Saturday, April 21, 2012

हर्षल ग्रह विलक्षणता का द्योतक है

शनि के उपरान्त हर्षल की सौर मंडल में स्थिति है जिसका वायुमंडल शनि और बृहस्पति के तुल्य है। यह सूर्य से १ अरब ७८ करोड़ २३ लाख मील दूर है जबकि पृथ्वी से इसकी दूरी १ अरब ६९ करोड़ मील आंकी गयी है, यह ग्रह मंद गति से पूर्व से पश्चिम की और सूर्य की परिक्रमा कर रहा है। सूर्य की परिक्रमा करने में इसे ८४ वर्ष का समय लगता है। स्थूल मान से यह ७ वर्ष मैं एक राशि चक्र पूरा कर लेता है। हर्षल ग्रह की खोज १३ मार्च १७८१ को सर विलियम हर्बल ने की थी अतः अंक ज्योतिष की गणना अनुसार मूलांक ४ को इसका प्रतिनिधि अंक माना गया है। अंक ४ की विषेशतानुसार ही खगोलज्ञो ने एवं ज्योतिषवेत्ताओ ने वर्षों तक शोध एवं निरीक्षण किया जिसमें दैनिक गति एवं वार्षिक गतियों का संकलन करके फलित सिद्धांतों की खोज की जो काफ़ी आश्चर्यजनक निकले। 

आधुनिक ज्योतिषयों ने हर्षल को ज्ञान, विज्ञान से संपन्न, जागृति का द्योतक, सर्वाधिक विलक्षण खोज युक्त, अनूठा एवं अदभुत ग्रह माना है, यह भी अन्य ग्रहों की भांति जनमानस को प्रभावित करता है। इसकी मित्र राशियां मिथुन, तुला एवं कुम्भ है। यह ग्रह बुध, गुरु एवं शनि के साथ शुभ फल देता है। अन्वेषण, पर्वतारोहण, देशाटन कार्यों में ख्याति देता है। हर्षल मैं परम्परावादी विचारधारा से हटकर नया करने की प्रकृति पाई जाती है, सार्वजनिक जीवन के सम्बन्ध में नये नियम बनाने का कार्य हर्षल प्रधान व्यक्ति करते है। 

विश्वप्रसिद्ध भविष्यवक्ता कीरो ने हर्षल अंक वाले व्यक्तियों के बारे में बताया है की ऐसे व्यक्तियों का मूल्यांकन करना कठिन होता है यह लोग जैसे दिखाई देते है ठीक उसके विपरीत दृष्टिकोण रखने वाले होते हैं। तर्क-वितर्क करने और विपक्ष में रहने के कारण अनेक लोग उनके शत्रु बन जाते हैं, ये लोग वकालत के व्यवसाय मैं अच्छे सिद्ध होते हैं। बुध हर्षल योग उच्चकोटि की सफलता दिलाता है जबकि गुरु हर्षल योग उच्चकोटि का विद्वान बनाता है, शनि के साथ अध्यात्म ज्ञान की और उन्मुख करता है जबकि मंगल के साथ शुभ प्रभाव में उच्च कोटि का सेनानायक और अशुभ स्थिति में रहने पर विध्वंसक बनाता है। सूर्य से विरोधी विचारधारा रखकर यह विद्रोही प्रकृति का बनाता है ऐसा जातक अधिकांश पितृ-विरोधी देखा गया है। चंद्र के साथ तंत्र-मंत्र एवं जादू-टोना की और प्रवृत्त करता है। आधुनिक जगत मैं विद्युत-विकास, इलेक्ट्रोनिक्स, सिनेमा, जनसंचार प्रणाली, अंतरिक्ष अनुसंधान एवं अन्य वैज्ञानिक उपलब्धियों का संबंध हर्षल ग्रह से माना गया है। यह वायुवेग प्रिय ग्रह है। आधुनिक ज्योतिर्विदों ने कुम्भ राशि पर इसका स्वामित्व स्वीकार किया है।

यह ग्रह प्रभाव युक्त होने पर उद्वेग, हठ, आकस्मिक दुर्भाग्य एवं निराशा का संचार करने लगता है। विघटन, विनाश अथवा सामूहिक विपत्तियों का सृजन करता है। क्रान्ति, विद्रोह, राजनैतिक उथल-पुथल, मोटर, रेल एवं वायुयान दुर्घटनाएं इसके कुप्रभाव का परिणाम हैं। राष्ट्रों, प्रान्तों एवं घनिष्ठ संबंधों के मध्य विघटन करवाने की भूमिका इसी हर्षल ग्रह की कुदृष्टि का परिणाम होती है। यह चंद्र अथवा सूर्य के निकट होने पर दांपत्य सुख में कमी करके व्यक्ति को एकाकी एवं विघटनकारी बनाता है। शुक्र के साथ बुरे कार्यों की और ले जाता है, मादक पदार्थ का सेवन करवाता है। यह ग्रह रात्रि बली, गुप्तचरों का प्रतिनिधि, चमत्कारिक एवं विस्मयकारी गुणों से युक्त तमोगुणी ग्रह है। इस ग्रह के गुण, लक्षण, वृति, दृष्टि प्रभावों का शुभाशुभ ज्ञान ज्योतिष ज्ञान में परिमार्जन एवं परिवर्धन हेतु परम आवश्यक है।

Friday, April 6, 2012

नाड़ी दोष परिहार

नक्षत्र मेलापक के अष्ट कूटों में नाड़ी सबसे महत्त्वपूर्ण है। यह व्यक्ति के मन एवं मानसिक ऊर्जा की सूचक होती है। व्यक्ति के निजी सम्बन्ध उसके मन एवं उसकी भावना से नियंत्रित होते है। जिन-जिन व्यक्तियों में भावनात्मक पूरकता होती है, उनके संबंधो में घनिष्टता और जिनमें भावनात्मक समानता, या प्रतिद्वंदिता होती है, उनके संबंधों में टकराव पाया जाता है

जैसे शरीर के वात, पित्त एवं कफ़, इन तीन दोषों की जानकारी उनकी कलाई पर चलने वाली नाड़ियों से प्राप्त की जाती है। उसी प्रकार अपरिचित व्यक्तियों के भावनात्मक लगाव की जानकारी आदि, मध्य एवं अंत्य नाड़ी के द्वारा मिलती है। वैदिक ज्योतिष के आचार्यों ने आदि, मध्य एवं अंत्य इन तीनो नाड़ियों को यथाक्रमेण, आवेग, उद्वेग एवं संवेग का सूचक माना है। कुछ अन्य आचार्यों का मत है कि तीनो  नाड़ियां, यथाक्रमेण, संकल्प, विकल्प एवं प्रतिक्रिया की सूचक होती हैं। मानवीय मन भी कुल मिलाकर संकल्प, विकल्प या प्रतिक्रिया ही करता है और व्यक्ति की मनोदशा का मूल्यांकन उसके आवेग, उद्वेग या संवेग के द्वारा होता है। इस प्रकार मेलापक में नाड़ी के माध्यम से जातक की मानसिकता, मनोदशा का मूल्यांकन किया जाता है। 

वैदिक ज्योतिष के मेलापक प्रकरण में गणदोष, भकूट दोष एवं नाड़ी दोष - इन तीनों को सावधिक महत्त्व दिया जाता है। यह इस बात से ही स्पष्ट है कि ये तीनों ३६ गुणों में से (६+७+८=२१) कुल २१ गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं। शेष पाँचों कूट (वर्ण, वश्य, तारा, योनि एवं ग्रह मैत्री) १५ गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं। अकेली नाड़ी के ८ गुण होते हैं, जो वर्ण, वश्य आदि ८ कूटों कि तुन्लना में सर्वाधिक हैं। इसलिए नक्षत्र मेलापक में नाड़ी दोष एक महादोष माना जाता है। 

नाड़ी विचार - नाड़ी कूट में ३  नाड़ियां होती हैं आदि नाड़ी, मध्य नाड़ी एवं अंत्य नाड़ी। नक्षत्रों की संख्या २७ और  नाड़ियों की संख्या ३ होने के कारण प्रत्येक नाड़ी में ९-९ नक्षत्र आते हैं। व्यक्ति की नाड़ी का निश्चय उसके जन्म नक्षत्र के आधार पर किया जाता है।

नाड़ी दोष - जिस प्रकार वात प्रकृति के व्यक्ति के लिए वात गुण वाले पदार्थों का सेवन एवं वातावरण वर्जित होता है, अथवा कफ़ प्रकृति वाले व्यक्ति के लिए कफ़ नाड़ी के चलने पर कफ़ प्रधान पदार्थों का सेवन एवं ठंडा वातावरण हानिकारक होता है, ठीक उसी प्रकार नक्षत्र  मेलापक में वर-वधू की एक समान नाड़ी का होना, उनके मानसिक और भावनात्मक ताल-मेल में हानिकारक होने के कारण, वर्जित माना गया है। तात्पर्य यह है कि लड़की-लड़के कि एक समान नाड़ियां हों तो उनका विवाह नहीं करना चाहिए, क्योंकि उनकी मानसिकता के कारण, उनमें सामंजस्य होने कि सम्भावना अधिकतम पायी जाती है। इसलिए मेलापक  में आदि नाड़ी के साथ आदि का, मध्य नाड़ी के साथ मध्य का और अंत्य नाड़ी के साथ अंत्य का मेलापक वर्जित होता है, जबकि लड़की और लड़के को भिन्न-भिन्न नाड़ी होना उनके दांपत्य संबंधों में शुभता का द्योतक होता है।

जिस लड़की-लड़के का एक समान नक्षत्र हो, या एक समान राशि हो तो इस विशेष परिस्थिति में नाड़ी दोष प्रभावहीन हो जाता है जिसको नाड़ी दोष का परिहार कहते हैं। यह परिहार इन परिस्थितियों में होता है :-

यदि लड़की और लड़के का जन्म नक्षत्र एक ही हो, तो उन दोनों कि नाड़ी भी एक ही होगी और प्रथम दृष्टि मैं यह नाड़ी दोष प्रतीत होगा। किन्तु यदि एक ही नक्षत्र में उत्पन्न लड़की और लड़के के नक्षत्र के चरण भिन्न-भिन्न हों तो नाड़ी दोष कर परिहार हो जाता है। इसका कारण यह है कि एक समान नक्षत्र में उत्पन्न युगल के आठ कूटों में से सात कूट वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रह-मैत्री, गण एवं भकुट शुभ एवं शुद्ध होते हैं। और एक समान नक्षत्र होने के कारण उनकी मानसिकता में आत्मीय भाव होता है। नक्षत्र के चरण भिन्न होने से नवमांश का भेद होने के कारण, उनमे पूरकता होती है। अतः इस स्थिति में उनके अहं के टकराव कि सम्भावना टल जाती है। परिणामस्वरूप एक नक्षत्र में भिन्न-भिन्न चरणों में उत्पन्न वर-वधु का, नाड़ी दोष होने पर भी विवाह किया जा सकता है।

नाड़ी के गुण - नक्षत्र मेलापक  में नाड़ी के ८ गुण होते हैं। यदि लड़के और लड़की कि भिन्न-भिन्न नाड़ी हो तो ८ गुण मिलते हैं और यदि उन दोनों कि एक समान नाड़ी हो तो गुण शून्य होता है। नाड़ी के गुणों कि जानकारी इस चक्र से की जा सकती है :-


उदाहरण मेलापक के प्रचलित उदाहरण में लड़की का जन्म उत्तराफाल्गुनी और लड़के का जन्म नक्षत्र पुष्य है। इसलिए, नियमानुसार लड़की की नाड़ी आदि और लड़की की नाड़ी मध्य है क्योंकि इन दोनों की नाडियाँ भिन्न-भिन्न हैं। अतः इस उदाहरण मैं नाड़ी दोष नहीं है और इनकी नाड़ियों के ८ गुण मिलते है। परिणामतः इनका विवाह किया जा सकता है।