वाराहमिहिर की बृहत् संहिता में तथा ज्योतिष के प्रसिद्ध ग्रन्थ फलदीपिका के योग अध्याय में निम्न श्लोक में पांच महापुरुष योगों का वर्णन किया गया है :-
रूचक भद्रक हंसक मालवाः सशशका इति पंच च कीर्तिताः
स्वभवनोच्चागतेषु चतुष्टये क्षितिसुतादिषु तान् क्रमशौ वदेत्।
अर्थात् पंच महापुरुष योग रूचक, भद्रक, हंसक, मालव्य और शश हैं जो क्रमशः मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि के जन्मपत्रिका में, केन्द्र में, स्वराशि अथवा उच्चराशि में स्थित होने पर बनते हैं।
रूचक योग - जन्मकाल में मंगल बलवान होकर स्वराशि, मूल, त्रिकोण राशि का अथवा उच्च राशि का हो केन्द्र में गया हो तो रूचक योग होता है। रूचक योग में उत्पन्न जातक का शरीर मजबूत एवं प्रसिद्ध और प्राचीन ग्रन्थों का ज्ञाता होता है। वह सम्पत्ति ऐश्वर्य कीर्ति से युत सुशील शास्त्री मन्त्री जप तप कर्त्ता परम्परा और परिपाटी के अनुसार राजा किंवा राजा के समान, श्रेष्ठ अत्यंत सुंदर कोमल, दाता, शत्रुओं को जीतने वाला सुखी, सेनापति, ७० वर्ष पर्यन्त जीवित रहने वाला होता है। रूचक योग से जातक पर मंगल का प्रभाव होता है, वह लोगों का नेता होता है, वह कमान्डर होता है, आक्रमणकारी होता है परन्तु देशभक्त शासक होता है या उसके बराबर होता है।
भद्रक (भद्र) योग - बुध बलवान होकर स्वराशिस्थ मूल त्रिकोण राशि का किंवा उच्च राशि में केन्द्र में गया हो तो भद्रक नाम का योग बनता है। जो जातक इस योग में जन्म पाते हैं वह अल्पभाषी होते हैं। सिंह के समान मानी गजपति, पुष्ट जंघा और वक्षस्थल वाले गोलबाहु के, बंधुजनों पर उपकार करने वाले प्रज्ञा यश पित्तादि से युक्त राजा व राजा के समान होते हैं और ८० वर्ष पर्यन्त जीवित रहते हैं। इस योग में जातक के हाथ ज़्यादा लंबे होते हैं। बुध बुद्धि का कारक होता है और बुध के नैसर्गिक स्वभाव के साथ भद्रक योग का सम्बन्ध होता है। बुध का बली होना आवश्यक है अन्यथा यह योग मात्र विधितः होकर रह जायेगा।
हंस योग - जन्मकाल में गुरु बलवान होकर स्वराशि, मूल त्रिकोण राशि का किंवा उच्च राशि का केन्द्र में गया हो तो हंस योग होता है। दूसरे शब्दों में सभी द्विस्वभाव और चर राशियों अर्थात् मेष, कर्क, तुला और मकर में हंस योग संभव है। यहाँ पर यह मान लिया गया है कि लग्न भी एक केन्द्र है। अचर राशियों वृष, सिंह, वृश्चिक और कुम्भ में उत्पन्न व्यक्ति की कुंडली में हंस योग नहीं बन सकता क्योंकि इन राशियों से केन्द्र में बृहस्पति की उच्च राशि या अपनी राशि नहीं आती है। इस योग का बल भी पहले की तरह और बृहस्पति जिस केन्द्र स्थित हैं उसके बल पर निर्भर करता है। स्पष्टतः दशम केन्द्र अधिक बली होता है। बृहस्पति का केन्द्राधिपति होना आवश्यक नहीं है किन्तु जब हंस योग बनता हो सामान्य सिद्धान्त का महत्त्व समाप्त हो जाता है। चूँकि बृहस्पति का केन्द्र में स्थित होना स्वक्षेत्रता के बराबर है और केन्द्र उसके उच्च स्थान के बराबर है और उच्च स्थान के द्वारा हंस योग अधिक अधिमान्य है क्योंकि बृहस्पति के चतुष्कोणी स्वामित्व के कारन बुरे प्रभाव समाप्त हो जाते हैं। हंस योग की व्याख्या सावधानी पूर्वक करनी चाहिए क्योंकि इस योग वाला व्यक्ति चरित्रवान और महान नैतिक होता है। इस योग में जो जन्मते हैं वह रक्त वर्ण के होंठ के चम्पे की कली के समान, उन्नत नासिका, सुंदर चरण हंस के समान मंजुल स्वर, कफ़ प्रकृति के, गौर वर्ण के नाज़ुक स्त्री वाले सुंदर शास्त्रज्ञ निपुण सदाचार सम्पन्न ८० वर्ष पर्यन्त जीवित रहने वाले होते हैं। इस जातक के पैरों पर शंख, कमल, मछली और अंकुश का चिन्ह होगा। इस योग वाले जातक सौंदर्य प्रसाधन, फैशन, कलाकार, कवि, नाटककार, गुरु या समाजिक कार्यों से जुड़कर नाम व् यश कमाते हैं।
मालव्य योग - शुक्र बलवान होकर स्व, उच्च, मूल त्रिकोण राशि में जाकर केन्द्र में गया हो तो मालव्य योग होता है।
मंत्रेश्वर जी के अनुसार :-
मालव्य योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति आकर्षक, कांतिमान, पुष्ट शरीर वाला, धैर्यवान, विद्वान, प्रसन्नचित्त रहने वाला, सदैव वृद्धि को प्राप्त करने वाला, विवेकशील बुद्धि का धनी होता है। उसको समस्त ऐश्वर्य , धन संपत्ति, संतान सुख आदि सहज ही प्राप्त हो जाते हैं। वह सौभाग्यशाली होता है, उसे भौतिक सुख आसानी से प्राप्त हो जाते हैं। वाहनों का पर्याप्त सुख प्राप्त होता है तथा उसकी कीर्ति और प्रसिद्धि सर्वत्र फैलती है। वह जन्मजात विद्वान होता है। सुबोध मति वाला और सुखों को आजीवन भोगने वाला होता है।
ज्योतिष ग्रन्थ बृहत्त पाराशर होरा शास्त्र के अनुसार पांच महापुरूष अध्याय के अंतर्गत तीन श्लोक जन्मपत्रिका में स्थित मालव्य महापुरूष योग के गुणावगुणों की व्याख्या देते हैं कि मालव्य योग में जन्मा व्यक्ति आकर्षक होंठ वाला, चन्द्र के समान कांति वाला, गौरवर्ण, मध्यम कद, धवल एवं स्वच्छ दंतावलियुक्त, हस्तिगर्जनायुक्त, लम्बी भुजाएं, दीर्घायु एवं भौतिक-सांसारिक सुखों को भोगते हुए जीवन व्यतीत करता है।
मालव्य योग तभी बन सकता है यदि शुक्र केंद्र भाव में उच्च का हो अथवा केंद्र भाव में अपनी ही राशि में स्थित हो। ग्रह मंडल की प्रत्येक राशि में मालव्य योग नहीं बन सकता है। शुक्र के स्वभाव के अनुसार मालव्य योग वाला जातक दृढ़ निश्चयी और काफी धनी होता है और पत्नी तथा बच्चों से सुख प्राप्त होता है, प्रसिद्धि की प्राप्ति होती है। शुक्र स्वामी, ऐंद्रिय सुख, संगीत, नृत्य, ललित कला, ऐशोआराम और भौतिक सुख का कारक होता है। स्वभावतः मालव्य योग से जातक का झुकाव शुक्र के फलों की ओर होता है परिणाम स्वरूप भौतिक सुख और आनन्द की तुलना में आध्यात्मिक प्रगति विपरीत होगी।
यदि हम मालव्य योग के धारक व्यक्ति की कुंडली का विश्लेषण करें तो स्वतः अनुमान लगा पाएंगे कि मालव्य योग व्यक्ति को किस सीमा तक ऊँचाई देता है। यद्यपि जन्मपत्रिका में केवल मात्र मालव्य योग ही श्रेष्ठता नहीं देता अपितु अन्य ग्रह स्थिति भी देखी जानी चाहिये परन्तु फिर भी इस योग में उत्पन्न व्यक्ति में शुक्र के विषयों के प्रति एक महान आकर्षण रहता है और वह इन्ही विषयों में से किसी एक में शुक्र का आशीर्वाद पाकर स्थापित हो जाता है। महापुरुष योग व्यक्ति के चरित्र का निर्धारण करते हुए क्षेत्र विशेष में श्रेष्ठतर पद-प्रतिष्ठा प्राप्त करवाता है। मालव्य योग में जन्मा व्यक्ति अति आधुनिक पद्धतियों का अनुसरण करते हुए संगीत, प्राचीन विद्याएं, प्रेम काव्य, प्रेम गीत, अभिनय आदि के क्षेत्र में पारंगत होकर प्रसिद्ध हो जाता है।
शश (शशक) योग - शनि बलवान होकर स्वराशि, मूल त्रिकोण राशि में किंवा अपनी उच्च राशि में जाकर केंद्र में गया हो तो शश योग होता है। चर या स्थिर राशियों में जन्म होने शनि की कतिपय स्थिति के कारण शश योग बनता है। स्वभावतः द्विस्वभाव राशियों में यह योग नहीं बनता। शश योग होने पर जातक में शनि के नैसर्गिक गुण होते हैं। शनि कठोर, नीच, अपरिष्कृत और पापी ग्रह है और इन विशेषताओं के कारण शश योग के फल होते हैं। इसमें संदेह नहीं कि जातक प्रसिद्ध और सुखी होता है किन्तु उसका ऐंद्रिय विचार विकृत होता है। वह परस्त्री के साथ समागम करता है और दूसरे का धन लेने के लिए अनाचारी प्रयोग करता है। शश योग की व्याख्या करते समय चन्द्रमा की स्थिति पर विचार कर लेना चाहिए। यदि यह प्रकाशीय ग्रह बुरे प्रभावों से मुक्त है तो व्यक्ति दूसरों का धन नहीं लगा और ना ही कदाचारी होगा। जहाँ चन्द्रमा पर बुरे प्रभाव उ हो वहां शश योग के कारण बुरे प्रभाव सीमित होते हैं। इस योग में जातक राजा की तरह अपने जीवन को जीता है। इस योग में जातक सेनापति, धातुकर्मी, विनोदी, क्रूरबुद्धि, जंगल-पर्वत में घूमने वाला होता है। आँखों में क्रोध की ज्वाला चमकती है। ये जातक तेजस्वी, भ्रातृ प्रेमी, सुखी, शूरवीर, श्यामवर्ण, तेज़ दिमाग़ और स्त्री के प्रति अनुरक्त होते हैं। यह जातक वैज्ञानिक, निर्माणकर्त्ता, भूमि सम्बन्धित कार्यों में संलग्न, जासूस, वकील, तथा विशाल भूमि खण्ड के मालिक होते हैं।
मंत्रेश्वर जी के अनुसार :-
पुष्टाङ्गे धृतिमांधनी सुतवधु भाग्यान्वितो वर्धनो।
मालव्ये सुखभुवसुवाहनयशा विद्वानप्रसन्नेंद्रिय॥
मालव्य योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति आकर्षक, कांतिमान, पुष्ट शरीर वाला, धैर्यवान, विद्वान, प्रसन्नचित्त रहने वाला, सदैव वृद्धि को प्राप्त करने वाला, विवेकशील बुद्धि का धनी होता है। उसको समस्त ऐश्वर्य , धन संपत्ति, संतान सुख आदि सहज ही प्राप्त हो जाते हैं। वह सौभाग्यशाली होता है, उसे भौतिक सुख आसानी से प्राप्त हो जाते हैं। वाहनों का पर्याप्त सुख प्राप्त होता है तथा उसकी कीर्ति और प्रसिद्धि सर्वत्र फैलती है। वह जन्मजात विद्वान होता है। सुबोध मति वाला और सुखों को आजीवन भोगने वाला होता है।
ज्योतिष ग्रन्थ बृहत्त पाराशर होरा शास्त्र के अनुसार पांच महापुरूष अध्याय के अंतर्गत तीन श्लोक जन्मपत्रिका में स्थित मालव्य महापुरूष योग के गुणावगुणों की व्याख्या देते हैं कि मालव्य योग में जन्मा व्यक्ति आकर्षक होंठ वाला, चन्द्र के समान कांति वाला, गौरवर्ण, मध्यम कद, धवल एवं स्वच्छ दंतावलियुक्त, हस्तिगर्जनायुक्त, लम्बी भुजाएं, दीर्घायु एवं भौतिक-सांसारिक सुखों को भोगते हुए जीवन व्यतीत करता है।
मालव्य योग तभी बन सकता है यदि शुक्र केंद्र भाव में उच्च का हो अथवा केंद्र भाव में अपनी ही राशि में स्थित हो। ग्रह मंडल की प्रत्येक राशि में मालव्य योग नहीं बन सकता है। शुक्र के स्वभाव के अनुसार मालव्य योग वाला जातक दृढ़ निश्चयी और काफी धनी होता है और पत्नी तथा बच्चों से सुख प्राप्त होता है, प्रसिद्धि की प्राप्ति होती है। शुक्र स्वामी, ऐंद्रिय सुख, संगीत, नृत्य, ललित कला, ऐशोआराम और भौतिक सुख का कारक होता है। स्वभावतः मालव्य योग से जातक का झुकाव शुक्र के फलों की ओर होता है परिणाम स्वरूप भौतिक सुख और आनन्द की तुलना में आध्यात्मिक प्रगति विपरीत होगी।
यदि हम मालव्य योग के धारक व्यक्ति की कुंडली का विश्लेषण करें तो स्वतः अनुमान लगा पाएंगे कि मालव्य योग व्यक्ति को किस सीमा तक ऊँचाई देता है। यद्यपि जन्मपत्रिका में केवल मात्र मालव्य योग ही श्रेष्ठता नहीं देता अपितु अन्य ग्रह स्थिति भी देखी जानी चाहिये परन्तु फिर भी इस योग में उत्पन्न व्यक्ति में शुक्र के विषयों के प्रति एक महान आकर्षण रहता है और वह इन्ही विषयों में से किसी एक में शुक्र का आशीर्वाद पाकर स्थापित हो जाता है। महापुरुष योग व्यक्ति के चरित्र का निर्धारण करते हुए क्षेत्र विशेष में श्रेष्ठतर पद-प्रतिष्ठा प्राप्त करवाता है। मालव्य योग में जन्मा व्यक्ति अति आधुनिक पद्धतियों का अनुसरण करते हुए संगीत, प्राचीन विद्याएं, प्रेम काव्य, प्रेम गीत, अभिनय आदि के क्षेत्र में पारंगत होकर प्रसिद्ध हो जाता है।
शश (शशक) योग - शनि बलवान होकर स्वराशि, मूल त्रिकोण राशि में किंवा अपनी उच्च राशि में जाकर केंद्र में गया हो तो शश योग होता है। चर या स्थिर राशियों में जन्म होने शनि की कतिपय स्थिति के कारण शश योग बनता है। स्वभावतः द्विस्वभाव राशियों में यह योग नहीं बनता। शश योग होने पर जातक में शनि के नैसर्गिक गुण होते हैं। शनि कठोर, नीच, अपरिष्कृत और पापी ग्रह है और इन विशेषताओं के कारण शश योग के फल होते हैं। इसमें संदेह नहीं कि जातक प्रसिद्ध और सुखी होता है किन्तु उसका ऐंद्रिय विचार विकृत होता है। वह परस्त्री के साथ समागम करता है और दूसरे का धन लेने के लिए अनाचारी प्रयोग करता है। शश योग की व्याख्या करते समय चन्द्रमा की स्थिति पर विचार कर लेना चाहिए। यदि यह प्रकाशीय ग्रह बुरे प्रभावों से मुक्त है तो व्यक्ति दूसरों का धन नहीं लगा और ना ही कदाचारी होगा। जहाँ चन्द्रमा पर बुरे प्रभाव उ हो वहां शश योग के कारण बुरे प्रभाव सीमित होते हैं। इस योग में जातक राजा की तरह अपने जीवन को जीता है। इस योग में जातक सेनापति, धातुकर्मी, विनोदी, क्रूरबुद्धि, जंगल-पर्वत में घूमने वाला होता है। आँखों में क्रोध की ज्वाला चमकती है। ये जातक तेजस्वी, भ्रातृ प्रेमी, सुखी, शूरवीर, श्यामवर्ण, तेज़ दिमाग़ और स्त्री के प्रति अनुरक्त होते हैं। यह जातक वैज्ञानिक, निर्माणकर्त्ता, भूमि सम्बन्धित कार्यों में संलग्न, जासूस, वकील, तथा विशाल भूमि खण्ड के मालिक होते हैं।