शनि के उपरान्त हर्षल की सौर मंडल में स्थिति है जिसका वायुमंडल शनि और बृहस्पति के तुल्य है। यह सूर्य से १ अरब ७८ करोड़ २३ लाख मील दूर है जबकि पृथ्वी से इसकी दूरी १ अरब ६९ करोड़ मील आंकी गयी है, यह ग्रह मंद गति से पूर्व से पश्चिम की और सूर्य की परिक्रमा कर रहा है। सूर्य की परिक्रमा करने में इसे ८४ वर्ष का समय लगता है। स्थूल मान से यह ७ वर्ष मैं एक राशि चक्र पूरा कर लेता है। हर्षल ग्रह की खोज १३ मार्च १७८१ को सर विलियम हर्बल ने की थी अतः अंक ज्योतिष की गणना अनुसार मूलांक ४ को इसका प्रतिनिधि अंक माना गया है। अंक ४ की विषेशतानुसार ही खगोलज्ञो ने एवं ज्योतिषवेत्ताओ ने वर्षों तक शोध एवं निरीक्षण किया जिसमें दैनिक गति एवं वार्षिक गतियों का संकलन करके फलित सिद्धांतों की खोज की जो काफ़ी आश्चर्यजनक निकले।
आधुनिक ज्योतिषयों ने हर्षल को ज्ञान, विज्ञान से संपन्न, जागृति का द्योतक, सर्वाधिक विलक्षण खोज युक्त, अनूठा एवं अदभुत ग्रह माना है, यह भी अन्य ग्रहों की भांति जनमानस को प्रभावित करता है। इसकी मित्र राशियां मिथुन, तुला एवं कुम्भ है। यह ग्रह बुध, गुरु एवं शनि के साथ शुभ फल देता है। अन्वेषण, पर्वतारोहण, देशाटन कार्यों में ख्याति देता है। हर्षल मैं परम्परावादी विचारधारा से हटकर नया करने की प्रकृति पाई जाती है, सार्वजनिक जीवन के सम्बन्ध में नये नियम बनाने का कार्य हर्षल प्रधान व्यक्ति करते है।
विश्वप्रसिद्ध भविष्यवक्ता कीरो ने हर्षल अंक वाले व्यक्तियों के बारे में बताया है की ऐसे व्यक्तियों का मूल्यांकन करना कठिन होता है यह लोग जैसे दिखाई देते है ठीक उसके विपरीत दृष्टिकोण रखने वाले होते हैं। तर्क-वितर्क करने और विपक्ष में रहने के कारण अनेक लोग उनके शत्रु बन जाते हैं, ये लोग वकालत के व्यवसाय मैं अच्छे सिद्ध होते हैं। बुध हर्षल योग उच्चकोटि की सफलता दिलाता है जबकि गुरु हर्षल योग उच्चकोटि का विद्वान बनाता है, शनि के साथ अध्यात्म ज्ञान की और उन्मुख करता है जबकि मंगल के साथ शुभ प्रभाव में उच्च कोटि का सेनानायक और अशुभ स्थिति में रहने पर विध्वंसक बनाता है। सूर्य से विरोधी विचारधारा रखकर यह विद्रोही प्रकृति का बनाता है ऐसा जातक अधिकांश पितृ-विरोधी देखा गया है। चंद्र के साथ तंत्र-मंत्र एवं जादू-टोना की और प्रवृत्त करता है। आधुनिक जगत मैं विद्युत-विकास, इलेक्ट्रोनिक्स, सिनेमा, जनसंचार प्रणाली, अंतरिक्ष अनुसंधान एवं अन्य वैज्ञानिक उपलब्धियों का संबंध हर्षल ग्रह से माना गया है। यह वायुवेग प्रिय ग्रह है। आधुनिक ज्योतिर्विदों ने कुम्भ राशि पर इसका स्वामित्व स्वीकार किया है।
यह ग्रह प्रभाव युक्त होने पर उद्वेग, हठ, आकस्मिक दुर्भाग्य एवं निराशा का संचार करने लगता है। विघटन, विनाश अथवा सामूहिक विपत्तियों का सृजन करता है। क्रान्ति, विद्रोह, राजनैतिक उथल-पुथल, मोटर, रेल एवं वायुयान दुर्घटनाएं इसके कुप्रभाव का परिणाम हैं। राष्ट्रों, प्रान्तों एवं घनिष्ठ संबंधों के मध्य विघटन करवाने की भूमिका इसी हर्षल ग्रह की कुदृष्टि का परिणाम होती है। यह चंद्र अथवा सूर्य के निकट होने पर दांपत्य सुख में कमी करके व्यक्ति को एकाकी एवं विघटनकारी बनाता है। शुक्र के साथ बुरे कार्यों की और ले जाता है, मादक पदार्थ का सेवन करवाता है। यह ग्रह रात्रि बली, गुप्तचरों का प्रतिनिधि, चमत्कारिक एवं विस्मयकारी गुणों से युक्त तमोगुणी ग्रह है। इस ग्रह के गुण, लक्षण, वृति, दृष्टि प्रभावों का शुभाशुभ ज्ञान ज्योतिष ज्ञान में परिमार्जन एवं परिवर्धन हेतु परम आवश्यक है।