प्रायः देखने में आता है के जन्म-पत्रिकाएँ ऊपर से खंडित हो जाती हैं. ऐसी अवस्था में जन्म-पत्रिका का सम्वत्, मास, तिथि, वार, नक्षत्र आदि तथा जन्म समय का पता नहीं चल पता. जिसके अभाव में फलादेश के वर्णन में बड़ी कठिनाई होती है. इस प्रकार की नष्ट जन्म-पत्रिका का पुनरुद्धार करने के लिए यहाँ कुछ रीतियाँ दी जा रही हैं. जो प्रत्येक ज्योतिषी, विद्वान एवं ज्योतिष में रूचि रखने वाले व्यक्ति के लिए लाभकारी सिद्ध होगी.
1) जन्म-कुंडली का संवत् जानना -
जन्म-कुंडली में जिस राशि का शनि हो उस से वर्तमान शनि जिस राशि पर हो, उस तक गिने. जो संख्या आवे उसे अढ़ाई गुणा करके जो संख्या आवे, वह गत वर्ष होंगे. सम्वत् में से घटने पर जन्म जन्म सम्वत् प्राप्त होगा.
2) कुंडली का मास जानना -
मेष का सूर्य हो तो वैशाख का जन्म. वृष का सूर्य हो तो ज्येष्ठ का, मिथुन के सूर्य में आषाढ मास समझे. इसी क्रम से जिस राशि का सूर्य हो, वैशाख आदि क्रम से जन्म का मास समझे.
3) कुंडली का पक्ष जानना -
जिस राशि पर सूर्य हो यदि उस से ७ राशियों के अंतर्गत चंद्रमा हो तो शुक्ल पक्ष का जन्म होता है. यदि चन्द्रमा सात से बारह राशि के अंतर्गत हो तो जन्म कृष्ण पक्ष का समझे.
4) जन्म-कुंडली की तिथि का ज्ञान -
जिस राशि में सूर्य हो वहाँ से चंद्र राशि तक गिने जितने स्थान हों उसे अढ़ाई गुणा करने पर तिथि प्राप्त होगी.
5) कुंडली में दिन और राशि का ज्ञान -
कुण्डली में सूर्य छः राशि पर्यंत लग्न हो तो दिन का जन्म, सप्तम राशि लग्न हो तो सायंकाल, सात से बारह राशि के अंतर्गत लग्न हो तो रात्रि का जन्म समझें. दसवें राशिगत लग्न हो तो अर्धरात्रि का जन्म होता है.
6) कुंडली के वार का ज्ञान -
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से मास गिन कर बीते पक्ष के दिन गिन कर जोड़े. सात का भाग दें. जो शेष बचे उसे राजा से गिन कर वर जाने.
7) कुंडली के योग का ज्ञान -
पुष्य नक्षत्र में सूर्य के नक्षत्र गिने. श्रवण से दिन के नक्षत्र तक गिने. दोनों को जोड़कर २७ का भाग दें. जो शेष बचे उसे विष्कुम्भादि से योग प्राप्त कर लें.
8) जन्मपत्री स्त्री की है या पुरुष की?
जन्म-कुंडली में लग्न को छोड़कर विषम स्थान पर शनि बैठा हो एवं पुरुष ग्रह बलवान हों तो पुरुष की कुण्डली समझें. विपरीत अवस्था में स्त्री की कुण्डली समझें.
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