Wednesday, February 26, 2014

राशियां और उनका अंग-विभाग

आचार्य वराहमिहिर ने द्वादश राशियों को कालपुरुष का अंग मान कर शरीर में इनकी जो स्थिति बतलाई है, वह इस प्रकार है - मेष की सिर में, वृषभ की मुख में, मिथुन की स्तनों के मध्य में, कर्क की हृदय में, सिंह की उदर में, कन्या की कमर में, तुला की पेड़ू में, वृश्चिक की लिंग में, धनु की जंघा में, मकर की दोनों घुटनों में, कुम्भ की दोनों पिण्डलियों में तथा मीन की दोनों पैरों में। 

  • मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु और कुम्भ पुरुष राशियां हैं।  
  • वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन स्त्री राशियां हैं। 
  • मेष, कर्क, तुला और मकर 'चर' संज्ञक राशियां हैं। 
  • वृष, सिंह, वृश्चिक और कुम्भ 'स्थिर' संज्ञक राशियां हैं। 
  • मिथुन, कन्या, धनु और मीन 'द्विस्वभाव' संज्ञक राशियां हैं। 
  • धनु, सिंह और मेष अग्नितत्त्व-प्रधान राशियां हैं। 
  • कर्क, वृश्चिक और मीन जलतत्त्व-प्रधान राशियां हैं। 
  • वृष, कन्या और मकर पृथ्वीतत्त्व-प्रधान राशियां हैं। 
  • मिथुन, तुला और कुम्भ वायुतत्त्व-प्रधान राशियां हैं। 

राशियों की दिशा की जानकारी होना भी आवश्यक है, क्योंकि प्रत्येक कार्य में इनका उपयोग होता है। विवाह, व्यवसाय, धनलाभ, आदि बातों कि जानकारी जब किसी ज्योतिषी से पूछी जाती है तो वह कारक ग्रह या राशि की दिशा देख कर ही उत्तर दे सकता है। यदि किसी व्यक्ति का प्रश्न हो कि मुझे अमुक नगर में व्यवसाय करने पर लाभ होगा या हानि, तो इसका उत्तर भी राशि का स्वरुप जानकार ही दिया जा सकेगा। लाभ-हानि जैसी बातें भी राशियों और ग्रहों कि दिशा पर निर्भर करती है। 

मेष

कालपुरुष के अंग में इस राशि का अधिकार सिर पर होता है। यह राशि पूर्व दिशा की स्वामिनी और लाल-पीले वर्ण वाली तथा पुरुष जाति, चार संज्ञक, अग्नितत्त्व, पित्त प्रकृति, भेड़ के समान आकृति वाली, निवास स्थान धातु, रत्न और भूमि, क्रूर स्वभावी, रात्रिबली, क्षत्रिय वर्ण और अल्प संतति वाली होती है। यह साहस, वीरता तथा अहंकार आदि की कारक है। लग्न में यह राशि होने पर जन्म लेने वाले जातक प्रायः गंभीर रहते है। हंसना तो जैसे जानते ही नहीं। स्मित हास्य की रेखा मात्र इनके चेहरे पर दिखाई पड़ती है। ऐसे जातक हँसने और बोलने में कंजूसी करते है तथा उनके बोलने का ढंग भी मधुर और प्रभावशाली नहीं होता, क्योकि दांत या तो बाहर को निकले रहते हैं या एक के ऊपर एक चढ़े रहते है। इनकी चाल भी लुभावनी नहीं होती, लेकिन चलने दौड़ने में ये तेज होते हैं।

वृषभ 

इस राशि की आकृति बैल के समान है तथा कालपुरुष के अंग में मुख से कंठ तक इस राशि का अधिकार होता है। यह राशि स्त्री जाति, स्थिर संज्ञक, शीतल स्वभाव वाली, भूमितत्त्व, दक्षिण दिशा की  स्वामिनी, वात प्रकृति  तथा रात्रिबली है। इसका निवासस्थान वन, पर्वत-शिखर और  गौशाला तथा वर्ण श्वेत है। यह वैश्यवर्णी और शिथिल शरीर वाली, मध्यम संतान सुख प्रदान करने वाली शुभ राशि है। इस राशि में जन्म लेने वाले जातक स्वार्थी स्वभाव  के, अपने हानि-लाभ का पूरा-पूरा ध्यान रखने वाले और विद्या-व्यसनी होते हैं। इससे मुख, कंठ और गालों का विचार किया जाता है।

मिथुन 

कालपुरुष के अंग में कंधे से लेकर हाथों तक इस राशि का अधिकार होता है। इसकी आकृति स्त्री-पुरुष का जोड़ा है। स्त्री हाथ में वीणा लिए हुए और पुरुष गदा लिए हुए है। यह वायुतत्त्व, पश्चिम दिशा कि स्वामिनी, हरा-रंग (तोते जैसा), पुरुष जाती, द्विस्वभाव संज्ञक, शूद्रवर्णी, उष्ण, दिवबली, मध्यम सन्तति और शिथिल देह वाली राशि है। विद्या-व्यसनी व शिल्पी होना इसका प्राकृतिक स्वाभाव है । जातक के कंधे, बहु और हाथों का विचार इसी राशि में किया जाता है। नृत्य-गायन का स्थान, स्त्री, जुआ और विहार करने कि जगह इसका निवासस्थान मन गया है।

कर्क 

यह केकड़े के समान आकृति वाली जलचर राशि है। कालपुरुष के शरीर में इसका अधिकार वक्ष:स्थल पर माना जाता है। यह स्त्री जाति, चर संज्ञक, उत्तर दिशा कि स्वामिनी, कफ प्रकृति, समोदयी, रात्रिबली, मिश्रित रंग, (लाल-सफ़ेद) एवं बहुसन्तति वाली राशि है। खेत, बावड़ी, तट, देवस्थान इस राशि के निवासस्थान हैं। लज्जा, भौतिक सुखों को प्राप्त करने में लगे रहना, स्थिर गति और ज़माने की हवा देखकर कार्य करना इस राशि का प्राकृतिक स्वभाव है।  इससे उदर, सीना और गुर्दों का विचार किया जाता है।

सिंह 

सिंह के समान आकृति वाली इस राशि का कालपुरुष के अंग में हृदय पर अधिकार होता है। यह अग्नितत्त्व, स्थिर संज्ञक, पुरुष जाति, पित्त प्रकृति, पीले रंग वाली, क्षत्रिय वर्णी, उष्ण स्वभाव, कम संतान वाली तथा पूर्व दिशा की स्वामिनी है। मेष राशि से इसका प्राकृतिक स्वभाव प्रायः मिलता जुलता है। इतने पर भी उदारता और स्वतंत्र के प्रति इसका अधिक रुझान होता है। हृदय का विचार इसी राशि से किया जाता है।

कन्या 

हाथ में दीपक लेकर नौका पर बैठी कन्या के सदृश इसकी आकृति है। कालपुरुष के शरीर में इसका अधिकार उदर पर माना जाता है।  हरी-भरी घास वाली भूमि, स्त्री, रति और चित्रशाला में इसका निवासस्थान होता है। यह स्त्री जाति, द्विस्वभाव संज्ञक, पिंगल-वर्णी, रात्रिबली, दक्षिण दिशा कि स्वामिनी, वायु और शीत प्रकृति, पृथ्वीतत्त्व, अल्प संतान और शिथिल शरीर वाली राशि है। स्वाभिमान इस राशि कि पहचान तथा उत्तरोतर उन्नति करते रहना इसका स्वभाव है। इस राशि से उदर का विचार किया जाता है।

तुला 

इसकी आकृति हाथ में तराजू लिए पुरुष जैसी है। कालपुरुष के शरीर में इसका अधिकार नाभि से बस्ति पर्यन्त होता है। हाट-बाज़ार तथा व्यापारियों कि जगहों में इसका निवासस्थान होता है। यह पुरुष जाती, चार संज्ञक, पश्चिम दिशा कि स्वामिनी, वायुतत्त्व, श्यामवर्णी, शीर्षोदयी, दिन-बली, क्रूर एवं शुद्र संज्ञक राशि है। विचारशीलता, राजनितिक चातुर्य, शास्त्रों के प्रति जिज्ञासा तथा अपना कार्य सिद्ध करने में पटु इसका प्राकृतिक स्वभाव है। नाभि और उस से नीचे के अंगों का विचार इसी राशि से किया जाता है।

वृश्चिक

इसकी आकृति बिच्छू के समान मानी गई  है तथा कालपुरुष के शरीर में इसका अधिकार गुह्य स्थानों (लिंग-गुदा) आदि पर माना जाता है। यह स्त्री जाति, शुभवर्णी, स्थिर संज्ञक, जलतत्त्व, रात्रिबली, उत्तर दिशा की स्वामिनी, ब्राह्मण वर्ण, कफ प्रकृति और बहुसंतान वाली राशि है। अपने निश्चय पर दृढ़ रहना, टूट जाना लेकिन झुकना नहीं, आगे से मृदु लेकिन पीछे से तीक्ष्ण, स्पष्ट कथन-भले ही किसी को बुरा लगे या अच्छा-इसके प्राकृतिक गुण  हैं। शरीर की लम्बाई और जननेन्द्रिय का विचार इसी राशि से किया जाता है।

धनु 

कमर से ऊपर का भाग धनुष लिए मनुष्य का तथा कमर से नीचे का भाग घोड़े के समान, ऐसी इस राशि की आकृति है। कालपुरुष के शरीर में इसका अधिकार दोनों जांघो पर है। यह पुरुष जाति, द्विस्वभाव, क्रूर स्वभाव वाली, कंचनवर्णी, पित्त-प्रकृति, दिवबली, क्षत्रिय वर्ण, अग्नितत्त्व, पूर्व दिशा कि स्वामिनी और अल्प संतान वाली राशि  है। आस्तिकता, परोपकारिता, दयालुता और मर्यादा कि इच्छा के साथ-साथ अधिकारप्रिय होना इसका स्वाभाविक गुण है। इससे जांघो का विचार किया जाता है।

मकर 

यह मगर जैसी आकृति वाली राशि है। कालपुरुष के शरीर में इसका दोनों घुटनों पर अधिकार माना जाता है। यह स्त्री जाति, चर स्वभाव, वात-प्रकृति, पृथ्वीतत्त्व, पिंगलवर्णी, रात्रिबली, वैश्य वर्ण, दक्षिण दिशा कि स्वामिनी और शिथिल शरीर राशि है। यह शनि कि स्वराशि भी है। शनि को भृत्य मन गया है तथा भृत्य की भांति ही कर्त्तव्यपरायणता और उच्चाभिलाषी होना इस राशि का स्वाभाविक गुण है। घुटनों का विचार इसी राशि से किया जाता है।

कुम्भ 

कालपुरुष के शरीर में दोनों पिंडलियों पर इस राशि का अधिकार माना जाता है। इसकी आकृति कन्धे पर जल का घड़ा लिये पुरुष है। पुरुष जाति, स्थिर संज्ञक, विचित्र वर्ण, वायुतत्त्व, शीर्षोदयी, पश्चिम दिशा की स्वामिनी, दिवाबली, शीतलता, अन्वेषक विचारधारा और शिल्प-चातुर्य इसके प्राकृतिक गुण है। आँतों का विचार इसी राशि से किया जाता है।

मीन 

कालपुरुष के शरीर में इस राशि का अधिकार दोनों पैरों पर माना जाता है। यह परस्पर मुख-पुच्छ-मिश्रित जल में दो मछलियों की जैसी आकृति वाली, उत्तर दिशा की स्वामिनी, स्त्री-जाति , कफ-प्रकृति, द्विस्वभाव संज्ञक, जलतत्त्व, विप्र वर्ण, रात्रिबली और पिंगल रंग कि राशि है। दानशीलता, दयालुता तथा परोपकारिता इसके प्राकृतिक गुण हैं। पैरों का विचार इसी राशि से किया जाता है। 

Sunday, February 9, 2014

शरीर पर तिलों का महत्त्व

शरीर पर तिल भी अपना विशेष महत्त्व रखते हैं। तिल दो तरह के होते हैं। एक तो काले रंग के तथा दूसरे सुर्ख लाल रंग जैसे। काले तिल अपना असर कम करते हैं। लाल रंग के तिल शरीर पर अपना पूरा असर करते हैं।  तिल एक जगह पर जब आता है तो हमेशा उसी जगह पर स्थिर रहता है। मगर आयु के मुताबिक़ तिलों का बढ़ना भी हैरानी वाली बात नहीं है। जैसे एक तिल तो अच्छे फल वाला होता है मगर दूसरी तरफ एक अन्य तिल पैदा हो जाता है जो उसके अच्छे फल को पूरी तरह भोगने नहीं देता। अलग-अलग जगह पर तिलों के निशान का फल इस प्रकार है :-

  1. जिस जातक की छाती पर तिल हो तो व्यक्ति अपनी इच्छा अनुसार काम करने वाला तथा हर काम में कामयाबी हासिल करने वाला होता है। 
  2. जिस जातक के मुख के बायें हिस्से पर तिल दिखाई दे तो जातक सुख भोगने वाला, जमीन जायदाद, सवारी का सुख तथा धार्मिक वृत्ति वाला होता है। ऐसे जातकों की संतान लड़कियां अधिक होती हैं। अगर वही तिल चमकता हो तो केवल एक ही पुत्र जानना चाहिए। 
  3. नाक के नज़दीक अगर किसी जातक के तिल हो तो जातक बहुत सफ़र करने वाला, अपने हरेक काम में सफलता पाने वाला तथा दूसरों पर हुक्म चलाने वाला होता है मगर अपनी आयु का प्रथम भाग कम सुखों की प्राप्ति से व्यतीत करता है। यानि पिछली आयु में सुख भोगने वाला होता है। 
  4. अगर ऐसा ही तिल किसी औरत के नाक के पास काले रंग का हो तो ३५ साल की आयु में पति की तरफ से चिंताग्रस्त होना पड़ता है। 
  5. जिस जातक कि नाभि के नज़दीक कला हल्के से रंग का तिल दिखाई दे तो जातक जितनी देर तक जीवित रहता है अपना जीवन ऐशोआराम के साथ ही व्यतीत करता है तथा हमेशा सुखी रहता है। 
  6. अगर किसी जातक के दायें पाँव पर तिल या मोहका हो तो जातक समझदार तो बहुत होता है मगर उसकी औरत हमेशा क्लेश करने वाली ही होती है। 
  7. अगर किसी जातक के बायें पाँव पर तिल दिखाई दे तो ऐसा जातक खुद अपना नुकसान करने वाला होता है।  
  8. जिस जातक के हाथ पर तिल दिखाई दे तो ऐसे जातकों को संतान का सुख पूर्ण मिलता है। संतान पढ़ी -लिखी तथा मशहूर होती है। 
  9. पाँव की ऐड़ी पर अगर कोई तिल का निशाँ दिखाई दे तो उसका फल अशुभ होता है। ऐसे जातकों को माँग कर खाना पड़ता है। यानि बहुत दुखी और धनहीन होते हैं। 
  10. अगर यही तिल पाँव की  तली पर हो तो जातक सब प्रकार के सुखों को भोगने वाला दौलतमंद और बड़े पद को प्राप्त कर सुखी रहने वाला होता है। ऐसे तिल वाले जातक की औरत को कभी भी धन कि कमी नहीं रहती। शुरू से अंत तक सुख ही सुख भोगता है। 
  11. अगर किसी जातक के पाँव की तर्जनी अंगुली (अंगुठे के साथ वाली) पर तिल दिखाई दे तो ऐसे जातक के जीवन का पूर्वार्द्ध तो बड़े सुख के साथ बीतता  है मगर जब ५० वर्ष की आयु होती है तब तक किसी के नीचे काम करना पड़ता है। यानि रुपया पैसा कम हो जाने पर किसी दूसरे के पास नौकरी करने पर मजबूर हो जाते हैं।  ५१ वें वर्ष में विशेषकर परेशान रहते हैं। 
  12. अगर किसी जातक के पाँव के अँगूठे पर तिल हो तो जातक धार्मिक वृत्ति वाला, अपने गुरुजनो का भक्त तथा ईश्वर पर भरोसा रखने व दान पुण्य करने वाला होता है। 
  13. अगर किसी जातक के कान के नजदीक आगे या पीछे तिल हो तो जातक संतान का सुख पाने वाला तथा धनवान होता है। संतान इसकी पढ़ी लिखी व मशहूर होती है।