Thursday, April 2, 2015

ज्वालामुखी योग

ज्वालामुखी योग का फल अशुभ माना गया है। इस योग में आरंभ किया हुआ कार्य पूर्णतया सिद्ध नहीं हो पाता अथवा बार-बार विघ्न बाधाएं आती है। इस योग में शुभ कार्य आरम्भ नहीं करने चाहिए। दुष्ट शत्रुओं पर प्रयोग करने के लिए यह मुहूर्त्त अच्छा समझा जाता है। 

जब प्रतिपदा को मूल नक्षत्र, पंचमी को भरणी, अष्टमी को कृत्तिका, नवमी को रोहिणी अथवा दशमी को आश्लेषा नक्षत्र आता है, तो ज्वालामुखी योग बनता है। इस प्रकार ५ नक्षत्रों एवं ५ तिथियों के संयोग से ज्वालामुखी योग बनता है। इस योग के अशुभ फल को प्रकट करने के लिए निम्नलिखित लोकोक्ति प्रचलित है :-

जन्मे तो जीवे नहीं, बसे तो उजड़े गाँव,
नारी पहने चूड़ियाँ, पुरुष विहिनी होय। 
बोवे तो काटे नहीं, कुएँ उपजे न नीर॥ 

यद्यपि यह लोकोक्ति अतिश्योक्तिपूर्ण हो सकती है, परन्तु इसके अशुभ प्रभाव के संबंध का उल्लेख कई ग्रंथों में मिलता है। ज्वालामुखी योगानुसार यदि बालक इस योग में पैदा हो तो उसे अरिष्ट योग होता है। यदि इस योग में विवाह किया जाए तो वैधव्य का भय होता है। यदि बीजवपन किया जाये तो फसल अच्छी नहीं होती तथा जल आदि हेतु कुआँ खोदा जाये तो कुआँ शीघ्र सुख जाये - यदि कोई रोगग्रस्त हो तो शीघ्र ठीक न हो - इत्यादि अशुभ फल घटित होते हैं। 

नीचे संवत २०७२ के ज्वालामुखी योग उनकी तारीख़ तथा उनके प्रारंभ और समाप्ति काल के साथ पाठकों के हितार्थ दिए जा रहे हैं :-

३ जून  - प्रारंभ  -  १९ घं  ५० मि    - समाप्ति काल - २१ घं  ०२ मि। 

३ सितम्बर  - प्रारंभ  -  ०२ घं  ४९ मि    - समाप्ति काल - ०७ घं  ३६ मि

७ अक्टूबर  - प्रारंभ  -  १० घं  ५८ मि    -  समाप्ति काल - १७ घं  १० मि

११ दिसंबर  - प्रारंभ  -  २५ घं  २१ मि    - समाप्ति काल - १६ घं  ०४ मि

१५ फरवरी  - प्रारंभ  -  ०४ घं  ११ मि    - समाप्ति काल - २४ घं  २७ मि

१६ फरवरी  - प्रारंभ  -  ०३ घं  ०९ मि    - समाप्ति काल - २३ घं  ०५ मि 

१२ मार्च - प्रारंभ  -  १८ घं  ०३ मि    - समाप्ति काल - ११ घं  ०७ मि। 
 

No comments:

Post a Comment