साथ देखा जाए अथवा पाप ग्रहों के साथ बैठा हो तो कामी बनाता है. बुध की या अपनी राशि में बैठा हुआ शुक्र भी कामी बना देता है. अगर रिपुभाव में धनु या मीन राशि हो ओर शुक्र मंगल के साथ किसी भी भाव में स्थित हो या कामी होने के लिए सातवें स्थान में शुक्र का बैठना ही प्रयाप्त रहता है.
ये योग व्यक्ति को काम का आवेश आने पर उचित या अनुचित का ध्यान नहीं रहने देते वह कामांध सा हो जाता है. अप्राकृतिक काम घटनाएं या कामापराध कामी व्यक्ति ही किया करते हैं. जब कुंडली में शुक्र की यह स्थिति हो ओर गोचर में वह प्रबल पद रहा हो या इसकी दशा-अंतर्दशा चल रही हो तब यह व्यक्ति को मथकर रख देता है, सिवा काम-वासना के कुछ और दिखाई नहीं देता और वह निर्मम भाव से अपने शरीर का नाश करता रहता है.
कम या संतुलित काम (सेक्स) वाले लोगों के चंद्रमा वृष या तुला राशि का होता है. शनि और चंद्रमा का योग चौथे स्थान में हो रहा हो. लग्न में विषम राशि हो और शुक्र वहाँ बैठा हो. लग्न में वृष या धनु राशि हो और उसमे शनि स्थित हो. शुक्र सप्तम स्थान में हो और उस पर लग्नपति की दृष्टि हो. यह सभी योग रति शक्ति में कमी होने के थे.
- बलवान मंगल आय भाव में रहे तो व्यक्ति चिर युवा रहता है.
- लग्न में चंद्र और शुक्र एक साथ रहे तो व्यक्ति सदाबहार रहता है.
- बलवान बुध पाप ग्रहों से युत या दृष्ट न होकर त्रिक स्थान के अलावा कहीं हो तो व्यक्ति सदाबहार रहता है.
अब उन योगों का वर्णन है जिसमें व्यक्ति स्त्रियों को संतुष्ट नहीं कर पता है और उनका प्रिय नहीं होता. उसमे धारण क्षमता का अभाव होता है.
चंद्र मंगल की राशि (मेष) में हो, सूर्य चंद्रमा की राशि (कर्क) में हो और राहू, शुक्र व शनि इनमें से कोई दो ग्रह अपनी उच्च राशि में हो. शनि और बृहस्पति गर्भस्थान (पाँचवें) में एक साथ हों और चंद्रमा लग्न में हो. शुक्र मकर या कुम्भ राशि में हो, लग्न में कन्या राशि हो जिस पर शनि एवं बुध की दृष्टि हो. इन योगों में व्यक्ति शीघ्र पतन, शुक्रमेह, स्वप्नदोष या अन्य वीर्य विकारों से ग्रस्त रहता है.
पुरुषत्वहीन करने वाले योग
- शुक्र और शनि एक साथ दसवें या आठवें स्थान में हो.
- शनि जलराशि का होकर छठे या बारहवें स्थान में रहे.
- लग्न में विषम राशि हो, मंगल समराशि में हो और लग्न को देख रहा हो.
- शुक्र और शनि का योग दसवें स्थान में होने पर भी यह योग बनता है.
- शनि, शुक्र से छठे या आठवें स्थान में रहे. नीच राशि का शनि छठे या बारहवें स्थान में हो.
यह योग जिनके होते है वे लोग पुरुषत्वहीन होते हैं. पुरुषत्वहीनता लाने योगों में व्यक्ति के जननेन्द्रिय संस्थान करीब-करीब निष्क्रिय से रहते हैं. स्मरण रहे इन योगों में पाप ग्रहों के साथ युति स्थिति दृष्टि आदि का सम्बन्ध होने पर ही यह योग सार्थक होते हैं.
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