Friday, May 31, 2013

मांगलिक दोष के परिहार

'मुहूर्त दीपक',  'मुहूर्त पारिजात' तथा अन्य मानक ग्रंथों में मांगलिक योग या दोष के कुछ आत्म कुंडलीगत तथा कुछ पर कुंडलीगत परिहार बताए गए हैं। यदि प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्ठम व द्वादश भावों में कहीं भी मंगल हो और अन्य ग्रहों की स्थिति, दृष्टि या युति निम्न प्रकार हो तो कुजदोष स्वतः ही प्रभावहीन हो जाता है :-

  • यदि मंगल ग्रह वाले भाव का स्वामी बली हो, उसी भाव में बैठा हो या दृष्टि रखता हो, साथ ही सप्तमेश या शुक्र अशुभ भावों (6/8/12) में न हो। 
  • यदि मंगल शुक्र की राशि में स्थित हो तथा सप्तमेश बलवान होकर केंद्र त्रिकोण में हो। 
  • यदि गुरु या शुक्र बलवान, उच्च के होकर सप्तम में हो तथा मंगल निर्बल या नीच राशिगत हो। 
  • मेष या वृश्चिक का मंगल चतुर्थ में, कर्क या मकर का मंगल सप्तम में, मीन का मंगल अष्टम में तथा मेष या कर्क का मंगल द्वादश भाव में हो। 
  • यदि मंगल स्वराशि, मूल त्रिकोण राशि या अपनी उच्च राशि में स्थित हो। 
  • यदि वर-कन्या दोनों में से किसी की भी कुंडली में मंगल दोष हो तथा परकुंडली में उन्हीं पाँच में से किसी भाव में कोई पाप ग्रह स्थित हो। 

इनके अतिरिक्त भी कई योग ऐसे होते हैं, जो कुजदोष का परिहार करते हैं। अतः मंगल के नाम पर मांगलिक अवसरों को नहीं खोना चाहिए।

सौभाग्य की सूचिका भी है मंगली कन्या? 

कन्या की जन्मकुंडली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम तथा द्वादशभाव में मंगल होने के बाद भी प्रथम (लग्न, त्रिकोण), चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम तथा दशमभाव में बलवान गुरु की स्थिति कन्या को मंगली होते हुए भी सौभाग्यशालिनी व सुयोग्यभार्या तथा गुणवान व संतानवान बनाती है।

क्या कहता है आप का मंगल?

यह मांगलिक दोष कैसे बनता हैक्या मंगल ग्रह इतना भयावह है कि उसकी उपस्थिति से जन्म पत्रिका श्रापित हो जाती है जब मंगल ग्रह जन्म कुण्डली के लग्न, चौथे, सातवें, आठवें व बारहवें भाव में स्थित हो तो जातक को मांगलिक कहा जाता है, चाहे वह पुरुष हो या स्त्री। इसी प्रकार कुण्डली में जहाँ चन्द्र स्थित होता है अर्थात चन्द्र कुण्डली से लग्न, चौथे, सातवें, आठवें व बारहवें भाव में जब मंगल स्थित हो तो भी जातक को मांगलिक कहा जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि लग्न कुण्डली के बारह में से पांच भावों में यदि मंगल स्थित होंगे तो जातक  मांगलिक होगा। साथ ही इस लग्न कुण्डली में जहां चन्द्र स्थित है वहां से भी चन्द्र के साथ या उससे चौथे, या उसके सातवें, आठवें या बारहवें में यदि मंगल स्थित हो तो भी जातक मांगलिक कहलाएगा। अब इसे एक उदाहरण से समझते हैं।

कल्पना करते हैं एक कुण्डली का लग्न मेष है और चन्द्रमा तीसरे भाव अर्थात मिथुन में स्थित हैं। इस कुण्डली के 12 भावों में से मात्र 2 भाव (5वां व 11वां) बचे जहां मंगल स्थित हो तो जातक मांगलिक नहीं होगा, बाकी के बचे 10 भावों में से जहां कहीं भी मंगल स्थित होंगे तो जातक मांगलिक कहलाएगा। अब बताइये कि 12 भावों में से किसी एक भाव में तो मंगल उपस्थित होंगे ही और 12 भावों में से लगभग 10 भावों में उनकी उपस्थिति से जातक मांगलिककहलाएगा। इस मांगलिकसे बचने की कितनी कम संभावना है।

ज्योतिष के किसी भी शास्त्रीय ग्रंथ में मांगलिक या मांगलिक-दोष का वर्णन इस रूप में प्राप्त नहीं होता। विवाह हेतु  गुण मिलान इत्यादि के साथ इसका वर्णन कुछ एक ग्रंथों में बहुत सूक्ष्म वर्णित है जिस पर कालान्तर में कुछ शोध ग्रंथों में थोड़ा बहुत विस्तार दिखाई देता है किन्तु मांगलिक का जैसा रूप इस प्रकरण में महत्व प्राप्त कर गया ऐसा तो कहीं भी दृष्टिगोचर नहीं है। यह तो भ्रम का विस्तार ज्ञात होता है न कि ज्योतिष विज्ञान का। 

विवाह प्रकरण में ही मंगल ग्रह व मांगलिक शब्द का उपयोग या महत्व या चर्चा सुनाई देती है, ऐसा क्यों? जहां भी मांगलिक शब्द सुनने को मिलेगा उसका संदर्भ मात्र एवं मात्र विवाह ही होगा। इसका  ज्योतिषीय कारण है किन्तु उस कारण का या मंगल के विवाह-प्रकरण से संबंध का न तो कोई भयावह अर्थ है और न ही कोई अशुभ परिणाम। मंगल या मांगलिक का विवाह से संबंध किस प्रकार स्थापित होता है इसे समझने का प्रयास करते हैं।

लग्न यानि पहला भाव तनु भाव भी कहलाता है अर्थात् शरीर अथवा स्वयं।  इस से सप्तम यानि सातवां भाव भार्या स्थान कहलाता है अर्थात् जीवन संगिनी या फिर जीवन संगी का स्थान। यह दोनों ही भाव विवाह से सम्बंधित हो गए अर्थात् लग्न या तनु भाव एवं सप्तम या भार्या भाव। पहला स्वयं का और दूसरा जीवन साथी का। 

इस के पश्चात् मंगल के विषय में भी कुछ प्रमुख तथ्य जान लेते हैं। पहला तो यह कि ज्योतिष विज्ञानं में जो दो श्रेणियां वर्णित हैं - पुण्य ग्रह और पाप ग्रह, उन में मंगल 'पाप ग्रह' की श्रेणी में आता है। दूसरा तथ्य मंगल के विषय में यह है कि अन्य ग्रहों की भांति सातवीं दृष्टि के अतिरिक्त मंगल की चतुर्थ एवं अष्टम दृष्टि भी है

अब इन तथ्यों को मांगलिक बनाने वाले कारणों के साथ रखते हैं अर्थात् यदि मंगल लग्न, चौथे, सातवें, आठवें व बारहवें स्थान पर हो तो मांगलिक कहलाता है। इस कथन को ऊपर दिए तथ्यों पर कसेंगे तो इन सब का आपस में सम्बन्ध दिखाई देगा

- मंगल एक पाप ग्रह है।
लग्न में बैठकर मंगल अपने से सातवें भाव अर्थात् भार्या स्थान को देखता है।
- चौथे स्थान पर बैठकर मंगल अपनी विशेष चौथी दृष्टि से सप्तम अर्थात् भार्या स्थान को देखता है।
- सप्तम स्थान में स्थित मंगल भार्या भाव पर ही बैठा है।
- अष्टम स्थान में स्थित मंगल अपने से सप्तम अर्थात दूसरे भाव को देखता है जो सप्तम भाव का आयु स्थान   
 है। (सप्तम से अष्टम)।
- द्वादश भाव में स्थित मंगल अपनी विशेष अष्टम दृष्टि से सप्तम भाव को देखता है।

उपरोक्त सभी कारणों से स्पष्ट है कि मंगल जो कि एक पाप ग्रह है वह लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव से सप्तम स्थान (जो कि जीवन साथी का भाव है) को किसी न किसी रूप में स्पष्ट व सीधे तौर पर प्रभावित करता है। इसीलिए इन भावों में मंगल के बैठने पर मंगल का संबंध विवाह से जुड़ता है एवं जातक मांगलिक कहलाता है।

Sunday, May 26, 2013

शकट योग

जैसे कुण्डली मे उपस्थित शुभ योग के परिणामस्वरूप शुभ फल की प्राप्ति होती है उसी प्रकार कुण्डली में अशुभ योग होने पर व्यक्ति को उसका अशुभ परिणाम भी भोगना पड़ता है। 

अशुभ योगों में से एक है "शकट योग" 

इस योग में व्यक्ति को जीवन भर असफलताओं का सामना करना होता है. अगर इस योग को भंग करने वाला कोई ग्रह योग कुंडली में न हो।

शकट पुल्लिंग शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ गाड़ी होता है| गाड़ी पहिये पर चलती है, पहिया जिस प्रकार घूमता है उसी तरह से जिनकी कुंडली में शकट योग बनता है उनके जीवन में उतार चढ़ाव लगा रहता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह योग जिनकी कुंडली में बनता है वो भले ही आमिर घराने में पैदा हुए हो पर उन्हें गरीबी और तकलीफों का सामना करना पड़ता है अगर किसी भी प्रकार से यह योग भंग नहीं होता हो। 

शकट योग ग्रह स्थिति

शकट योग कुंडली में तब बनता है जबकि सभी ग्रह प्रथम और सप्तम भाव में उपस्थित हों। इसका अलावा गुरु और चन्द्र कि स्थिति के अनुसार भी यह योग बनता है। चंद्रमा से गुरु जब षष्टम या अष्टम भाव में होता है और गुरु लग्न केंद्र से बाहर रहता है तब जन्मपत्री में यह अशुभ योग बनता है। इस योग के होने पर व्यक्ति को अपमान, आर्थिक कष्ट, शारीरिक पीड़ा, मानसिक दंश मिलता है। जो व्यक्ति इस योग से पीड़ित होते हैं उनकी योग्यता को सम्मान नहीं मिल पता है। 

शकट योग भंग 

अगर आपकी कुंडली में शकट योग है तो इसके लिए आप को परेशान नहीं होना चाहिए क्योंकि एक पुरानी कहावत है कि प्रकृति अगर आप को बीमार बनाती है तो इसका इलाज़ भी स्वयं ही करती है। इसी तरह कुछ ग्रह स्थिति के कारण आपकी कुंडली में अगर अशुभ शकट योग बन रहा है तो शुभ ग्रह स्थिति आप का बचाव भी करती है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार चन्द्रमा बलवान एवं मजबूत स्थिति में होने पर व्यक्ति शकट योग में आने वाली परेशानियों और मुश्किलों से घबराता नहीं है और अपनी मेहनत और कर्तव्य निष्ठा से मान और सम्मान के साथ जीवन के सुख को प्राप्त करता है। लग्नेश और भाग्येश के लग्न में मौजूद होने पर जीवन में उतार चढ़ाव के बावजूद व्यक्ति मान सम्मान के साथ जीता है। 

जिनकी कुंडली में चंद्रमा पर मंगल की दृष्टि होती है उनका शकट योग भंग हो जाता है। षड्बल में गुरु अगर चंद्रमा से मजबूत स्थिति में होता है अथवा चन्द्रमा उच्च राशि या स्वराशि में हो तो यह अशुभ योग प्रभावहीन हो जाता है। राहू अगर कुंडली में चन्द्रमा के साथ युति बनाता है या फिर गुरु पर राहू की दृष्टि तो शकट योग का अशुभ प्रभाव नहीं भोगना पड़ता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में लग्न स्थान से चंद्रमा या गुरु केंद्र में हो या फिर शुक्र चन्द्र की युति हो उन्हें शकट योग में भी धन लाभ, सफलता एवं उन्नति मिलती है. इसी प्रकार कि समान स्थिति तब भी होती है जबकि चंद्रमा वृषभ, मिथुन, कन्या या तुला राशि में हो और कर्क राशि में बुध शुक्र की युति बन रही हो।