Sunday, August 14, 2016

ग्रहों की अवस्थाएं

राशि, अंशों, भावों तथा पारस्परिक सम्बन्धों के अनुसार ग्रहों की भिन्न-भिन्न प्रकार से अवस्थाएं मानी गयी हैं। ग्रह अपनी अवस्थानुसार ही फल देते हैं। ग्रहों की अवस्था का वर्गीकरण निम्नानुसार है:-

१. अंशों के आधार पर अवस्था 

अंशों के आधार पर ग्रहों को पांच आयुवर्गों में बांटा गया है। विषम राशियों में बढ़ते हुए अंशों में बालक से मृत तथा सम राशियों में घटते हुए अंशों में बालक से मृत के क्रम में ग्रहों की आयु मानी गयी है। 

क)  ग्रह विषम राशियों में ६° तक बालक, ६° से १२° तक कुमार, १२° से १८° तक युवा, १८° से २४° तक वृद्ध तथा २४° से ३०° तक मृत अवस्था में रहता है। 

ख) ग्रह सम राशियों में ३०° से २४° तक बालक, २४° से १८° तक कुमार, १८° से १२° तक युवा, १२° से ६° तक वृद्ध तथा ६° से नीचे मृत अवस्था में होता है। 

इस वर्गीकरण को नीचे दिये गए चक्र में दर्शाया गया है :-


बाल्यावस्था में ग्रह का फल कम, कुमारावस्था में आधा, युवावस्था में पूर्ण, वृद्धावस्था में कम तथा मृतावस्था में नगण्य रहता है। 

२. चैतन्यता के आधार पर अवस्था 

क)
 विषम राशि में ग्रह १०° तक जागृत, १०° से २०° तक स्वप्न तथा २०° से ३०° तक सुषुप्तावस्था में रहते हैं।

ख)  सम राशि में ग्रह १०° तक सुषुप्त, १०° से २०° तक स्वप्न तथा २०° से ३०° तक जागृत अवस्था में रहता है।


ग्रह की जागृत अवस्था कार्यसिद्धि करती है, स्वप्नावस्था मध्यम फल देती है तथा सुषुप्तावस्था निष्फल होती है।

३. दीप्ति के अनुसार अवस्था

क)  दीप्त - उच्च राशिस्थ ग्रह दीप्त कहलाता है। जिसका फल कार्यसिद्धि है।

ख ) स्वस्थ - स्वगृही ग्रह स्वस्थ होता है, जिसका फल लक्ष्मी व कीर्ति प्राप्ति है।

ग) मुदित - मित्रक्षेत्री ग्रह मुदित होता है, जो आनन्द देता है।

घ) दीन - नीच राशिस्थ ग्रह दीन होता है, जो कष्टदायक होता है।

ड़ ) सुप्त - शत्रुक्षेत्री ग्रह सुप्त होता है, जिसका फल शत्रु से भय होता है।

च) निपीड़ित - जो ग्रह किसी अन्य ग्रह से अंशो में पराजित हो जाये उसे निपीड़ित कहते हैं, यानि एक ग्रह की गति तीव्र हो तथा वह किसी दूसरे ग्रह से कम अंशों पर उसी राशि में हो, परन्तु गति वाला ग्रह उस ग्रह के बराबर अंशों में आगे आकर बढ़ जाए तो पीछे रहने वाला ग्रह पराजित अथवा निपीड़ित ग्रह कहलाता है, जिसका फल धनहानि है।

छ) हीन - नीच अंशोन्मुखी ग्रह हीन कहलाता है, जिसका फल धनहानि है।

ज) सुवीर्य - उच्च अंशोन्मुखी ग्रह सुवीर्य कहलाता है, जो सम्पत्ति वृद्धि करता है।

झ) मुषित - अस्त होने वाले ग्रह को मुषित कहते हैं, जिसका फल कार्यनाश है।

ञ) अधिवीर्य - शुभ वर्ग में अच्छी कांति वाले ग्रह को अधिवीर्य कहते हैं, जिसका फल कार्यसिद्धि है।

४. क्षेत्र, युति तथा दृष्टि के आधार पर अवस्था 

क) लज्जित - पंचम स्थान में राहु-केतु के साथ अथवा सूर्य, शनि या मंगल के साथ अन्य ग्रह लज्जित होता है।

ख ) गर्वित - उच्च राशि या मूल त्रिकोण का ग्रह गर्वित होता है।

ग) क्षुधित - शत्रु के घर में, शत्रु से युक्त अथवा दृष्ट अथवा शनि से दृष्ट ग्रह क्षुधित होता है।

घ) तृषित - जल राशि (कर्क, वृश्चिक, मीन) में शत्रु से दृष्ट, परन्तु शुभ ग्रह से दृष्ट न हो तो ग्रह तृषित कहलाता है।

ड़ ) मुदित - मित्र के घर में, मित्र से युक्त, अथवा दृष्ट अथवा गुरु से युक्त ग्रह मुदित कहलाता है।

च) क्षोभित - सूर्य से युक्त, पाप या शत्रु से दृष्ट ग्रह क्षोभित कहलाता है।

फल -

क) जिस भाव में क्षुधित या क्षोभित ग्रह हों उस भाव की हानि करते हैं।

ख) गर्वित या मुदित ग्रह भाव की वृद्धि करते हैं।

ग) यदि कर्म स्थान में क्षोभित, क्षुधित, तृषित अथवा लज्जित ग्रह हों तो जातक दरिद्र तथा दुःखी होता है।

घ) पंचम स्थान में लज्जित ग्रह संतान नष्ट करता है।

ड़) सप्तम स्थान में क्षोभित, क्षुधित अथवा तृषित ग्रह पत्नी का नाश करता है।

कुल मिला कर गर्वित व मुदित ग्रह एक प्रकार से सुख देते हैं, जबकि लज्जित, क्षुधित, तृषित एवं क्षोभित ग्रह कष्ट देने वाले होते हैं। 

५. सूर्य से दूरी के अनुसार अवस्था 

क) अस्तंगत - सूर्य से युक्त ग्रह (राहु केतु को छोड़कर) अस्त कहलाते हैं। चंद्रमा सूर्य से १२°, मंगल १०°, वक्री बुध १२°, मार्गी बुध १४°, गुरु ११°,  वक्री शुक्र ८°, मार्गी शुक्र १०° तथा शनि १५° की दूरी तक सूर्य की प्रखर किरणों के कारण अस्तंगत होते हैं। ऐसे ग्रहों को मुषित कहते हैं।

ख ) उदयी - सूर्य से उपरोक्त अंशों से अधिक दूर हो जाने पर ग्रह उदय हो जाते हैं।

पूर्वोदयी -  जो ग्रह सूर्य से धीमा हो तथा सूर्य से अंशों में कम हो उसका उदय पूर्व में होता है।

पश्चिमोदयी - जो ग्रह सूर्य की अपेक्षा तीव्र हों तथा सूर्य से अधिक अंशों पर हो, उसका उदय पश्चिम से होता है।

पूर्वास्त - जो ग्रह सूर्य की अपेक्षा तीव्र हों और सूर्य से कम अंशों में हों, उसका अस्त पूर्व में होता है।

पश्चिमास्त - जो ग्रह सूर्य की अपेक्षा धीमा हो और सूर्य से अधिक अंशों में हों, उस ग्रह का अस्त पश्चिम में होता है।

६. गति के अनुसार अवस्था - 

क) सूर्य तथा चंद्रमा सदैव मार्गी रहते हैं। मेष से वृषभ, मिथुन आदि के क्रम में चलने वाले।

ख) राहु और केतु सदैव वक्री रहते हैं। मिथुन से वृषभ आदि के क्रम में चलने वाले।

ग) शेष ग्रह मंगल, बुध, गुरु व शनि सामान्यतः मार्गी होते हैं पर बीच-बीच में वक्री भी हो जाते हैं।

घ) इन ग्रहों की गति  मार्गी से वक्री तथा मार्गी से वक्री होते समय अति मंद हो जाती है।

ड़) यह ग्रह वक्री होने के कुछ दिन पहले व कुछ दिन बाद तक स्थिर दिखाई पड़ते हैं।

इनकी वक्री व स्थिर होने की अवधि निम्नानुसार है:-


वास्तव में कोई ग्रह वक्री या स्थिर नहीं होता  है। पृथ्वी तथा उस ग्रह की पारस्परिक गतियां तथा सूर्य के संदर्भ में उस ग्रह की सापेक्ष स्थिति के सम्मिलित प्रभाव में ऐसा लगता है मानो कोई ग्रह ठहर गया हो या उल्टा चलने लग गया हो।

७, सूर्य से भावों की दूरी के अनुसार अवस्था - 

क ) सूर्य से दूसरे स्थान पर ग्रहों की गति तीव्र हो जाती है।

ख ) सूर्य से तीसरे स्थान पर सम तथा चौथे स्थान पर गति मंद हो जाती है।

ग)  सूर्य से पांचवे व छठे स्थान पर ग्रह वक्री हो जाता है।

घ)  सूर्य से सातवें व आठवें स्थान पर ग्रह अतिवक्री हो जाता है।

ड़ ) सूर्य से नवें व दसवें स्थान पर ग्रह मार्गी हो जाता है।

च)  सूर्य से ग्यारहवें व बारहवें स्थान पर ग्रह पुनः तीव्र हो जाता है।

 क्रूर ग्रह वक्री  होने पर अधिक क्रूर फल देते हैं, परन्तु सौम्य ग्रह वक्री होने पर अति शुभ फल देते हैं। 

Tuesday, August 9, 2016

Triple Transit Triggering Influence

The significant events are triggered by the interplay of the relationship between transit planets and natal planets/Most Effective Points. The result generated depend upon the significations ruled by the planets involved, the significations ruled by their mooltrikona houses, the significations ruled by their houses of placement, either natally or in transit, and/or the significations ruled by the natal house(s) whose Most Effective Points are under transit impact. This is called the Triple Transit Triggering Influence (TTT) as it is true for the three possible combinations of transit influence i.e. transit over natal, transit over transit, and natal over transit. In other words:
  1. Whenever any weak natal planet/Most Effective Point is transited by Functional Malefics, it triggers a significant undesirable incident concerning the weak natal planet or that weak house, whichever is the case. This is more so when the weak natal planet or the lord/significator of the weak house is weak in transit too. 
  2. Whenever any strong natal planet/Most Effective Point is transited by Functional Malefics, it triggers a mild unfavourable incident concerning that planet or house whichever is the case. 
  3. Whenever any weak natal Functional Benefic/Most Effective Point is transited by Functional Benefic(s), it triggers hopes or non-significant happy incidents concerning that planet or house, whichever is the case. 
  4. Whenever any strong natal Functional Benefic/Most Effective Point is transited by Functional Benefic(s), it triggers significant happy incidents concerning that strong natal planet or that strong house, whichever is the case. This is more so when the planet or the lord/significator of the house is strong in transit too. 
  5. Whenever planets in transit form close conjunctions amongst themselves, the happenings occur depending upon their functional nature in connection with the houses with reference to a particular ascendant. 
  6. If the close conjunction or aspect(s) of planets in transit involve two or more Functional Benefic(s) with reference to a particular ascendant, it triggers happy events pertaining to all the planets. 
  7. If one of the planets involved in close conjunction or aspect in a transit planetary movement is a Functional Malefic, it harms the significations of the other Functional Benefic(s) involved with reference to a particular ascendant. 
  8. If both or all the planets forming close conjunction in transit with reference to a particular ascendant are Functional Malefic(s), it harms the significations of all the planets involved. 
  9. Whenever any weak transit planet forms close conjunction with or become closely aspected by natal Functional Malefic(s), it triggers a significant undesirable incident concerning that weak transit planet. This is more so when the planet is weak in rasi too. 
  10. Whenever any strong transit planet forms close conjunction with or become closely aspected by natal Functional Malefic(s), it triggers a mild unfavourable incident concerning that strong transit planet. 
  11. Whenever any weak transit Functional Benefic forms close conjunction with or become closely aspected by natal Functional Benefic(s), it triggers hopes or non-significant happy incidents pertaining to that weak transit planet. 
  12. Whenever any strong transit Functional Benefic forms close conjunction with or become closely aspected by natal Functional Benefic(s), it triggers significant happy incidents pertaining to that strong transit planet. This is more so when the planet is strong in rasi too. 
  13. The transit effects are always seen with reference to the natal ascendant. 
  14. In setting the trends, the sub-period lord has maximum say. However, the transit impacts mentioned above supersede the trend results of the sub-period lord. 
  15. The malefic transit impact of slow moving Functional Malefic(s) like Jupiter, Saturn, Rahu and Ketu is more pronounced when, during the course of their close conjunctions/aspects, they move more slowly as compared to their normal speed or become stationary. This is true both for natal and transit influence. 
  16. During the sub-periods of the Functional Benefic(s), the transit impacts of Functional Benefic(s) are stronger while transit impacts of Functional Malefic(s) are mild. If the sub-period lord is strong, then the transit influences of Functional Benefic(s) cause significant happy events. 
  17. During the sub-periods of Functional Malefic(s), the transit impacts of Functional Benefic(s) are mild while the transit impacts of Functional Malefic(s) are more severe. If the transit influences are from strong Functional Benefic(s), then the benefic results may be comparatively better but with some delay. 
  18. The duration of the transit results ceases to exist as soon as the transit close conjunction or aspect separates. The orbit of separation would depend upon the strength of the planets on which the transit influence have been created. 
  19. Whenever a transiting Functional Malefic transits the Most Effective Point of any house, it afflicts that house as well as the aspected house(s). A transit Functional Malefic never afflicts its own mooltrikona  house, except when the functional malefic planet is already afflicted and/or afflicts from a dusthana/malefic house. 
  20. A transit of Functional Malefic will always afflict its natal position by conjunction or aspect, except when natally placed in its own mooltrikona house. 
  21. A natal Functional Malefic will always afflict its transit position by aspect even when transiting its own mooltrikona house. 
  22. A natal Functional Malefic will always afflict its transit position by conjunction, except when placed in its own mooltrikona house.
This extract has been taken from System Approach for Interpreting Horoscopes written by Sh. V.K. Choudhry and Sh. K. Rajesh Chaudhary.

Strong and Weak Planets

Strong Planets

A strong natal planet protects and promotes its general significations and the significations of its mooltrikona house. Any planet is considered strong when its longitude is within 5 to 25 degrees and it is not in the state of weakness. 

It can increase its strength if:
  • it occupies own or good navamasa and other divisions. 
  • it is under the close influence of functional benefic planets. 
  • it occupies its exaltation, mooltrikona sign. 
  • it is placed in the Sun-like houses, that is the second, third and ninth houses.
Any planet has capacity to bless the native with its results if its natal strength is at least 60% and it is unafflicted. In such a situation the results may come with some delay and of slightly lower order. With the help of the strengthening measures the strength of the planets, where it is less than 60% can be brought to the level of 60% so that it blesses the native with the significations ruled by it.  

Weak Planets

A weak natal planet is not capable of fully protecting/promoting its general significations and the significations of its mooltrikona house during the course of its sub-periods and during the triple transit functional malefic influences. A planet become weak when:
  • The most effective point of its mooltrikona sign is afflicted by a functional malefic planet within an orb of one degree. 
  • The most effective point of its house of placement is afflicted by a functional malefic planet, within an orb of one degree for mooltrikona signs of within an orb of five degrees for non-mooltrikona signs. 
  • It is conjunct or aspected by any functional malefic planet within an orb of one degree. 
  • It is combust due to its nearness to the Sun.
  • It occupies  malefic houses from the ascendant, except it it is in own mooltrikona sign. 
  • It occupies its sign of debilitation. 
  • It is in infancy or old-age.
  • It occupies its debilitated sign in navamsa. 
  • It occupies the mooltrikona sign of a weak planet. However, its strength would be equal to the strength of its dispositor. 
In case of special or multiple afflictions, the otherwise "strong" planet is considered afflicted (and weak) even when the orb of affliction is of two degrees. 

The affliction is special or multiple i.e. when it comes from:

a conjunction with / aspect from the most malefic planet, 
an aspect from a functional malefic planet placed in a dusthana/malefic house, 
a conjunction with Rahu or Ketu (Rahu-Ketu axis), 
an aspect of a functional malefic planet afflicted by other(s) functional malefic planet,
more than one functional malefic planet at the same time.

Fairly Strong Planet

A Planet which has at least 70% power, is unafflicted and well placed, is considered as a fairly strong planet. 

Mild Affliction 

An affliction to the extent of 25% or less to a strong or fairly strong planet or the most effective point of a non-mooltrikona sign house is considered as a mild affliction. 

Quantitative Strength Analysis

The quantitative strength analysis for the planets can be obtained with the help of the following insights:
  • A planet will lose strength to the extent of 75% if its mooltrikona sign house is afflicted. 
  • A weak planet placed in an afflicted house will lose strength to the extent of 75%. 
  • An otherwise strong planet placed in a non mooltrikona sign afflicted house will lose strength to the extent of 50%. Such a planet may give good results in the first place and will cause setbacks later. 
  • A closely afflicted weak planet will lose strength to the extent of 75%. 
  • A closely afflicted otherwise strong planet will lose strength to the extent of 50%. Such a planet will give good results in the first place and will cause setbacks later. 
  • A planet becoming weak due to close combustion will lose strength to the extent of 75% if the Sun is a functional malefic planet. When the Sun is a functional benefic and it causes combustion to another planet, the planet will become 50% weak for the purpose of transit affliction. A combust planet in its sign of debilitation and placed in a malefic house will have only 10% power. 
  • When planets are placed in the malefic house, they generally lose strength by 50% besides suffering through the significations of the malefic house. The placement in the sixth house can involve the person in disputes, debts and can cause serious obstructions for the significations ruled by the planet. The placement in the twelfth house can cause expenses and losses for the significations of the planet.
  • When planets are placed in their signs of debilitation, they lose strength by 50%. When planets are placed in their signs of debilitation in birth chart and navamsa, they lose strength by 75%. 
  • If in the birth chart the planet is badly placed and at the same time debilitated in navamsa it would lose strength to the extent of 60%. 
  • A badly placed planet in its sign of debilitation will lose its power by 75%.
  • A planet debilitated in navamsa would lose power by 25%.
When the lord of the Sixth house is in the ascendant the person gets involved in controversies. Discussing such a person also breed controversies.

Conjunction and Aspect

Conjunction

Conjunction is the apparent coincidence or proximity of two or more celestial objects as viewed from the earth. The conjunction can be exact or close. If the difference in the longitudes happens to be less than one degree, the resulting conjunction is known as an exact conjunction. If the difference in longitudes is within five degrees, the same is known as a close conjunction. 

Aspects

The aspects are partial and full. In the Vedic System of Astrology, we are concerned with only full aspects. Each planet is believed to aspect fully the seventh house, reckoned/counted from the placement of the former.  In addition to this i.e. the seventh aspect, planets posited outside the orbit of the earth (Mars, Jupiter and Saturn) as well as Rahu and Ketu have additional special full aspects as under:-
  • Saturn aspects third and tenth houses from its location.
  • Mars aspects fourth and eight houses from its location. 
  • Jupiter, Rahu and Ketu aspect fifth and ninth houses from their location.
Planets influence other houses/planets aspected by them favourably or unfavourably, depending upon their functional nature in the horoscope. The principle of exact or close aspect is identical to exact or close conjunction i.e. when a planet casts its aspect on another planet(s) or on the most effective point of house(s) within an orb of one degree, the aspect is known as an exact aspect. If the difference in planetary longitudes is within five degrees, then the aspect is known as close aspect. 


The natal close or exact aspects/conjunctions give long term impact. The transit close aspect/conjunctions give short term impact during the course of transit influence. 

Wide Conjunctions or Aspects

The conjunctions or aspects with more than five degrees of longitudinal difference are wide conjunctions or aspects. These do not have permanent impact in life except the short lived transit influences on the planets involved in wide conjunction or aspects. The wide aspects give their results in later part of life, say around 60 years or after

The aspect of a functional benefic planet  will be effective corresponding to the strength of the planet(s) /house(s) involved. If the aspecting functional benefic planet is weak due to any reason including debilitation its effectiveness will be weak and limited, but its close aspect will always act as a helping force. The close aspect of a functional malefic planet, except on the most effective point of its own mooltrikona houses, will always act as a damaging force. 

Afflicted Planets or Houses

The afflictions to the planets or houses are caused by the close conjunction or aspect of the functional malefic planets in a nativity. Whenever a planet or a mooltrikona house is already weak for any other reason and is under the close influence of any functional malefic, it is treated as an afflicted planet / house. But when the planet or the mooltrikona house is not weak for other reasons, it can be considered afflicted either under the exact influence of a functional malefic for normal afflictions or under the orb of influence of two degrees for special / multiple afflictions, becoming a weak planet/house for that reason. So whenever, any planet or mooltrikona house is afflicted, it becomes weak not being capable of fully protecting / promoting its significations. The significations of the houses having mooltrikona sign of an afflicted planet are harmed more when such planets are already weak for other reasons. 

Whenever a non-mooltrikona house is under the close influence of any functional malefic, it is treated as an afflicted house. If not placed in its own mooltrikona sign, any planet become afflicted just by mere placement in any of the dusthanas/malefic houses. 

The Most Effective Point of a House

Besides the natal position of the planets, there is the most effective point (MEP) of each house known by the degree rising in the ascendant. The close impact of the planets in the case of houses is gauged through their closeness to the natal positions. Suppose an ascendant of 16 degrees rises. It means the most effective point of each house would be 16 degrees. In case the lord of a mooltrikona house is weak or in case of non-mooltrikona houses, a functional malefic planet having a longitude between 11 to 21 degrees will afflict these houses either by placement or by aspect. In case the lord of a mooltrikona house is "otherwise" strong, that house will only become afflicted under the single influence of a functional malefic planet having a longitude between 15 to 17 degrees, or under the multiple/special influence of functional malefic planet(s) having longitudes between 14 to 18 degrees. That "otherwise" strong lord will become weak for this reason. 

The influence of any functional malefic planet over its own mooltrikona house will never be malefic.  

Wednesday, August 3, 2016

शनि, राहु और केतु - परिचय


शनि -

शनि का व्यास १,२०,००० किलोमीटर, परिभ्रमण काल १० घंटे ३८ मिनट तथा परिक्रमण काल २९. ४६ वर्ष है। शनि के चारों ओर ७ प्रकाशमान छल्ले हैं।  शनि ग्रह से विचित्र संगीत की भिनभिनाहट की ध्वनि की खोज की गयी है। इसके १७ उपग्रह हैं। शनि एक राशि पर ढ़ाई (२½) वर्ष रहता है।  शनि काला, तमोगुणी, वायु तत्त्व, स्त्री नपुंसक पाप ग्रह है। यह पश्चिम दिशा, संकर जातियों तथा शिशिर ऋतु का स्वामी है। यह  एक ठंडा व शुष्क ग्रह है। शनि अंधकार, दुर्भाग्य, हानि तथा संकट का प्रतीक है, परन्तु इसके बलवान होने पर यह विपत्तियां कम हो जाती हैं।  शनि वायु का अधिपति तथा विपत्ति का अधिष्ठाता है। प्राचीन काल में Satan (शैतान) या Satar (शातिर) के नाम पर इसका नाम Saturn (शनि) पड़ा है। कान, दांत, अस्थियों, वायु रोग व स्नायु से सम्बन्धित रोगों विचार शनि से किया जाता है। अंग्रेज़ी शिक्षा, आयु, जीवन, मृत्यु, शारीरिक बल, उदारता, विपत्ति, प्रभुता, ऐश्वर्य, मोक्ष, जमीन-जायदाद, खानों तथा छठे, आठवें, दसवें व बारहवें भाव का कारक शनि है। बुध और शुक्र शनि के मित्र, गुरु सम, तथा सूर्य, चंद्र और मंगल शत्रु हैं।  शनि तुला राशि में 1°  से 20° तक उच्च, परन्तु  20° पर परमोच्च, मेष राशि में 1° से 20° तक नीच, परन्तु 20° पर परमनीच, कुम्भ राशि में 1° से 20° तक मूलत्रिकोण में व कुम्भ में ही 20° से 30° तक स्वगृही है। यह मकर व कुम्भ राशियों का स्वामी है। इसकी पूर्ण दृष्टि तीसरी, सातवीं तथा दसवीं हैं। 

राहु (Dragon's Head or Ascending Node of the Moon)

चंद्रमा की कक्षा पृथ्वी की कक्षा के साथ 5° का कोण बनाती हुई पृथ्वी की कक्षा को दो विपरीत स्थानों पर काटती है। इन दोनों कटान बिंदुओं को ज्योतिष में छाया ग्रह माना गया है। जिस कटान बिंदु से चंद्रमा पृथ्वी के कक्षा तल से ऊपर आता है, वह राहु (Dragon's Head or Ascending Node of the Moon) कहलाता है। जिस कटान बिंदु से चंद्रमा पृथ्वी के कक्षा ताल से नीचे उतरता है वह केतु (Dragon's Tail or Descending Node of the Moon) कहलाता है। यह दोनों बिंदु एक-दूसरे से 180° दूर है तथा विपरीत दिशा में सरकते हुए दिखाई देते हैं।  यह १८ वर्ष में पुनः उसी स्थान पर आ जाते हैं। पृथ्वी, चंद्रमा व सूर्य के इन बिंदुओं को सीध में आने तथा 5° के कोण का अंतर कम हो जाने पर ग्रहण होते हैं। इसीलिए कहा जाता है राहु चंद्रमा को ग्रस्ता है। राहु तमोगुणी, कृष्णवर्णी तथा पाप ग्रह है। यह कुंडली में जिस स्थान पर बैठता है, उसकी प्रगति को रोकता है। राहु मद का अधिष्ठाता है। राहु लगभग १८ माह तक एक राशि पर रहता है। यह सदैव वक्री रहता है तथा प्रत्येक राशि में इसके अंश कम होते जाते हैं। मिथुन राशि में उच्च 20° पर परमोच्च, धनु राशि में नीच 20° पर परमनीच तथा कुम्भ के 6° तक मूल त्रिकोण में होता है। शुक्र तथा शनि राहु के मित्र तथा सूर्य, चंद्रमा व मंगल शत्रु हैं। इसकी पूर्ण दृष्टि पांचवी, सातवीं, नवीं व बारहवीं है। 

केतु (Dragon's Tail or Descending Node of the Moon) - 

केतु सदैव राहु से 180° दूर रहता है। इसके अंश, कला और विकला समान रहते हैं। केतु धब्बेदार काले रंग का तमोगुणी पाप ग्रह है। हाथ, पैर, पेट व चर्म रोगों का विचार केतु से किया जाता है। केतु धनु राशि में उच्च 20° पर परमोच्च, मिथुन राशि में नीच 20° पर परम नीच तथा सिंह राशि में 6° तक मूल त्रिकोण में होता है। यह भी राहु की तरह वक्री ग्रह है। सिरविहीन होने के कारण यह दृष्टिविहीन भी है। कुछ विद्वान राहु की दृष्टि के समान ही केतु की दृष्टि भी मानते हैं।