Saturday, December 12, 2015

ज्योतिष और कामकला (मकर, कुम्भ और मीन)

मकर - मगरमछ की आकृति की यह राशि वास्तव में मगरमच्छ है। इसकी कामोत्तेजना का स्थल पैरों में है। विशेष रूप से पिंडलियों में, उनको कंधे पर उठाकर रखते ही कंपन के साथ ही इस राशि की कामोत्तेजना बढ़ जाती है और वह स्खलित हो जाता है। जाति से शूद्र और केवल प्रथम भाग चतुष्पद है। अतएव इस कंधे पर पैर रखने वाले आसन ही प्रिय हैं। तत्त्व इसका पृथ्वी है और निवास जल या वन है। इस कारण इसका मैथुन शांत ढंग का होता है, पर भरपूर होता है। विपरीत पक्ष को वह पूरा निगल जाता है। उत्तर की और मुख करके क्रिया में विशेष सुख मिलता है। 
इसका मैथुन सारे शरीर में हलचल मचा देने वाला तथा पानी में मगरमच्छ के भागने के 'छप-छप' की ध्वनि से युक्त होता है। यह पृष्ठ भाग से सम्भोग करना पसंद करता है। इस राशि का जातक अत्यंत कामुक होता है। अपनी पत्नी के अलावा यह परायी स्त्री से अवश्य संबंध रखता है। इस राशि की स्त्री में कामोत्तेजना होती है, कामुक होती है, पर परपुरूष संपर्क में कठिनता से आ पाती है। इस राशि की स्त्री को संतुष्ट करने में पति/प्रेमी को पसीना आ जाता है। जाति शूद्र होने के कारण इसका मैथुन बड़ा अश्लील होता है। साफ़-सफ़ाई तो इसको पसंद है पर इसमें घिनौनापन ज़्यादा ही होता है। 
इसका विशिष्ट माह माघ (जनवरी/फरवरी) है। यही गर्भाधान/प्रसव का माह है। इसे रात का समय बेहद प्रिय है। इस राशि के संतान पर्याप्त मात्रा में होती है। प्रायः जुड़वा बच्चे आ जाते हैं। यह मैथुन से पूर्व अपनी पत्नी/प्रेमिका को बेहद तंग करता है। कभी हाथ तो कभी मुख का प्रयोग करने पर विवश कर देता है। श्रृंगारप्रियता के कारण पत्नी/प्रेमिका को पूरा श्रृंगार करवाने के बाद ही यह क्रिया करता है। पत्नी को यह नित नये रूप में देखना चाहता है। 
इस राशि के जातक का मन बड़ा रसिक होता है। शेरो शायरी और नयी-नयी बातें प्रेमपत्र में लिखता है। कामुकता के कारण पत्नी /प्रेमिका को अश्लीलतम पत्र भी लिख देता है। इस राशि की महलिाएं प्रायः एक-दो संतान को जन्म देने के बाद अपनी वास्तविक उम्र से ज़्यादा ही दिखने लगती है। उनका शरीर जल्दी ढल जाता है। संतान के प्रति लापरवाह रहता है। इसका पत्नी प्रेम घटता-बढ़ता रहता है। 
इस राशि की महिला को एकान्त बहुत पसंद रहता है। दिन में आलस्य और रात में अत्यंत फुर्ती होती है। मकर राशि की पत्नी पाना शुभ है परन्तु स्वभाव उग्र होता है, इस कारण कलह चलता है। मैथुन के समय इस राशि का जातक (स्त्री-पुरुष) को बात करते चलने की आदत भी रहती है। प्रायः गुप्त रोग हो जाते हैं। अपनी लापरवाही से इनको बढ़ा लेता है। इस राशि का पुरूष निम्नस्तरीय महिलाओं में विशेष रूचि रखता है। नौकरानी, मेहरी, मज़दूर, नानबाई, दुकानदार, फेरी लगाकर सामान बेचनी वाली स्त्रियां। यह हमेशा अपना पौरुष बढ़ाना चाहता है और सब ठीक रहने पर भी नाना प्रकार से ऐसे ही चक्कर में पड़ा रहता है। कामवर्धक दवाएं इसे सबसे ज़्यादा प्रिय होती हैं। इसके साथ-साथ इनको रात में नग्नावस्था में सोने की आदत होती है। स्वप्नदोष, शीघ्र पतन का शीघ्र शिकार बनता है। इस राशि की पत्नी इसके प्रभाव में रहती है और हमेशा भय खाती है। इसके भयानक क्रोध से वह बेहद डरती है। 
कुल मिलकर इसका सेक्स विकृत होता है। 

कुम्भ - इस राशि का कामोत्तेजना केन्द्र पिंडलियां/घुटने हैं। इनको उठाते सहलाते ही इनका ठंडापन समाप्त हो जाता है और यह शीघ्र स्खलित हो जाते हैं। यह पुरुष राशि है। द्विपद और शीर्षोदय है। निवास कुम्हार की बस्ती या चाक है। इसे दिन में मैथुन करना सुखमय लगता है तथा पृष्ठ भाग कम प्रिय है, पर कुम्हार के चाक की भांति यह चकरी लगा-लगाकर इस क्रिया को करता है। कामुकता होती है पर छलकते घड़े के समान धीमी गति से यह देर तक क्रीड़ारत रहता है। यह पत्नी को कष्ट नहीं देता है तथा उसकी तकलीफ का ध्यान रखता है और पूरा सहयोग देता है। परायी स्त्रियों से इसके सम्बन्ध होते हैं, पर वास्तविक प्रेम यह अपनी पत्नी/प्रेमिका से ही करता है। इसका तत्त्व आकाश है। अतएव मैथुन के सम्बन्ध में नाना प्रकार की कल्पनाएं/सपने बुनता रहता है। उत्तर दिशा की ओर मुख करके मैथुन करने में ज़्यादा सुख पाता है। इसका मैथुन ध्वनिमय होता है। जाति वैश्य के कारण साफ़-सफ़ाई प्रिय होता है।
इस राशि के महिला को बनाव-श्रृंगार बड़ा प्यार होता है तथा रंग-बिरंगे कपड़े पसंद करती है। मन्थ मैथुन इसे प्रिय है। चरम उत्तेजना और स्खलन के समय सीत्कारें अवश्य बिखेरती है। अपने पति से इसका प्रगाढ़ प्रेम होता है तथा उसे पूरा सुख देती है। इस राशि की बहुत कम महिलाएं परपुरूषगामी होती हैं। विवाह पूर्व अपनी चंचलता के कारण उनको अपयश मिल जाता है, पर शरीर सम्बन्ध में यह सरलता से हाथ नहीं लगाने देती है। कुम्भ होने के कारण हर बात में वजन रखती है। सोच-समझकर कदम उठाती है। अपने घरेलु काम-काज में रूचि रखती है। इस राशि का स्वभाव चर है। इस कारण  पुरूष का मैथुन स्थिर होता है। वह बार-बार अपनी स्त्री को कपड़े की गुड़िया के समान उलटता-पलटता नहीं है। इसका स्खलन अधिक मात्रा में होता है। ग्रह दशा अनुकूल हो तो इसे शीघ्र पतन, गुप्तरोग, नपुंसकता आदि नहीं घेरते हैं। पूर्ण रूप से यह मैथुन करता है। इस राशि का पुरूष गौर वर्ण की स्त्रियों में सबसे ज़्यादा रूचि रखता है। हल्का नीला रंग देखकर इसकी कामोत्तेजना बढ़ती है। शनिवार के दिन यह विशेष रूप से कामपीड़ित रहता है। वैसे माह फाल्गुन (फ़रवरी/मार्च) में यह बहुत ज़्यादा कामुक हो जाता है। इस राशि की स्त्री पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।
मैथुन के पूर्व यह पुरूष अपनी पत्नी/प्रेमिका के शरीर के साथ सबसे ज़्यादा प्यार करता है। इसके चुम्बन सबसे लम्बे और आलिंगन सबसे देर तक होते हैं। मैथुन के पूर्व यह पत्नी को प्यार करके सबसे ज़्यादा उत्तेजित कर देता है। इसको मैथुन के दौरान पूर्व या अंत में अश्लील वार्ता में सुख मिलता है। यह अपनी पत्नी से खुलकर फूहड़ शब्दों में तमाम  करता है। एकांत स्थानों में मौका देखकर यह अश्लीलतम वाक्य लिखने में बड़ा माहिर होता है अथवा गुप्त रोगों के चित्र बना देने में इसको बड़ा आनंद आता है। इसके प्रेमपत्र सबसे अश्लील होते हैं। अपनी पत्नी/प्रेमिका के साथ यह सार्वजनिक प्रेम प्रदर्शन करता है। हाथ पकड़कर चलना, कंधे पर हाथ रखना, कमर में सबके सामने हाथ रखना, निगाहें बचाकर यात्रा के दौरान उसके स्तन मर्दन कर देना साधारण बात है।
इसका सेक्स जीवन सुखमय रहता है और मरने से पहले तक यह पत्नी को नहीं छोड़ता है। कुम्भाकार होने के कारण अपने से बड़ी उमर की औरतों पर प्रायः रीझ  जाता है। विशेष रूप से मोटी स्त्रियां बेहद पसंद है। अपने से अठगुने शरीर की महिलाओं का दीवाना होता है।
इस राशि की महिला कम संतान को जन्म देती है और अपनी संतान के कारण पति से कलह करती है। वह अपना प्यार संतान को अधिक देती है। अनुकूल ग्रहदशा में कुम्भ राशि का पुरुष आदर्श पति होता है। पत्नी हर प्रकार से सुखी-संतुष्ट रहती है।

मीन - इस राशि का मैथुन सबसे निकृष्ट होता है। अंग्रेजी के 69 आकर के कारण यह विपरीत दिशा में अपना मुख करके सब प्रकार के घृणित कर्म करता है। इस जातक की राशि द्विस्वभाव की है और जाति ब्राह्मण है। योनि कीट है। इस राशि की इन विशेषताओं के कारण इसका मैथुन घृणित, चंचल और कामकला की दृष्टि से श्रेष्ठ (ब्राह्मण) होता है। यह राशि स्त्री को तृप्त करने की क्षमता रखती है। यह राशि उभयोदय है। अतएव रात-दिन किसी  भी समय यह मैथुन कर्म में लग जाता है।
इस राशि की स्त्री का मैथुन भी बड़ा चंचल होता है। मछली की तरह उसका बदन संभोग के समय लहराता है और वह पति से भी गिरा हुआ मैथुन पसंद करती है। इस राशि की महिला को गुप्तांगों के दर्शन, स्पर्श से विशेष सुख मिलता है। उनसे खिलवाड़ और प्यार, लगाव इसको विशेष रुचिकर लगता है। इस क्रिया में कम खिलवाड़ में ज़्यादा सुख मिलता है। वह कामुक होती है, पर मैथुन से ज़्यादा रूचि अन्य कामुक व्यवहारों में करती है।
इस राशि के स्त्री-पुरूष की कामुकता का उत्तेजना स्थल उनके तलवों में होता है। स्त्री या पुरूष के तलवे थोडा सा सहलाते ही इनकी उत्तेजना बढ़ जाती है या यह कामुकता की गति के कारण शीघ्र स्खलित हो जाते हैं। निवास जल होने के कारण इनका मैथुन ठंडा होता है, उत्तेजक नहीं और शीतल स्थान में यह विशेष कामुकता का परिचय देते हैं। गहरा भूरा रंग इनको विशेष प्रिय है।
इस राशि की कामवासना चैत्र (मार्च-अप्रैल) में विशेष रूप से ज़्यादा होती है। उत्तर-पूर्व दिशा में रुख करके यह मैथुन करने में अपने को बराबर सुखद दशा में रखते हैं। इनका प्रेम मैथुन के समय अत्यंत प्रगाढ़ हो जाता है, पर उतना प्रेम यह अपने सामान्य जीवन में एक-दूसरे के प्रति नहीं हैं। इनका दांपत्य जीवन द्विस्वभाव के कारण प्रायः कलह, वाद-विवाद से भरा रहता है। एक-दूसरे से हमेशा इनका स्वाभाव विपरीत रहता है। आपस में प्रायः पटरी नहीं बैठती है। दिन-भर या रात-भर की इनकी कलह का समझौता मैथुन के समय समाप्त हो जाता है। सारा प्यार उनका एक-दूसरे के लिए उमड़  पड़ता है।
मैथुन के पूर्व, बीच या अंत में यह एक-दूसरे से लिपटकर पड़े रहना ज़्यादा पसंद करते हैं। इसमें इनको ज़्यादा सुख मिलता है। इस राशि का जातक अपनी पत्नी/प्रेमिका के साथ लिपटकर सोना ज़्यादा पसंद करते हैं। इनका यह स्वभाव बन जाता है। अकेले होने पर यह तकिया, रजाई, गद्दा आदि को ही लपेटकर खीच लेंगे।
इस राशि के अवैध सम्बन्ध सदा अस्थायी रहते हैं। इनका सम्बन्ध शरीर तक कायम रहता है। इसके बाद यह विमुख हो जाते हैं। 69 की पोजीशन इनकी विशेषता है। इनके प्रेमपत्र बहुत संक्षिप्त शायद, कोशिश करूँगा/करुँगी जैसे अनिश्चयात्मक बातों या वायदों से भरे रहते हैं। इनके वायदे पूरे भी नहीं होते हैं। प्रायः वायदे पर आते/काम नहीं करते हैं। संतान की और से इनको हमेशा परेशानी/दुःख का सामना करना पड़ता है। यह आत्मसम्मान पर ठेस लगने पर बड़ी दृढ़ता के साथ काम करते हैं।
इनका पारिवारिक जीवन सामान्यतः सुखद होता है पर संभोग/मैथुन जीवन को वह काफी समय तक जीते हैं और सबसे ज़्यादा सुख यही पाते हैं। सभी प्रकार का प्राकृतिक-अप्राकृतिक-विकृत संभोग इनका जाना-भोगा होता है तथा मैथुन के समय एक-दूसरे में मछली के समान डुबकी मार जाना इनका स्वभाव होता है। वह मैथुन में बहुत ही गहरे डूबते हैं।
कुल मिलकर सामान्य दाम्पत्य जीवन अपनी चरम मैथुन सीमा पर यह व्यतीत करते हैं।

यह जानकारी ज्योतिष के विद्वान पंडित श्री राकेश शास्त्री जी की अनमोल कृति है। आशा है यह हम सभी का  मार्गदर्शन करने में सहायक सिद्ध होगी और हम सभी इस जानकारी से लाभ प्राप्त कर सकेंगे। 

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