विवाह सर्वमांगल्ये यात्रायां ग्रह गोचरे।
जन्म राशि प्रधानत्वं नाम राशि न चिन्तयेत।।
देशे ग्रामे ग्रहे युद्धे सेवायां व्यवहारके।
नाम राशि: प्रधानत्वं जन्म राशि न चिन्तयेत।।
वर का प्रसिद्ध नाम तथा कन्या का जन्म
नाम, कन्या का जन्म नाम तथा व वर का प्रसिद्ध नाम कदापि न लें।
वैवाहिक समय में वर तथा कन्या की कुंडली का मिलान करने से प्रथम निम्नलिखित बातों
का ध्यान रखना ज़रूरी है ताकि वर-कन्या (नव दंपत्ति) अपना जीवन सुखमय व्यतीत कर
सकें।
- सर्वप्रथम ध्यान में रखने वाली बात यह है कि कुंडली में मांगलिक दोष, अगर हो तो वर कन्या दोनों की जन्म कुंडलियों में हो।
- वर्ण, कूट, वश्य कूट, तारा कूट, योनि कूट ग्रह मैत्री, गण मैत्री, भकूट, नाड़ी कूट इन आठ कूटों का मिलान अवश्य करें।
- वर कन्या का जन्म समय ठीक होना चाहिए।
- सबसे अधिक ध्यान रखने योग्य बात यह है कि क्या वर तथा कन्या का जन्म-पत्र शुद्ध, सूक्ष्म एवं सिद्धान्तीय गणित के अनुसार है।
एक नाड़ीस्थनक्षत्रे दम्पत्योर्मरण ध्रुवं ।
सेवायां च भवेद्धानि विवाहे प्राण नाशकः ।।
वर-कन्या कि एक नाड़ी हो तो निश्चय मरण, सेवा में हानि और
विवाह में प्राणों का नाश होता है ।
आदि नाड़ी वर हान्ति मध्य नाड़ी च कन्यकाम् ।
अन्त्यनाड़ायां दूयोमृत्यु नाड़ी दोषं त्यजेद् बुधः ।।
आदि नाड़ी वर को, मध्य नाड़ी कन्या को और अन्य नाड़ी दोनों का
हनन करती हैं।
इससे नाड़ी दोष विद्वानों को त्याग देना चाहिए।
नाड़ी दोषश्च विप्राणां
वर्णदोषस्तु भुभ्रुजाम्।
गण दोषश्च वैश्यषु योनि दोषतु पादजाम्।।
विवाह में ब्राह्मणों के लिए नाड़ी दोष, क्षत्रियों के लिए
वर्ण दोष, वैश्यों को गण दोष और शुद्रों को योनि दोष विशेष कर विचारना चाहिए।
एक नक्षत्र जातानां नाड़ी दोषो न विधते।
अन्यर्क्षे नाड़िवेधे च विवाहो वर्जितः सदा।
ऐकर्क्षे चैक पापे
च विवाहो मरणः प्रदः।।
ऐकर्क्षे भिन्न पापे च विवाहः शुभदायक ।।
एक नक्षत्र में उत्पन्न हुए वर-कन्या को नाड़ी का दोष नहीं
है। जो दूसरे नक्षत्रों का नाड़ी वेध हो
तो विवाह सदा वर्जित है परन्तु एक नक्षत्र में एक ही चरण हो तो विवाह मरणदायक और
एक नक्षत्र में अलग-अलग चरण हो तो विवाह शुभदायक है ।
लग्ने व्यये व पातालेयामित्रे चाष्टमे कुजे ।
पत्नी हंति स्वभर्त्ता
भर्त्ता भार्यां विनाश्येत ।।
यदि स्त्री के लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और व्यय स्थान
में मंगल हो तो पुरुष की मृत्यु होती है इसलिए वर कन्या दोनों का मंगल होना आवश्यक
है अन्यथा एक को कष्ट स्वाभाविक है ।
यामित्रे च यदा सौरिर्लग्ने वा हिबुकेऽथवा ।
अष्टमे द्वादशे चैव भौम दोषो न विद्यते ।।
यदि लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और
द्वादश भाव में शनि हो तो मंगल का दोष नहीं रहता ।
शानिभौमोऽथवा कश्चित् पापो वा तादृशो भवेत् ।
तेप्नेव भवनेप्वेव भौम दोष विनाशकृत।।
यदि वर या कन्या किसी एक के मंगल हो और दूसरे की कुंडली में
मंगल न होकर मंगल के स्थान पर शनि या राहू पाप ग्रह हो तो मंगल दोष नहीं रहता।
न वर्ग वर्णों न गणो न योनि योनीर्द्धिद्धादशे नैवषडष्टक ।
तारा विरुद्धे नवपंचमेवा राशिश मैत्री शुभदे विवाह।।
वर और कन्या की राशियों के स्वामी एक हो व दोनों के स्वामियों
की परस्पर मित्रता हो तो वर्णादि कूटों का दोष नहीं रहता।
इसी
तरह नाड़ी दोष में यदि वर और कन्या का नक्षत्र भिन्न-भिन्न हो किन्तु राशि एक है या
दोनों का नक्षत्र एक हो और राशि भिन्न-भिन्न हो तो नाड़ी दोष नहीं होता।
यदि
दोनों ही एक राशि और एक ही नक्षत्र हो तो विवाह शुभ नहीं होता।
किन्तु
नक्षत्र में भिन्न-भिन्न चरण होने से अति आवश्यक हो तो शुभ रहेगा।
वरस्य पंचमे कन्या, कन्याया नवमेवरः।
एतत् त्रिकोणकं ग्रहमं पुत्र पौत्र सुखावहम।
मरण पितु मात्रोश्च सन्ग्राह्मं नवपंचकम् ।।
षड्ष्टके भवेन मृत्युर्यत्नं तस्य विचारयेत ।।
वर की राशि से कन्या की राशि पंचम हो, कन्या की राशि से वर की
नवम हो तो यह नवपंचम त्रिकोण शुभ है।
यदि विपरीत हो यानि कन्या से पंचम वर की व वर से नवम कन्या की
तो माता पिता को मृत्यु तुल्य कष्ट कहें ।