Friday, March 7, 2014

ग्रहों के बल और स्वरूप

ग्रहों के - काल बल, चेष्टा बल, नैसर्गिक बल, दिग्बल, दृग्बल और स्थान बल - छह प्रकार के बल माने जाते हैं।
  1. कालबल - नतोन्नत बल,  पक्ष बल, अहोरात्र त्रिभाग बल व् वषैशादि बल इन चार बालों का योग ग्रह का 'काल बल' होता है।
  2. चेष्टा बल -  अयन बल और माध्यम चेष्टा बल का योग ग्रह का 'चेष्टा बल' होता है। 
  3. नैसर्गिक बल - शनि, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, चंद्रमा और सूर्य का 'नैसर्गिक बल' क्रमशः एकोत्तर अंशों को सात पर भाग देने से लब्धि तुल्य आता है। 
  4. दिग्बल - शनि में से लग्न को, सूर्य और मंगल में से चतुर्थ को, चन्द्रमा और शुक्र में से दशम को, बुध और गुरु में से सप्तम को घटाकर शेष को छह राशि पर भाग देने से ग्रहों का 'दिग्बल' निकाला जाता है।
  5. दृग्बल -  द्रष्टा ग्रह को दृश्य ग्रह में से घटाकर शेष को दृष्टि ध्रुवांक चक्र में दिये गये अंक से गुणा कर ३० का भाग देने से ग्रहों का 'दृग्बल' आता है। 
  6. स्थान बल - उच्च बल, युग्मायुग्म बल, सप्त वर्णेक्य बल, केन्द्र बल और द्रेष्काण बल का योग ग्रह का 'स्थान बल' कहलाता है। 
यदि ग्रह सूर्य के साथ हो तो 'अस्त', मंगल आदि पुरुष ग्रह चन्द्रमा के साथ हो तो 'समागम' और मंगल के साथ अन्य ग्रह हो तो 'युद्ध' कहलाता है। उत्तरायण में सूर्य और चन्द्रमा दोनों बली होतें है। शेष ग्रह समागम और वक्र गति होने से बलि होते हैं।

सूर्य के नेत्र शहद की भांति पिंगल वर्ण के हैं। इसके शरीर की लम्बाई -चौड़ाई बराबर है। यह अधिक पित्त और थोड़े बालों वाला है तथा मृत्युलोक का अधिपति है। जन्म के समय में इसकी स्थिति के अनुरूप जातक की देह, पिता, पराक्रम, आसक्ति और धन का विचार किया जाता है।

चन्द्रमा सुंदर नेत्र, गोल चेहरा, अधिक वाट और कफ वाला, मेधावी, बुद्धिमान् तथा मीठे वचन कहने वाला है। मन, बुद्धि, व्यावहारिक ज्ञान, राजा की प्रसन्नता, माता और सुख का विचार चन्द्रमा की जन्मकालिक स्थिति से किया जाता है।

मंगल पतली कमर, चंचल स्वभाव, दानशील, शूर, युवावस्था से संपन्न, क्रूर दृष्टि वाला और पित्तप्रधान है। इसकी जन्मकालिक स्थिति से शौर्य, रोग, गुण, छोटे भाई-बहन, भूमि, शत्रु  आदि का विचार किया जाता है।

बुध द्वि-अर्थी (जिन शब्दों के दो अर्थ हों) शब्द बोलने वाला, तीनों प्रकृति (वात-पित्त-कफ़ ) प्रधान गुण वाला व हंसी-मज़ाक वाला ग्रह है। इस की जन्मकालिक स्थिति के अनुसार विद्या, विवेक, बंधु, मामा, वाक् शक्ति, मित्र आदि का विचार किया जाता है।

बृहस्पति पीले नेत्र एवं पीले बालों वाला, दीर्घ और स्थूल देहधारी, श्रेष्ठ बुद्धि एवं कफ़प्रधान प्रकृति वाला है। इसकी जन्मकालिक स्थिति से शरीर-यष्टि, सुख, पुत्र, बुद्धि, धन एवं धार्मिकता का ज्ञान किया जाता है।

शुक्र देखने में सुंदर, सर्वदा सुखी, काले सघन केश, सुंदर नेत्र और वात-कफ़प्रधान प्रकृति वाला है। स्त्री-सुख, भूषणादि, वाहनसुख, कामवासना, व्यापार आदि का विचार इसकी जन्मकालिक स्थिति से किया जाता है।

शनि पतले एवं भारी शरीर, बड़े दांत, रूखे और कड़े केश, आलसी, कपिल-वर्णी नेत्रों तथा वातप्रधान प्रकृति वाला है। इसकी स्थिति से जातक की आयु, जीविका, मृत्यु का कारण, नौकर के सुख-दुःख आदि का विचार किया जाता है।

राहु से पितामह और केतु से मातामह का विचार किया जाता है।

शनि, सूर्य, चन्द्रमा , बुध, शुक्र, गुरु और मंगल ग्रहों को क्रमशः स्नायु, अस्थि, रक्त, त्वचा, वीर्य, वसा, मज्जा आदि का कारक होने से इनके स्वरूप आदि के द्वारा जातक का स्वरूप विचारने में उपयोग होता है। जन्म के समय जातक का जो ग्रह निर्बल होगा उस ग्रह की धातु निर्बल होगी और उसी के समान सम्बन्धित अंग भी पीड़ित होगा। प्रश्नकाल से रोग के कारण आदि का विचार भी किया जाता है।

ग्रहों के लोक 

पूर्वजन्म में जातक किस लोक में था और मृत्यु के पश्चात् वह कहाँ जायेगा, इस विचार के लिए ग्रहों के लोकों का उपयोग होता है।

स्वर्ग का अधिपति गुरु, पितृलोक के शुक्र और चंद्रमा, पाताललोक का बुध, मृत्युलोक के मंगल और सूर्य तथा नरक का अधिपति शनि को माना गया है। 

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