ज्योतिष सम्बन्धी निम्नलिखित योगों से पागलपन के विभिन्न रूपों का पता चलता है :-
- वातोन्माद - निम्नलिखितलक्षणों से इसका पता लगाया जा सकता है :- जैसे हमेशा हँसते रहना, अक्सर ताली बजाते रहना, जोर से बोलना, नाचते रहना, चीख़ना, पैर हिलाते रहना और हाथ मरोड़ना। शरीर तांबे के रंग का, नरम और रक्तिम हो जाता है। खाया हुआ खाना पच जाने के बाद वह अशान्त हो जाता है।
- पित्तोन्माद - सभी से घृणा करना, धृष्ट, हमेशा गुस्से में रहना, गाली गलौच करना, खाने और पानी पीने में हमेशा आगे, बहुत क्रोधित, शरीर पीला पड़ जाता है परन्तु जब दौरा पड़ता है तो शरीर गर्म हो जाता है।
- कफोन्माद - एकांत और स्त्री पसंद, प्रत्येक वस्तु के लिए विरक्ति, थोड़ा सोना, मुँँह से हमेशा कफ निकलना, उँगलियों के नाख़ून पीले और सफ़ेद पड़ जाते हैं।
- सन्निपातोन्माद - ऊपर दिए गए लक्षण मिश्रित रूप से दृष्टिगोचर होते हैं। उत्पीड़न से मुक्ति के लिए सन्निपात सन्निपात असंभव है।
निम्नलिखित आठ ग्रह योगों द्वारा ऊपर के सभी प्रकार के पागलपन को सुनिश्चित किया जा सकता है :-
- लग्न में बृहस्पति और सप्तम में शनि हो।
- लग्न में बृहस्पति और सप्तम में मंगल हो।
- लग्न में शनि और सप्तम, पंचम या नवम में मंगल हो।
- चन्द्रमा और बुध दोनों एक साथ लग्न में स्थित हों।
- क्षीण चन्द्रमा और शनि १२वें भाव हों।
- बुरे ग्रह से युक्त क्षीण चन्द्रमा पाँचवे, आठवें या नौवें भाव में स्थित हो।
- बुरे ग्रह के साथ युक्त गुलिका सप्तम भाव में हो और
- बुरे ग्रह के साथ बुध तीसरे, छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो।
ऐसा कहा जाता है कि वात्त, पित्त और कफोन्माद उच्चित मात्रा में अौषधि के प्रयोग से ठीक हो सकता है परन्तु सन्निपातोन्माद के बारें में यह कहा जाता है कि मांत्रिक उपचार, जप, होम, यंत्र पहनने के सिवाए यह ठीक होने योग्य नहीं है।
यदि चन्द्रमा, शुक्र और अष्टमेश बुरे स्थान में स्थित हो तो यह अनुमान लगाया जाता है कि भोजन के अनियमित प्रयोग के कारण उन्माद है। यदि उपरोक ग्रह राहु, केतु या गुलिका के साथ हों तो पागलपन अस्वास्थ्य कर भोजन के कारण है। यदि मंगल पांचवें भाव में हो तो पागलपन का कारण अधिक क्रोध होता है; किसी अन्य बुरे ग्रह से अधिक भय का पता लगता है। यदि नवम भाव में बुरे ग्रह हों तो गुरु या महान लोगों के अभिशाप के कारण पागलपन होता है।