Thursday, March 1, 2012

वर्ष कुंडली में मुंथा का महत्त्व

वर्ष कुंडली में नवग्रहों के समान मुंथा की भी स्थापना की जाती है। मुन्था, मुन्थेश, वर्षेश तथा वर्षलग्नेश को वर्षलग्न में अधिक महत्त्व दिया गया है। मुंथा यद्यपि कोई ग्रह नहीं है, तो भी  मुंथा को ताजिक शास्त्र में एक ग्रह के रूप में मान्यता दी गयी है। इसका फल ग्रह के समान ही महत्वपूर्ण है। मुंथा प्रतिवर्ष एक राशि में, एक माह में ढ़ाई अंश तथा एक दिन में ढ़ाई कला चलती है। इसे कभी वक्री नहीं माना गया है।

मुंथा जन्म लग्न से प्रति वर्ष एक-एक राशि आगे चलती है। वर्ष कुंडली में ४, ६, ७, ८, ११ और १२वे भाव में स्थित मुंथा अशुभ फलदायक होती है। यदि ४, ६, ७, ८, ११, १२वे भाव में शुभ ग्रह युक्त हो तो इतनी अधिक अनिष्टकारी नहीं होती।

द्वादश भावस्थ मुन्था  फल 


लग्न आदि द्वादश भावों में मुंथा का फल इस प्रकार होगा -
  1. लग्न भाव में मुंथा स्थित हो तो उस वर्ष शत्रु का नाश, भाग्य में वृद्धि, सवारी का सुख, यदि चार राशि में हो तो स्थान परिवर्तन के भी योग बनते हैं।
  2. द्वितीय भावस्थ मुंथा हो तो कठिन परिश्रम द्वारा धन लाभ एवं धन प्राप्ति के साधन बनते हैं। मनोरंजन एवं सुख साधनों पर व्यय भी बढता है।
  3. तृतीय भावस्थ मुंथा होने से शत्रु का नाश, भाइयों, मित्रों या उच्च पद प्राप्त महानुभावों का सहयोग प्राप्त होता है।
  4. चतुर्थ भावस्थ मुंथा शरीर कष्ट, वायु विकार, अपने-परायों से विरोध, गुप्त चिंताएँ, नौकरी और व्यवसाय में अनेक प्रकार के विघ्न, स्थान परिवर्तन आदि अशुभ फल घटित होते हैं।
  5. पंच्मस्थ मुंथा अत्यंत शुभ फल देने वाली होती है। सर्विस अथवा व्यापर में लाभ, धन, पुत्र एवं विद्या का लाभ, नए उद्योगों में सफलता मिले।
  6. षष्ठस्थ मुंथा हो तो शरीर कष्ट, शत्रु का भय, चित्त में अशांति, ननिहाल को हानि, स्वभाव में चिडचिडापन रहता है।
  7. सप्तमस्थ मुंथा अशुभ रहती है। स्त्री अथवा निकट बन्धुओं की और से कलह-क्लेश, पारिवारिक सदस्यों को कष्ट, बने बनाए कार्य बिगड़ना आदि अशुभ फल घटित होते हैं।
  8. अष्टमस्थ मुंथा होने से आशाओं में निराशा, पेट तथा अन्य गुप्त रोगों का भय, स्थान परिवर्तन, अनावश्यक यात्राओं तथा स्वास्थय पर भी अपव्यय होता है।
  9. नवमस्थ मुंथा उत्तम फल देती है। नौकरी में पद उन्नति अथवा व्यवसाय में लाभ-वृद्धि, पारिवारिक सुख एवं भाग्य में उन्नति होती है।
  10. दशमस्थ मुंथा होने से आर्थिक लाभ, सरकारी क्षेत्र में यदि कोई कार्य रुका होगा तो पूरा होगा (यानि लाभ होगा) तथा सोचे हुए कार्यो में सफलता प्राप्त होगी।
  11. ग्यारहवें भाव में मुंथा होने से धन लाभ, सुख-प्राप्ति, व्यापार और क्रय-विक्रय के कार्यो से लाभ होगा।
  12. द्वादशस्थ मुंथा आने से व्यापार तथा यात्रा करने से हानि, धन का खर्च, स्थान परिवर्तन के योग बनेगे।
मुन्थेश - जिस घर में मुन्था होती है उस राशि के स्वामी को मुन्थेश कहते हैं। 
  1. यदि मुन्थेश सूर्य हो अथवा मुन्था सूर्य से युक्त हो या सिंह राशि में मुन्था व सूर्य दोनों हों अथवा मुन्था सूर्य से दृष्ट हो तो राज्यपक्ष से लाभ होता है, गुणों की प्राप्ति होती है तथा स्थानान्तरण होता है।
  2. यदि मुंथा  चंद्रमा के घर में हो यानी मुन्थेश चंद्रमा हो या चंद्रमा से युक्त या दृष्ट हो तो धर्म तथा यश की वृद्धि होती है, शरीर रोगरहित होता है, चित्त में संतोष होता है तथा बुद्धि की वृद्धि होती है। यदि पाप ग्रह से दृष्ट हो तो कष्ट प्राप्ति होती है। 
  3. यदि मुन्था मंगल के घर में अथवा मंगल से युक्त या दृष्ट हो तो पित्त रोग होता है। शस्त्र से चोट लगने तथा रक्तस्राव होने की आशंका रहती है। यदि मुन्थेश पर शनि की दृष्टि हो तो उपरोक्त फल में वृद्धि हो जाती है। 
  4. यदि मुन्था बुध के घर में, अथवा बुध से युक्त या दृष्ट हो तो पत्नी, बुद्धि, लाभ, सुख, धर्म तथा यश मिलते हैं, परंतु पाप ग्रह से दृष्ट या युक्त हो तो कष्ट मिलता है। 
  5. यदि मुन्था गुरु से युक्त, दृष्ट या गुरु की राशियों में हो तो पुत्र तथा स्त्री से सुख मिलता है।  धन-धान्य की वृद्धि होती है। 
  6. यदि मुन्था शुक्र के घर में अथवा शुक्र से दृष्ट अथवा युक्त हो तो सुख, यश, धर्म-परायणता, सुबुद्धि तथा पत्नी से सुख प्राप्त होता है। 
  7. यदि मुन्था शनि के घर में हो अथवा शनि से दृष्ट या युक्त हो तो वातरोग, मानहानि, अग्निभय तथा धननाश होता है, परंतु गुरु की दृष्टि से उपरोक्त दोष समाप्त हो जाते है। 
  8. यदि मुन्थेश वर्षलग्न अथवा जन्मलग्नेश हो या बलवान होकर केन्द्र, त्रिकोण, द्वितीय अथवा एकादश स्थान में हो तो लाभ की प्राप्ति होती है। 
  9. यदि मुन्थेश १, ६, ८, १२वें स्थान में वक्री, अस्तंगत, पाप ग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट हो तथा क्रूर ग्रहों से चौथे या सातवें स्थान पर हो तो रोगभय, धननाश तथा कुशलता का अभाव होता है। 
  10. यदि मुन्थेश अष्टमेश के साथ बैठा हो या अष्टमेश से १, ४, ७, १०वी दृष्टि में हो तो मृत्युतुल्य कष्ट होता है। 
  11. छठे या आठवें भाव में स्थित मुन्थेश की दशा मारक होती है। 
वर्षलग्नेश 
  1. वर्ष लग्नेश यदि सूर्य हो (लग्न सिंह राशि हो) तो दुःख, व्याकुलता तथा मजबूरी रहती है। 
  2. वर्ष लग्नेश चंद्रमा हो तो मनुष्य पराश्रयी तथा क्षीण होता है। 
  3. मंगल वर्ष लग्नेश होने पर मनुष्य रोगी रहता है तथा विवाद एवं विरोध करने को उद्यत रहता है। 
  4. बुध वर्ष लग्नेश हो तो बुद्धि, विद्या आदि की वृद्धि होती है। 
  5. वर्ष लग्नेश गुरु या शुक्र हों तो अत्यंत सुख की प्राप्ति होती है। 
  6. शनि वर्ष लग्नेश हो तो कलह, उद्वेग तथा अशुभ कार्यों का बोलबाला रहता है। 

No comments:

Post a Comment