मानव पर ग्रहों का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है,उन ग्रहों में भी शनि एक प्रबल ग्रह माना गया है। शनि ग्रह प्रधान व्यक्ति उच्च श्रेणी के दिमागी कार्य किया करते हैं। शनि प्रधान व्यक्ति मैकेनिक, डॉक्टर, इंजिनियर, लेखक, संगीतकार, ज्योतिष, राजनेता, तांत्रिक, अभिनेता, पुलिस तथा अच्छे शासक हुआ करते हैं। ऐसे व्यक्ति बड़े उद्योगपति तथा खतरनाक,विस्फोटक सामग्री के निर्माणकर्ता हुआ करते हैं।
ऐसे व्यक्तियों की प्रेमिकाओं की संख्या एक से अधिक होती है, ये बातें काफ़ी बढ़ा-चढ़ा कर करते हैं, बातों में किसी को भी अपने सामने टिकने नहीं देते। शनि की दशा अगर सामान्य रही, तो ऐसे व्यक्ति नशे की और झुक जाते हैं, सफलता इनके कदम चूमती है, मांस-मछली और अंडे खाने के ये शौकीन होते हैं। अंतिम अवस्था में ऐसे व्यक्ति ख़ाक से उठकर आसमान में स्थापित हो जाया करते हैं।
प्रारंभिक दौर
द्वितीय दौर
शराब, जुआं आदि खेलने की आदत सी हो जाती है, संचित धन भी ख़त्म हो जाता है और किसी कारणवश जेल जाने की नौबत आ जाती है, सामाजिक और आर्थिक बदनामी होती है तथा समाज में भी ऐसा व्यक्ति चर्चा का विषय बन जाता है।
सरकारी नौकरी वाले के लिए भी यह संकट की घड़ी होती है, वरिष्ठ अधिकारियों से दण्डित होता है तथा 'सस्पेंड' होने की संभावनाएं रहती हैं। अगर कोई व्यक्ति ठेकेदारी कर रहा है, तो उसके मार्ग में बाधा उत्पन्न हो जाती है, आमदनी कम और खर्चा अधिक हो जाता है। पति-पत्नी के बीच संबंधो में दरार आ जाती है और घर छोड़ने की भी स्थिति बन जाती है; धन का आभाव रहता है, लेकिन ऐसे समय मैं कर्ज भी आसानी से मिल जाता है।
चौथा और अंतिम दौर
शनि के अंतिम दौर को भी दो भागों में बांटा गया है ....
प्रथम - प्रथम भाग में व्यक्ति कर्ज़दार बन जाता है, परिवार से संपर्क टूटा सा रहता है, जिसके परिणामस्वरूप अधिक कष्टों का सामना करना पड़ता है, दौड़-धूप की स्थिति बनी रहती है, प्रशासनिक स्तर के अधिकारियों से संपर्क टूट जाता है, आय का मार्ग भी लगभग कष्टदायक बन जाता है, व्यापार में घाटा होता है तथा जमा पूँजी भी खो बैठता है, नौकरी हाथ से निकल जाती है; विद्यार्थी जीवन संकट में होता है तथा परीक्षा में असफलता मिलती है, स्वभाव में चिडचिडापन आ जाता है, वैवाहिक जीवन भी कष्टदायक होता है, स्वास्थ्य गिर जाता है, धन कहीं से प्राप्त भी होता है, तो वह जेब में नहीं रुकता तथा सर्वत्र बदनामी का सामना करना पड़ता है।
व्यक्ति को किसी भी कार्य में सफलता नहीं मिलती, मन अस्थिर रहता है, विचारों और कार्यों के बीच कोई तादात्मय स्थापित नहीं हो पाता, ये किसी भी कार्य को स्थाई रूप से नहीं कर पाते, एक कार्य पूरा नहीं होता, की उसे छोड़ कर दूसरा कार्य प्रारंभ कर देते है, और सदैव असफल और चिंतित सा रहते हैं। ऐसे व्यक्ति को अंत में अपने आपको दिवालिया घोषित करना पड़ता है।
आर्थिक स्थिति ख़राब होने के कारण ऐसे व्यक्ति गलत रास्ते पर चलने के लिए मजबूर हो जाते हैं, घर-परिवार का सहयोग नहीं मिल पता और हमेशा अपने आप में अकेलापन महसूस करते हैं, मित्र-स्वजन सम्बन्ध तोड़ देते हैं, ऐसे में आत्महत्या के विचार भी आते हैं, इसके सिवा दूसरा कोई मार्ग ही नहीं दिखता; इनके अंदर क्रोध की भी अधिकता हो जाती है, लेकिन जितनी जल्दी क्रोध आता है, उतनी ही जल्दी उतर भी जाता है।
लेकिन कष्टों में भी ऐसे व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान होती है। इस अवधि में यदि उसका विवाह होता है, तो वैवाहिक जीवन सामान्य होता है, लेकिन आर्थिक स्थिति डांवाडोल बनी रहती है।
द्वितीय - शनि अकरक होने पर जहाँ एक ओर इंसान के भीतर आत्महत्या की भावना को प्रबल करता है, वहीं कारक होने पर यह व्यक्ति को झोपड़ी से महल में भी पहुंचा देता है। अंतिम चरण में शनि दो ही कार्य करता है - या तो झकझोर के रख देता है या बना देता है।
व्यक्ति के इस समय में दुर्घटना तथा मृत्यु की भी संभावनाएं बनी रहती है या शरीर के किसी हिस्से को नुकसान भी पहुँच सकता है।
यदि ऐसे समय में बृहस्पति प्रबल ओर सहायक रहा तो ऐसा व्यक्ति पूर्ण सुख भोग ऐश्वर्य प्राप्त करता है, धन की वर्षा सी होने लग जाती है, वाहन सुख, व्यापार वृद्धि, चुनाव में पूर्ण सफलता, सरकारी नौकरी लगना, नौकरी में प्रमोशन प्राप्त होती है, यो कहा जाये तो उसके जीवन में परिवर्तन आ जाता है। ऐसे व्यक्ति की उन्नति भी समाज में चर्चा का विषय होती है, व्यापार, नौकरी, विद्या अध्ययन में चतुर्दिक सफलता प्राप्त होती है एवं सुखद यात्राओं का योग बनता है।
ऐसे समय में यदि विवाह होता है, तो पत्नी सुंदर ओर हंसमुख होती है, तथा प्रथम संतान के रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।