सारावली के अनुसार वक्री ग्रह सुखकारक व बलहीन अथवा शत्रु राशिगत वक्री ग्रह अकारण भ्रमण देने वाला तथा अरिष्टकारक सिद्ध होता है.
संकेतनिधि के अनुसार वक्री मंगल अपने स्थान से तृतीय भाव के प्रभाव को दर्शाता है. इसी प्रकार गुरु अपने से पंचम, बुध चतुर्थ, शुक्र सप्तम तथा शनि नवम भाव के फल प्रदान करता है.
जातक पारिजात में स्पष्ट लिखा है कि वक्री ग्रह के अतिरिक्त शत्रु भाव में किसी अन्य ग्रह का भ्रमण अपना एक तिहाई फल खो देता है.
उत्तर कलामृत के अनुसार वक्री ग्रह के समय कि स्थिति ठीक वैसी हो जाती है जैसे कि ग्रह के अपने उच्च अथवा मूल त्रिकोण राशि में होने से होती है.
फल दीपिका में मंत्रेश्वर का कथन है कि ग्रह कि वक्री गति उस ग्रह विशेष के चेष्टाबल को बढ़ाती है.
कृष्णमूर्ति पद्धति का कथन है कि प्रश्न के समय संबंधित ग्रह का वक्री ग्रह के नक्षत्र अथवा उसमें रहना नकारात्मक उत्तर का प्रतीक है. यदि कोई संबंधित ग्रह वक्री नहीं है परन्तु वक्री ग्रह के नक्षत्र में प्रश्न के समय स्थित है तो वह कार्य तब तक पूर्ण नहीं होता जब तक कि वह ग्रह वक्री है.
आचार्य वेंकटेश कि सर्वार्थ चिंतामणि में वक्री ग्रह कि दशा, अंतर्दशा के फल का सुंदर विवरण मिलता है -
आचार्य वेंकटेश कि सर्वार्थ चिंतामणि में वक्री ग्रह कि दशा, अंतर्दशा के फल का सुंदर विवरण मिलता है -
मंगल ग्रह यदि वक्री है तथा उसकी दशा अथवा अंतर्दशा चल रही हो तो व्यक्ति अग्नि, शत्रु आदि के भय से त्रस्त रहेगा, वह ऐसे में एकांतवास अधिक चाहेगा.
वक्री बुध अपनी दशा अंतर्दशा में शुभ फल देता है. वह पत्नी, परिवार आदि का सुख भोगता है. धार्मिक कार्यों में उसकी रूचि जागृत होती है.
वक्री गुरु पारिवारिक सुख, समृद्धि देता है तथा शत्रु पक्ष पर विजय करवाता है. व्यक्ति ऐश्वर्यमय जीवन जीता है.
वक्री शुक्र मान-सम्मान का द्योतक है. वाहन सुख तथा सुख-सुविधा के अनेक साधन वह जुटा पता है.
वक्री शनि अपनी दशा अंतर्दशा में अपव्यय करवाता है, व्यक्ति के प्रयासों में सफलता नहीं मिलने देता. ऐसा शनि मानसिक तनाव, दुःख आदि देता है.
अनेक ग्रंथो के अध्ययन-मनन के बाद यह निष्कर्ष निकलता है कि यदि कोई ग्रह वक्री है और साथ ही साथ बलहीन भी है तो फलादेश में वह बलवान सिद्ध होगा. इसी प्रकार बलवान ग्रह यदि वक्री है तो अपनी दशा अंतर्दशा में निर्बल सिद्ध होगा. शुभाशुभ का फलादेश अन्य कारकों पर भी निर्भर करेगा यह कदापि नहीं भूलना चाहिए.
अनेक बार अनुभव में आया है कि ग्रह कि वक्रता का सुप्रभाव अथवा दुष्प्रभाव उसी ग्रह के लिए गणना किया जाता है जहाँ पर वह स्थित है यह अशुद्ध गणना है. वक्रता का शुभाशुभ फल उससे पहले वाले भाव से सुनिश्चित किया जाना चाहिए.
देखने में आता है कि जब कोई ग्रह, मुख्य रूप से गुरु वक्री अथवा मार्गी होता है तो किसी न किसी व्यक्ति, देश, मौसम आदि को शुभ अथवा अशुभ रूप से प्रभावित अवश्य करता है.
वक्री शुक्र मान-सम्मान का द्योतक है. वाहन सुख तथा सुख-सुविधा के अनेक साधन वह जुटा पता है.
वक्री शनि अपनी दशा अंतर्दशा में अपव्यय करवाता है, व्यक्ति के प्रयासों में सफलता नहीं मिलने देता. ऐसा शनि मानसिक तनाव, दुःख आदि देता है.
अनेक ग्रंथो के अध्ययन-मनन के बाद यह निष्कर्ष निकलता है कि यदि कोई ग्रह वक्री है और साथ ही साथ बलहीन भी है तो फलादेश में वह बलवान सिद्ध होगा. इसी प्रकार बलवान ग्रह यदि वक्री है तो अपनी दशा अंतर्दशा में निर्बल सिद्ध होगा. शुभाशुभ का फलादेश अन्य कारकों पर भी निर्भर करेगा यह कदापि नहीं भूलना चाहिए.
अनेक बार अनुभव में आया है कि ग्रह कि वक्रता का सुप्रभाव अथवा दुष्प्रभाव उसी ग्रह के लिए गणना किया जाता है जहाँ पर वह स्थित है यह अशुद्ध गणना है. वक्रता का शुभाशुभ फल उससे पहले वाले भाव से सुनिश्चित किया जाना चाहिए.
देखने में आता है कि जब कोई ग्रह, मुख्य रूप से गुरु वक्री अथवा मार्गी होता है तो किसी न किसी व्यक्ति, देश, मौसम आदि को शुभ अथवा अशुभ रूप से प्रभावित अवश्य करता है.
This article was publish by me 20 yrs back in various magazines papers.
ReplyDeletePl see the link
वक्री ग्रह कितने शुभ, कितने अशुभ
http://gopalrajuarticles.webs.com/Vakri%20GrahPDF.pdf
आदरणीय गोपाल राजू जी सर्वप्रथम आप को और आप के ज्ञान को शत शत नमन.... कृपया इसी तरह से मार्गदर्शन करवाते रहें आप के ज्ञान विज्ञान के मार्गदर्शन की सदैव आवश्यकता रहेगी... धन्यवाद...
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